मध्य पूर्व एक बार फिर अस्थिरता के दौर में पहुंच गया है। पूरी दुनिया इजरायल और फिलिस्तीन के बीच छिड़ी जंग से भौंचक है। हमास के लड़ाकों द्वारा गाज़ा पट्टी से इजरायली नियंत्रण वाले इलाकों पर समुद्री, सीमाई और हवाई हमलों की गोरिल्ला कार्रवाई कर फिलिस्तीन के मुद्दे को एक बार फिर चर्चा में शीर्ष पर रख दिया है। गाज़ा पट्टी इलाके में कम से कम 20 लाख फिलिस्तीनी रहते हैं।
इज़रायल ने फिलिस्तीन हमले का ताबड़तोड़ जवाब दिया है और ऐलान किया है कि फिलिस्तीनियों को इस हमले की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। इज़रायली ऐलान के फौरन बाद फिलिस्तीनी इलाकों पर बमबारी शुरु हो चुकी है और सैकड़ों लोगों के मारे जाने और संपत्तियों के तबाह होने की खबरें आ रही हैं। विश्लेषक हैरान हैं कि आखिर हमास ने लगभग आत्मघाती हमला क्यों किया जिसमें दक्षिण इजराय के तमाम लोगों की जान गई।
हमास के हमले की लेबनान में हेजबुल्ला ने तारीफ की है, उधर ईरान ने भी इसे वीरता का काम बताया है। वहीं इज़राय से रिश्ते सुधारने की कोशिशों में लगे सऊदी अरब ने दोनों तरफ से हमले रोकने की अपील जारी की है।
अमेरिका ने अपने ही अंदाज़ में कहा है कि, “इज़रायल को अपनी रक्षा करने का अधिकार है…”, और भारत के प्रधानमंत्री ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि भारत मौजूदा हालात में इजराय के साथ है। बीजेपी समर्थक भी ताजा घटनाक्रम पर अपनी प्रतिक्रिया छिपा नहीं पा रहे हैं, और अपनी अज्ञानता और नासमझी के आधार पर मान रहे हैं कि फिलिस्तीन को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी, क्योंकि इस जंग में मुस्लिम मारे जाएंगे।
ऐसी परिस्थितियों में दुनिया में फिर से तनावपूर्ण हालात बन सकते हैं, और मध्य पूर्व में एक नया उबाल आ सकती है। इस सबके नतीजतन बाकी दुनिया के लिए भयानक नतीजों का विस्फोट हो सकता है, जो पहले ही रूस-यूक्रेन युद्ध से जूझ रही है।
पूरे हालात के लिए संयुक्त राष्ट्र और जी-7 या जी-20 देशों जैसे बहुपक्षीय मंचों सहित महाशक्तियों को फिलिस्तीन से मुंह मोड़ने और उसके मुद्दों की अनदेखी का दोषी मा जाना चाहिए। मध्य पूर्व के मामलों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ कल से इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि इजराइल पर हमला आंशिक रूप से इजराइल का अपना काम है।
- हमास ने कहा है कि हमला हाल ही में टेम्पल माउंट के आसपास हुई घटनाओं से उकसावे का नतीजा है। टेम्पल माउंट येरुशलम की ऐसी जगह है जिसे यहूदी (इजरायली) और मुस्लिम (फिलिस्तीनी) समान रूप से पवित्र मानते हैं। टेम्पल माउंट स्थित मस्जिद अल-अकसा में इज़रायली लोग दाखिल हो रहे हैं और वहां अपने तरीके की इबादत कर रहे हैं। इसे हमास ने उनकी इबादतगाह को नापाक करने की हरकत माना है, और हमलों को ऑपरेशन अल-अक्सा तूफान नाम दिया है।
- 2007 से हमास के कब्जे वाली गाजा पट्टी में, जहां हमास राष्ट्रपति अब्बास के फिलिस्तीनी प्रशासन के साथ टकराव की स्थिति में हैं, वहां के लोग एक मानवीय त्रासदी से दो-चार हैं। यहां इज़रायली सुरक्षा बल और इज़रायली निवासी फ़िलिस्तीनियों, जो इज़रायल की आबादी का 20 प्रतिशत हैं, को चिढ़ाते रहते हैं और सीमावर्ती शहरों हुवारा और जेनिन में उन पर होने वाले हिंसक हमलों में तेजी आ गई है।
- अरब और इज़रायल के बीच रिश्तों के सामान्य होने की प्रक्रिया को फ़िलिस्तीनियों गंभीरता से देख रहे हैं क्योंकि अरब जगत ने उनका साथ छोड़ दिया है और इज़रायल के साथ एक सामान्य देश की तरह व्यवहार करने पर राजी हो गया है, भले ही इस दौरान फिलिस्तीनी इलाके पर इज़रायली कब्ज़ा मजबूत और गहरा होता जा रहा है। यह हमला अरब जगत के लिए भी एक ‘संदेश’ प्रतीत होता है।
- इजराइल अपने कब्जे वाले वेस्ट बैंक में लगभग दैनिक आधार पर सैन्य छापे मार रहा है। अप्रैल, 2023 में इजरायली पुलिस ने यरूशलेम के अल अक्सा मस्जिद परिसर, जो इस्लाम की तीसरी सबसे पवित्र इबादतगाह है, पर छापा मारा था, जिसके नतीजे में गाजा से रॉकेट हमले शुरू हो गए, जिसके बाद इजरायली हवाई हमले हुए।
- मई, 2023 में इज़राइल और गाजा स्थित फिलिस्तीन इस्लामिक जिहाद ने एक छोटी लड़ाई लड़ी, और जुलाई में, इज़राइल ने वेस्ट बैंक के जेनिन शहर में एक बड़ा हमला किया, जिसे पश्चिमी तट पर उग्रवाद के केंद्र के रूप में नया अड्डा बताया जा रहा है।
- इस सबके बीच दुनिया अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में लगी रही और उसने अपना ध्यान रूस-यूक्रेन संघर्ष पर केंद्रित कर लिया। इस सबके बीच उसने फिलिस्तीनी शांति प्रक्रिया को एक तरह से उसके हाल पर छोड़ दिया। इसी दौरान हमास इजरायली मनमानी और अत्याचारों के विरुद्ध बढ़ते फिलिस्तीनी गुस्से को भुनाने और उनके समर्थन के एकमात्र स्तंभ के रूप में उभरने की कोशिश कर रहा है।
- इसी दौरान इज़राइल के भीतरी सिस्टम में आई की दरारों ने भी हमास को हमले के लिए प्रोत्साहित किया होगा। इज़रायली सरकार द्वारा इसे न्यायपालिका से अधिक शक्तिशाली बनाने के प्रयासों के कारण बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। सेना के भीतर भी नाराज़गी की आवाज़ें थीं और इज़रायली समाज गहराई से विभाजित था।