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उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के बीच हिंदी कवि अशोक वाजपेयी और दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) और उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर प्रस्तावित ‘महापंचायत’ को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया है। उक्त महापंचायत पुरोला कस्बे में 15 जून को होगी। 26 मई को दो पुरुषों एक मुस्लिम और एक हिंदू द्वारा 14 वर्षीय लड़की के कथित अपहरण को लेकर पहाड़ी शहर पुरोला सांप्रदायिक उन्माद में हुआ, जिसे स्थानीय निवासियों द्वारा ‘लव जिहाद’ का मामला कहा गया। जबकि दोनों अभियुक्तों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया, फिर भी इस घटना ने कस्बे में गहरे सांप्रदायिक तनाव को भड़का दिया, जो अंततः राज्य के दूसरे क्षेत्रों में फैल गया। अगले कुछ दिनों में कुछ संगठनों ने कथित तौर पर कई इलाकों में विरोध प्रदर्शन किया और पुरोला में मुसलमानों की दुकानों और घरों पर हमला किया।
15 जून को महापंचायत से पहले परिसर खाली करने या गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी देते हुए मुस्लिम व्यापारियों की दुकानों के शटर पर ‘देवभूमि रक्षा संगठन’ के नाम से नोटिस चिपका दिया गया। यह भी दावा किया गया कि ‘विश्व हिंदू परिषद’ ने टिहरी-गढ़वाल प्रशासन को एक पत्र भी लिखा है, जिसमें कहा गया कि अगर मुस्लिम शिष्ट भाषा में ‘विशेष समुदाय’ के रूप में संदर्भित उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों से नहीं जाते हैं तो संगठन साथ में हिंदू युवा वाहिनी और टिहरी-गढ़वाल ट्रेडर्स यूनियन के साथ 20 जून को हाईवे जाम कर विरोध जताया जाएगा। रिपोर्टों से पता चलता है कि कई मुस्लिम परिवारों ने अपनी सुरक्षा के डर से उनके खिलाफ नफरत फैलाने वाले अभियान के बाद शहर छोड़ दिया है।
अपूर्वानंद और वाजपेयी ने सीजेआई और उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को भेजे गए पत्र में इस क्षेत्र में मुस्लिम परिवारों के आंतरिक विस्थापन के साथ-साथ सांप्रदायिक हिंसा की संभावना के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की। दोनों ने आशंका जताई कि पुरोला में हुई घटनाएं और महापंचायत का आह्वान से बड़े पैमाने पर हिंसा हो सकती है। ऐतिहासिक तहसीन पूनावाला फैसले में लिंचिंग और भीड़ की हिंसा से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए पत्र में कहा गया, तहसीन पूनावाला बनाम भारत संघ के दिशा-निर्देशों का पालन करने में राज्य सरकार की विफलता का उदाहरण हैं,
चीफ जस्टिस से तत्काल हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया, जिससे “हमले के शिकार लोगों के जीवन, व्यापार और संपत्ति की रक्षा की जा सके। पत्र में कहा गया, “इन परिस्थितियों में [हम] महापंचायत को 15 जून 2023 को होने से रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करने के लिए न्यायपालिका के प्रमुख के रूप में आपकी क्षमता में त्वरित कार्रवाई की उम्मीद करते हुए माई लॉर्ड को लिख रहे हैं। यह भी सम्मानपूर्वक आग्रह किया जाता है कि उत्तराखंड राज्य सरकार को खतरे में लोगों के जीवन की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए निर्देश दिए जाएं।जिन लोगों को अपनी दुकानें और घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया है, उन्हें मुआवजा दिया जाना चाहिए और पर्याप्त सुरक्षा के साथ उनका पुनर्वास किया जाना चाहिए। यह सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया जाता है कि इस तरह के आयोजन कानून के शासन के लिए अभिशाप हैं और संसदीय लोकतंत्र में इसका समर्थन नहीं किया जा सकता। वे बहुत ही धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के लिए खतरा हैं, जो देश को एक साथ बांधता है। ऐसी भी खबरें हैं कि मुस्लिम धर्मगुरुओं ने 18 जून को जवाबी “महापंचायत” का आह्वान किया है।