July 26, 2024

लोकतांत्रिक प्रणाली में यदि विपक्ष सक्रिय न हो, तो लोकतंत्र तानाशाही का रूप ले लेता है। इसका सबसे सटीक उदाहरण हमारा पड़ोसी पाकिस्तान है। वहां के दो प्रमुख दल मुस्लिम लीग (नवाज) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी हैं। आश्चर्यजनक है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में भी विपक्ष सत्ता के आगे बेबस सा बनता जा रहा है। यही कारण है कि नरेंद्र मोदी सरकार मनमानी कर रही है।

भारत में भी अनेक कथित विपक्षी दल सरकारी इशारे पर नाच रहे हैं। यह देश और लोकतंत्र के लिए अत्यंत चिंताजनक स्थिति है। इसका परिणाम 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अत्यंत दुखद हो सकता है। इस सबके बीच राहुल गांधी लगभग अकेले ही देश की सड़कों पर उतरकर जनता को जागरूक करने के लिए भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकले हुए हैं।

लेकिन क्या कारण है कि बहुत सारे क्षेत्रीय दल ऐसे कदम उठा रहे हैं कि 2024 का चुनाव बीजेपी के लिए एक खेल बनता जा रहा है?

मोदी सरकार संवैधानिक तंत्रों का दुरुपयोग कर देश के विपक्ष को चुनाव से पूर्व ही अविश्वसनीय बना दे रही है। इस संबंध में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की भूमिका स्पष्ट है। कभी पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को जेल भेजा जा रहा है, तो कभी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को समन दिए जा रहे हैं। राहुल गांधी और सोनिया गांधी को तो घंटों-घंटों ईडी ने परेशान किया।

आम आदमी पार्टी का तो लगभग पूरा शीर्ष नेतृत्व ही जेल में है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जेल में डाल दिया गया है। सारांश यह कि जैसे पाकिस्तान में इमरान खान और तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी को वहां की फौज ने तोड़ डाला और सलाखों के पीछे डाल दिया, वैसा ही भारत में सत्ताधारी दल विपक्ष के साथ कर रहा है।

सवाल यह है कि ऐसी गंभीर परिस्थितियों में विपक्ष लोकतंत्र की रक्षा कैसे करे। ऐसे में विपक्ष के पास कुछ सीमित उपाय ही बचते हैं। पहला है विपक्षी एकजुटता। दूसरा जनता को जागरूक करना। तीसरा गुपचुप रास्ते तलाश करना जो संवैधानिक भी हों। एक और बात यह है कि इनकम टैक्स विभाग के जरिये मोदी सरकार विपक्षी दलों को कंगाल कर रही है। इसका भी तोड़ विपक्ष को निकालना पड़ेगा।

इसका उपाय सरल है। क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस और दूसरे दलों से सबक लेना पड़ेगा। कांग्रेस पर इस समय केंद्र सरकार के लगभग सभी संवैधानिक तंत्रों का जैसा दबाव है, वैसा किसी भी विपक्षी दल को नहीं झेलना पड़ा। ईडी तो ईडी, कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को डराने के लिए हर हथकंडे का उपयोग किया जा रहा है। पहले राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता खत्म कर दी गई। फिर उनको जेल भेजने की तैयारी कर ली गई।

राहुल गांधी ने दूसरे चरण में जब भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू की, तो असम जैसे बीजेपी शासित राज्यों में राहुल गांधी के खिलाफ कई पुलिसिया कार्रवाई की गई। यहां तक कि उनकी यात्रा पर हमले भी किए गए। लेकिन राहुल गांधी किसी भी दबाव के आगे बिना झुके अपनी यात्रा में चलते ही रहे। इससे केवल कांग्रेस पार्टी ही नहीं बल्कि जनता का भी मनोबल बढ़ा।

राहुल गांधी जो कर रहे हैं, वह यह है कि जनता को स्वयं उनकी अपनी समस्याओं एवं मुद्दों को उठाकर सीख दे रहे हैं कि बीजेपी किस प्रकार उनको धर्म के नाम पर धोखा दे रही है। इस संबंध में राहुल गांधी ने सामाजिक न्याय का मुद्दा भी उठाना शुरू कर दिया है। उन्होंने अपनी जनसभाओं में पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों एवं गरीबों से यह सवाल करना शुरू किया है कि क्या इन सब वर्गों को देश में उनकी जनसंख्या के अनुपात के अनुसार लाभ मिल रहा है।

अभी कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश में राहुल की यात्रा के बीच ही पुलिस भर्ती परीक्षा के पेपर लीक हो गए। इस बात से प्रदेश का युवा भड़क उठा। राहुल ने युवाओं का गुस्सा देख स्वयं उनसे बात की कि इन परिस्थितियों में उन गरीब, पिछड़ों एवं अन्य वर्गों को कितनी सरकारी नौकरियां मिल रही हैं। युवाओं ने बताया कि वह अत्यंत कठिन माहौल के बावजूद कई-कई साल परीक्षा देते हैं और उनमें से केवल मुट्ठीभर ही सरकारी नौकरी पा पाते हैं। अंततः थक-हार कर कहीं छोटी-मोटी नौकरी हासिल कर जीवन व्यतीत करते हैं। इस प्रकार राहुल गांधी युवाओं को ही नहीं, उनके परिवारीजनों को भी यह समझा देते हैं कि सरकार केवल मुट्ठीभर लोगों और आठ-दस पूंजीपति घरानों को ही पाल रही है।

जहां तक विपक्षी एकजुटता का सवाल है, तो इस संबंध में ताजा उदाहरण कांग्रेस पार्टी एवं समाजवादी पार्टी का उत्तर प्रदेश में साथ आना है। उत्तर प्रदेश में इन दोनों दलों के बीच अगला चुनाव मिलकर लड़ने के लिए समझौता हो गया है। क्या उत्तर प्रदेश में इन दोनों दलों पर सरकार का दबाव नहीं था। ऐसा सोचना भी बेकार है। लेकिन वे अपने रास्ते पर बढ़ते रहे और अंततः अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सफल रहे।

इसी तरह आम आदमी पार्टी और कांग्रेस चंडीगढ़ मेयर चुनाव के मामले में आपस में एक-दूसरे के साथ अंत तक एक रहे। अंततः आप और कांग्रेस का साझा उम्मीदवार सुप्रीम कोर्ट के रास्ते वापस चंडीगढ़ का मेयर नियुक्त हो गया। इसी प्रकार क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस के साथ गुपचुप समझौता करना चाहिए।

इसी प्रकार चुनाव फंडिंग का मामला है, तो उसका भी उपाय है। मोदी सरकार विपक्ष को कंगाल बनाने पर उतारू है। इस संबंध में ‘क्राउड फंडिंग’ एक माध्यम हो सकता है’। इसके लिए जनता से सीधे अपील करे कि अपने-अपने क्षेत्रों में खुद अपने खर्चे से चुनाव लड़े। हमने 1977 में ऐसा होते देखा है।

अब यह निश्चित हो चुका है कि 2024 के लोकसभा चुनाव जीतने के लिए सत्ताधारी दल किसी भी हद तक जा सकता है। चंडीगढ़ मेयर चुनाव इसका एक उदाहरण है। वहां चुनाव आयोग ने जो भूमिका निभाई, उससे यह स्पष्ट है कि किसी भी क्षेत्र में कुछ भी संभव है। उधर, बीजेपी 2024 में किसी भी प्रकार सत्ता पर कब्जा करने की फिराक में है। इधर, विपक्ष अभी तक संपूर्णतया एकजुट नहीं हो पाया है। स्थितियां चिंताजनक हैं लेकिन इससे निपटने के लिए तैयार होने की आवश्यकता है।

आखिर पाकिस्तानी जनता ने शांतिपूर्वक एवं मतदान के जरिये फौज को अभी मुंहतोड़ जवाब दे दिया। भारत में भी यह संभव है। लेकिन इसके लिए विपक्ष को पहले एकजुट होना पड़ेगा। समय आ चुका है कि विपक्ष भारतीय लोकतंत्र को बचाने के लिए 2024 में हर संवैधानिक तरीके का इस्तेमाल करे। भारत को दूसरा पाकिस्तान होने से बचाने के लिए यह अत्यंत जरूरी है।

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