प्रदीप सिंह
नई दिल्ली। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पेश किया। उन्होंने कहा कि महिला आरक्षण विधेयक लागू होने पर लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या मौजूदा 82 से बढ़कर 181 हो जाएगी। इस बिल को “नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल” नाम दिया गया है। इस बिल के पेश करने का प्रस्ताव पास हो गया है। अब कल इस बिल पर चर्चा होगी। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि “हम चाहते हैं कि अधिक से अधिक महिलाएं देश की विकास प्रक्रिया में शामिल हों।”
महिला आरक्षण विधेयक के रूप में संसद के विशेष सत्र का गुप्त एजेंडा सामने आ गया है। हमेशा की तरह सत्तापक्ष एक बार फिर इसे पीएम नरेंद्र मोदी का मास्टरस्ट्रोक करार दे रहा है तो वहीं विपक्ष इसे अपना पुराना मुद्दा बता रहा है। विपक्षी दल सरकार के इस एजेंडे को लेकर अपनी रणनीति बनाना शुरू कर दिए हैं।
विशेष सत्र के दूसरे दिन पहली बार सदन की कार्यवाही नए संसद भवन में हुई। नए परिसर में स्थानांतरित होने से पहले, राज्यसभा और लोकसभा के सदस्यों ने पुराने भवन में एक समूह तस्वीर खिंचवाई।
मोदी सरकार महिला आरक्षण बिल को विशेष सत्र में पेश कर नए संसद भवन में पहले दिन से ही ऐतिहासिक काम-काज का संदेश देना चाह रही है। विपक्षी दल भी मान रहे हैं कि मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक महिला आरक्षण विधेयक ही है। महिलाओं को संसद, विधानसभा से लेकर नौकरियों में 33 फीसदी आरक्षण देने की मांग लंबे समय से हो रही है। इस आशय का पहला विधेयक 27 साल पहले पेश किया गया था। मोदी सरकार इसे पास कराकर देश भर की महिलाओं को भाजपा के पक्ष में लामबंद करना चाह रही है। लेकिन समर्थकों को अभी भी महिला आरक्षण विधेयक के अलावा किसी अन्य विधेयक का इंतजार है। हालांकि सोमवार को कैबिनेट की बैठक में महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा हो चुकी है। इसके अलावा क्या कुछ और हो सकता है उसको लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। कैबिनेट मंत्री प्रह्लाद पटेल ने महिला आरक्षण विधेयक पर एक्स पर एक पोस्ट कर मामले को सार्वजनिक कर दिया। लेकिन बाद में उन्होंने पोस्ट को डिलीट कर दिया।
फिलहाल, संसद से लेकर सड़क तक महिला आरक्षण विधेयक ने सनसनी पैदा कर दी है। 19 सितंबर को नए संसद भवन में संसद की कार्यवाही शुरू होगी। कहा जा रहा है कि सरकार पहले दिन ही महिला आरक्षण विधेयक को सदन में पेश कर सकती है। कांग्रेस ने महिला आरक्षण विधेयक को अपना बता कर अपना मंतव्य साफ कर दिया है।
18 सितंबर, को विशेष सत्र के पहले दिन ही सदन में कई विपक्षी दलों ने महिला आरक्षण विधेयक पर अपनी आशंकाओं को व्यक्त किया। कई राजनीतिक दलों की राय है कि महिला आरक्षण को लागू करने से पहले लोकसभा औऱ विधानसभा की सीटों को चिंहित कर लेना चाहिए। नहीं तो सत्ता पक्ष इसे हथियार के बतौर इस्तेमाल कर सकता है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि महिलाओं के लिए कौन-कौन सीटें आरक्षित होंगी, इसे पहले ही तय करना चाहिए। नहीं तो विपक्षी नेताओं की सीटों को आरक्षित करने का खेल भी शुरू हो सकता है।
लोकसभा की वर्तमान स्थिति
अभी लोकसभा सदस्यों की संख्या 543 है। संविधान द्वारा सदन की आवंटित अधिकतम संख्या 552 है। वर्तमान लोकसभा में महिलाओं की संख्या 78 है जो कुल का 15 प्रतिशत से भी कम है। राज्य विधानसभाओं की बात करें तो अधिकांश विधानसभाओं में महिला विधायकों की संख्या 10 प्रतिशत से भी कम है।
महिला आरक्षण के बाद लोकसभा की संभावित सीट
543 सदस्यों वाली लोकसभा में यदि 33 प्रतिशत आरक्षण महिलाओं को दिया जाता है तो लगभग 180 सीटों को बढ़ाना होगा। लेकिन जब तक नया परिसीमन नहीं होगा और लोकसभा की सीटों को नहीं बढ़ाया जायेगा तो किस लोकसभा सीट को आरक्षित किया जायेगा, ये अहम सवाल बना हुआ है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि सरकार 180 सीटों पर दो सदस्यों को चुनने का फॉर्मूला ला सकती है।
जनसंख्या के अनुपात में सीटों को बढ़ाने का विरोध
संसद सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए जनसंख्या के अनुपात में सदस्यों की संख्या बढ़ाने पर विचार होता है। लेकिन दक्षिण के राज्य मात्र जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटों को बढ़ाने के विचार के विरोधी हैं। उनका कहना है कि दक्षिण के लोगों ने परिवार नियोजन को बेहतर ढंग से लागू किया। जबकि हिंदी भाषी राज्यों ने ऐसा नहीं किया। लिहाजा आबादी के आधार पर सीटों को बढ़ाना दक्षिण के राज्यों के साथ अन्याय होगा।
सरकार के पास नहीं है जनगणना के नवीनतम आंकड़े
विपक्षी दलों और राजनीति के जानकारों द्वारा जो सबसे अहम सवाल उठाया जा रहा है वह जनगणना का है। 2021 में जनगणना होनी थी। लेकिन अभी तक नहीं हुई है। ऐसे में प्रमुख सवाल बना हुआ है कि आखिर सरकार किस जनगणना के आधार पर इतना बड़ा फैसला करने जा रही है। कई दल जातिगत जनगणना कराने की भी मांग कर रहे हैं। जिससे सरकार के पास हर जाति और समुदाय का नवीनतम आंकड़ा उपलब्ध हो सके।
परिसीमन में लग सकता है दो साल का वक्त
महिलाओं के लिए आरक्षित लोकसभा की सीटों को चिंहित करने में करीब दो साल का समय लग सकता है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा के परिसीमन में भी करीब इतना समय ही लगा था। ऐसे में जब तक वैज्ञानिक तरीके से सीटों को निर्धारित नहीं किया जायेगा, महिला आरक्षण को लागू करने को लेकर कई दल जल्दबाजी में उठाया गया कदम बता रहे हैं।
महिला आरक्षण पर राजनीतिक दलों की आशंका
महिला आरक्षण विधेयक के पक्ष या विपक्ष में कांग्रेस के अलावा किसी औऱ राजनीतिक दल ने कोई बयान नहीं दिया है। लेकिन कुछ नेताओं को जो शंका और आशंका है वह निर्मूल नहीं है। महिला आरक्षण पर पहले भी राजनीतिक दलों की अलग-अलग राय थी। ऐसा नहीं है कि कुछ दल महिला आरक्षण के विरोधी हैं, या वे पुरुष-वर्चस्व को बनाए रखना चाहते हैं, दरअसल भारत की सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था को देखते हुए कई दल आदिवासी, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं को महिला आरक्षण के भीतर आरक्षण की वकालत करते हैं।
समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, बहुजन समाज पार्टी जैसे कई दल आरक्षण के अंदर आरक्षण की मांग करते रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसा नहीं किया गया तो महिला आरक्षण का लाभ अकेले सवर्ण महिलाओं को ही मिलेगा। क्योंकि अभी आदिवासी, दलित और पिछड़े समुदाय की महिलाएं कम शिक्षित हैं।
(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)