December 7, 2024

नई दिल्ली: मानव विकास पर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में भारत 134वें स्थान पर है.

रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि समृद्ध देशों में अभूतपूर्व स्तर की वृद्धि देखी गई है, जबकि दुनिया के आधे सबसे गरीब देश अपनी महामारी से पहले की प्रगति का स्तर हासिल करने में भी विफल रहे हैं.

‘ब्रेकिंग द ग्रिडलॉक: रीइमेजिनिंग कोऑपरेशन इन ए पोलराइज्ड वर्ल्ड’ शीर्षक वाली 2023/24 मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार, जहां एचडीआई के साल 2020 और 2021 में गिरावट के बाद 2023 में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने का अनुमान है, वहीं अमीर और गरीब देशों के बीच विकास के स्तर में काफी अंतर देखा गया है.

रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक असमानताएं आर्थिक तौर पर  केंद्रीकरण के कारण बढ़ी हैं- वस्तुओं के मामले में वैश्विक व्यापार का लगभग 40% तीन या उससे कम देशों में केंद्रित है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में दुनिया की तीन सबसे बड़ी तकनीकी कंपनियों में से प्रत्येक का मार्केट कैपिटलाइजेशन साल 90% से अधिक देशों के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को पार कर गया.

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के प्रमुख अचिम स्टीनर ने कहा, ‘रिपोर्ट से पता चला मानव विकास के बढ़ते अंतर से पता चलता है कि अमीर और गरीब देशों के बीच असमानताओं को लगातार कम करने की दो दशकों की प्रवृत्ति अब उलट गई है. हमारे वैश्विक समाजों के गहराई से जुड़े होने के बावजूद हम कमजोर पड़ रहे हैं. हमें अपनी साझा और अस्तित्वगत चुनौतियों का समाधान करने और लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपनी परस्पर निर्भरता के साथ-साथ अपनी क्षमताओं का लाभ उठाना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘इस गतिरोध का महत्वपूर्ण प्रभाव भी है, जहां जलवायु परिवर्तन, डिजिटलीकरण या गरीबी और असमानता पर कार्रवाई को आगे बढ़ाने में सामूहिक कार्रवाई की विफलता न केवल मानव विकास में बाधा डालती है, बल्कि ध्रुवीकरण को भी बदतर बनाती है और दुनिया भर में लोगों और संस्थानों में विश्वास को कम करती है.’

भारत की रैंक

‘बहुत उच्च’, ‘उच्च’, ‘मध्यम’ और ‘निम्न मानव विकास’ के रूप में वर्गीकृत सूची में चीन और श्रीलंका उच्च मानव विकास श्रेणी में क्रमशः 75वें और 78वें स्थान पर हैं, वहीं भारत 134वें स्थान पर है.

भारत भूटान (125) और बांग्लादेश (129) से भी नीचे है, जबकि इन तीनों देशों को ही ‘मध्यम मानव विकास’ के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है.

‘लोकतंत्र विरोधाभास’

रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 10 में से नौ लोग लोकतंत्र का समर्थन करते हैं, जबकि आधे से अधिक लोगों ने उन नेताओं के लिए समर्थन व्यक्त किया जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के मौलिक नियमों को दरकिनार करके इसे कमजोर कर सकते हैं.

इस विरोधाभास के अलावा सर्वेक्षण में शामिल आधे लोगों ने बताया कि उनका अपने जीवन पर कोई नियंत्रण नहीं है या सीमित है. दो-तिहाई से अधिक का मानना है कि उनकी सरकार के निर्णयों पर उनका बहुत कम प्रभाव है.

रिपोर्ट में वैश्विक मुद्दों से निपटने के लिए एकजुट कार्रवाई की जरूरत पर जोर देते हुए कहा गया है कि देशों में राजनीतिक ध्रुवीकरण संरक्षणवादी या अंतर्मुखी नीतिगत दृष्टिकोण के लिए भी जिम्मेदार है, जो ‘हमारी अर्थव्यवस्थाओं के डीकार्बनाइजेशन, डिजिटल प्रौद्योगिकियों के दुरुपयोग और संघर्ष जैसे जरूरी मुद्दों को संबोधित करने के लिए जरूरी वैश्विक सहयोग के साथ बिल्कुल विपरीत है.’

स्टीनर ने कहा, ‘बढ़ते ध्रुवीकरण और विभाजन से चिह्नित दुनिया में एक-दूसरे की उपेक्षा करना हमारी भलाई और सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है. संरक्षणवादी दृष्टिकोण उन जटिल, परस्पर जुड़ी चुनौतियों का समाधान नहीं कर सकते जिनका हम सामना कर रहे हैं, जिनमें महामारी की रोकथाम, जलवायु परिवर्तन और डिजिटल विनियमन शामिल हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हमारी समस्याएं आपस में जुड़ी हुई हैं, समान रूप से परस्पर जुड़े समाधानों की जरूरत है. हमारे पास अवसर-संचालित एजेंडा अपनाकर वर्तमान गतिरोध को तोड़ने और साझा भविष्य के प्रति प्रतिबद्धता को फिर से जगाने का मौका है.’

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