देहरादून/मसूरी। घोटालेबाजी का मास्टरमाइंड नगर पालिका अध्यक्ष अनुज गुप्ता और इस भ्रष्ट कथा के नये किरदार राजेश नैथानी अब मसूरी झील और टिहरी बस स्टैंड पार्किंग के नाम पर घोटाले की नई पटकथा तैयार करने में जुटे हैं।
शासन स्तर से लेकर हाईकोर्ट से जांच की तलवार लटकने के बावजूद घोटालेबाज अपने कारनामों से बाज नहीं आ रहे हैं। 15 साल की लीज पर आवंटित की गई मसूरी झील के सौन्दर्यीकरण के नाम पर भ्रष्ट गुप्ता और उसके मातहतों ने नया खेल शुरू कर दिया है। सौन्दर्यीकरण के नाम पर नगर पालिका ने 3 करोड़ 51 लाख की अनुमानित लागत का टेेंडर जारी किया है, लेकिन टेंडर की शर्तों से साफ होता हैं कि गुप्ता और नैथानी की जोड़ी द्वारा कमीशनखोरी के लिए ही अपने किसी खास ठेकेदार के लिए ही इस टेंडर को जारी किया गया है। टेंडर की शर्ते कुछ इस तरह से डिजाइन की गई हैं ताकि मसूरी पालिका में पंजीकृत ठेकेदार के सिवाय कोर्इ्र दूसरा ठेकेदार टेंडर में शामिल न हो सके। टेंडर की शर्तों में जहां मसूरी पालिका में पंजीकरण की शर्त जोड़ी गई हैं वहीं अनुभव के नाम पर टेंडर की लागत से भी अधिक 3 करोड़ 60 लाख की धनराशि के कार्य का अनुभव मांगा गया है। जबकि निविदा नियमों के तहत सिंगल कार्य अनुभव में अनुमानित लागत का 80 प्रतिशत, पचास-पचास फीसदी के के दो कार्य अनुभव व 30-30 प्रतिशत के तीन कार्य अनुभव स्वीकार किए जाते हैं। यहीं स्थिति टिहरी बस स्टैंड पाकिंग निर्माण के नाम पर भी खेल खेला गया है। 4 करोड़ 81 लाख की लागत के इस टेंडर में पार्किंग का अनुभव मांगा ही नहीं गया है। शर्तों के इस खेल से ही गुप्ता और उसके जोड़ीदार कमीशनखोरी का खेल कर पाते हैं।
पहली बात तो यह कि भ्रष्ट गुप्ता को यह बताना चाहिए कि आखिर मसूरी नगर पालिका में ए श्रेणी में कुल कितने ठेकेदार हैं जो इस तरह के निर्माण व झील सौंन्दर्यीकरण का कार्य करने का अनुभव रखते हैं।
अगर गुप्ता कमीशनखोरी के लिए यह सब नहीं कर रहा है तो आखिर क्यों नहीं राज्य की दूसरी नगर पालिकाओं की तर्ज पर निविदा नियमावली के अनुसार पूरे राज्य के सरकारी विभागों में पंजीकृत ठेकेदारों को निविदा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है। आश्चर्यजनक तो यह है कि गुप्ता और नैथानी की जोड़ी यह खेल तब कर रही है जब शासन के निर्देश पर शहरी विकास विभाग ने टेंडर के नाम पर मसूरी पालिका में हो रहे इस तरह के घोटालों की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित की हुई है।
यह कमेटी जांच के नाम पर क्या खेल कर रही है यह भी एक सवाल है। क्या कमेटी का मुंह भी बंद करा दिया गया है, यह आने वाले दिनों में साफ हो पाएगा, लेकिन जिस तरह गुप्ता और नैथानी की जोड़ी मनमानी से एक के बाद एक टेंडर में खेल कर रही है वह जांच कमेटी की मंशा पर भी सवाल खड़ा करतीे है।
मसूरी झील के नाम पर गुप्ता और बंगवाल के घोटाले की तो एक लम्बी कथा है, जिसका जहर बाहर आना अभी बाकी है। गुप्ता के पाप का जब यह घड़ा फूटेगा तो बंगवाल और नैथानी को भी उसका कड़वा घूट पीना पड़ेगा।