December 7, 2024

चुनावी बॉन्ड योजना (इलेक्टोरल बॉन्ड) का मोदी सरकार द्वारा दुरुपयोग करने और ईडी-सीबीआई के छापे से कॉर्पोरेट को डराकर करोड़ों रूपये का चुनावी बॉन्ड खरीदने के लिए विवश करने से चुनाव सुधार की प्रक्रिया को बाधित कर दिया है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के संस्थापक सदस्य और ट्रस्टी जगदीप एस. छोकर ने कहा कि “अब हम पिछली प्रणाली पर वापस आ गए हैं। इसकी अपनी खामियां थीं, लेकिन चुनावी बॉन्ड योजना ने राजनीतिक फंडिंग की प्रक्रिया को खराब कर दिया।”

छोकर ने शनिवार को मीडिया से कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना ने विपक्षी दलों और मतदाताओं को समान अवसर के तहत महत्वपूर्ण जानकारी देने से इनकार कर दिया है, एडीआर की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना को रद्द किया है।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के जगदीप एस. छोकर ने कहा, “चुनावी बॉन्ड योजना ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए आवश्यक समान अवसर को बुरी तरह से बाधित कर दिया है, क्योंकि केवल सत्तारूढ़ दल को ही (चुनावी चंदा दाताओं के बारे में) जानकारी तक पहुंच थी।”

“इसने मतदाताओं को यह जानकारी पाने के अधिकार से भी वंचित कर दिया कि राजनीतिक दलों को धन कहां से मिल रहा है।”

एक संविधान पीठ ने पिछले महीने चुनावी बॉन्ड योजना – जिसने सार्वजनिक क्षेत्र के एसबीआई के माध्यम से राजनीतिक दलों को गुमनाम दान की अनुमति दी थी – को “असंवैधानिक” करार देते हुए कहा कि यह दानदाताओं और सत्तारूढ़ दलों के बीच पारस्परिक आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान कर सकता है। एडीआर मुख्य याचिकाकर्ताओं में से एक था।

शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में कहा कि शीर्ष अदालत को इस योजना को खत्म करने के बजाय इसमें संशोधन करना चाहिए था। उन्होंने यह नहीं बताया कि उनके मन में किस तरह का संशोधन है।

आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व प्रोफेसर और डीन छोकर ने पूछा कि सरकार ने इस योजना की शुरुआत के बाद से छह वर्षों में इसमें संशोधन क्यों नहीं किया।

उन्होंने कहा कि  “सरकार को अदालत में योजना का बचाव करने के बजाय संशोधन के पक्ष में दलील देनी चाहिए थी।”

छोकर ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना के पीछे मुख्य उद्देश्य यह था कि चुनावी चंदा देने वालों को सत्तारूढ़ दल से लाभ नहीं मिलेगा। लेकिन ऐसी खबरें हैं कि कई कंपनियों ने सत्ताधारी पार्टी को चुनावी बॉन्ड देकर सरकारी ठेके हासिल कर लिए हैं। इसीलिए गोपनीयता बनाए रखी गई।”

शाह ने कहा था कि भाजपा को सभी राजनीतिक दलों को दिए गए 20,000 करोड़ रुपये में से 6,000 करोड़ रुपये मिले थे और विपक्षी दलों को प्राप्त राशि लोकसभा में उनकी संख्या के अनुपात से अधिक थी।

छोकर ने कहा कि चुनावी बॉन्ड के माध्यम से कुल चंदा 16,000 करोड़ रुपये था और इसमें से आधे से अधिक भाजपा को मिला था।

शाह ने दावा किया है कि इस योजना को खत्म करने से राजनीतिक फंडिंग में काला धन वापस आ जाएगा।

लेकिन छोकर ने तर्क दिया कि चुनावी बॉन्ड योजना राजनीतिक दलों को चंदा देने की पिछली प्रणाली से भी बदतर है।

छोकर ने कहा कि कई कंपनियों ने अपने लाभ और शेयर पूंजी से कहीं अधिक दान दिया है, जिसका मतलब है कि राजनीतिक दलों को “बेहिसाब और नाजायज” पैसा मिला है।

उन्होंने कहा कि “भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति रखने वाले लोक सेवकों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान करता है। माना जाता है कि अतिरिक्त संपत्ति गलत तरीके से अर्जित की गई है। इसी तरह, ये अतिरिक्त धनराशि-कंपनियों के मुनाफे से परे-चुनावी बॉन्ड के माध्यम से दान किया जाना गलत है।”

छोकर ने कहा कि चुनावी बॉन्ड खरीदने के कॉर्पोरेट को विवश करने वाली जांच एजेंसियों पर कार्रवाई करने की संभावना नहीं है क्योंकि वे सरकार के दबाव में काम करती हैं। इसलिए बड़े पैमाने पर लोगों को अदालत जाकर और एजेंसियों पर दबाव डालकर जांच और कार्रवाई की मांग करनी चाहिए।

प्री-बॉन्ड प्रणाली घाटे में चल रही कंपनियों को राजनीतिक दलों को चंदा देने की अनुमति नहीं देती थी। लाभ कमाने वाली कंपनियों को पिछले तीन वर्षों में अपने औसत लाभ का केवल 7.5 प्रतिशत तक दान करने की अनुमति थ

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