नई दिल्ली: भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को सौंपे गए चुनावी बॉन्ड के डेटा में बॉन्ड नंबर जारी नहीं करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (15 मार्च) सुबह बैंक को नोटिस जारी किया है. निर्वाचन आयोग ने एक दिन पहले ही गुरुवार को प्राप्त डेटा सार्वजनिक किया था.
ईसीआई की वेबसाइट पर अपलोड किए गए डेटा की प्रकृति से यह अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है कि क्या बॉन्ड खरीदने वाली कंपनियों और विभिन्न सरकारों के बीच कोई लेन-देन हुआ था. आयोग ने डेटा के दो सेट अपलोड किए हैं. एक फाइल में कंपनियों द्वारा बॉन्ड खरीद की तारीख-वार सूची है और दूसरी फाइल में बॉन्ड भुनाने वाले राजनीतिक दलों द्वारा जमा राशि की तारीख-वार सूची है. किसी भी सूची में बॉन्ड नंबर उपलब्ध न कराए जाने से यह सत्यापित करना संभव नहीं है कि कौन सी कंपनी या व्यक्ति किस पार्टी को चंदा दे रहा था.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने डेटा की इस अनुपलब्धता के लिए एसबीआई के प्रतिनिधि से जवाब मांगा, जो अदालत में मौजूद नहीं थे. अदालत उन दस्तावेजों की वापसी को लेकर चुनाव आयोग के एक आवेदन पर सुनवाई कर रही थी जिन्हें एक सीलबंद लिफाफे में अदालत के साथ साझा किया गया है.
लाइव लॉ के अनुसार, इस पर सीजेआई ने कहा, ‘हम कार्यालय से डेटा को स्कैन और डिजिटल करने के लिए कह सकते हैं, इसमें एक दिन लग सकता है… जैसे ही डेटा स्कैन कर लिया जाएगा, मूल डेटा ईसीआई को वापस कर दिया जाएगा.’
इसके बाद, सीजेआई ने स्वयं एसबीआई द्वारा जारी किए गए डेटा के पूरा न होने से संबंधित मामला उठाया. लाइव लॉ के मुताबिक उन्होंने कहा, ‘एसबीआई की ओर से कौन उपस्थित हो रहा है? उन्होंने बॉन्ड नंबर का खुलासा नहीं किया है. भारतीय स्टेट बैंक द्वारा इसका खुलासा किया जाना चाहिए. एसबीआई द्वारा सभी विवरण प्रकाशित किए जाने चाहिए.’
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत के पुराने फैसले का ऑपरेटिव हिस्सा पढ़ा, जिसमें कहा गया था कि सभी प्रासंगिक विवरण एसबीआई द्वारा प्रकाशित किए जाने चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करते हुए अपने फैसले में कहा था कि मतदाताओं को यह जानने का अधिकार है कि क्या सत्तारूढ़ दलों और व्यावसायिक घरानों या कॉरपोरेट हितों के बीच कोई पारस्परिक लेन-देन हुआ है.
जैसा कि द वायर ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि चुनावी बॉन्ड के बड़े खरीददारों के रूप में सूचीबद्ध कई कंपनियां केंद्रीय एजेंसियों की जांच के दायरे में हैं और उन्हें दर्ज मामलों और छापों का सामना करना पड़ा है. अन्य रिपोर्टों में यह भी बताया गया है कि कुछ कंपनियों ने अपने वार्षिक मुनाफे से कहीं अधिक मूल्य के चुनावी बॉन्ड खरीदे थे.