नई दिल्ली। भारत के लिए यह खबर किसी बड़े हादसे से कम नहीं है। सोशल मीडिया एवं सभी न्यूज़ चैनलों पर इस खबर को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। हालांकि इस बारे में भारतीय सरकार और चंद मीडिया आउटलेट्स में पिछले वर्ष से ही चर्चा है, लेकिन जब तक गोदी मीडिया किसी खबर को सिरे नहीं चढ़ाता या देश में बड़ा आंदोलन नहीं खड़ा होता, देश को स्टूडियो निर्मित खबरों की लोरियों से ही बहलाया जाता है।
मजे की बात यह है कि इस विषय में देश की संसद तक में चर्चा हो चुकी है, और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने इस बाबत लोकसभा में गंभीर प्रश्न उठाये थे, जिसका भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर द्वारा आश्वस्त करने वाला जवाब भी दिया गया था।
लेकिन विपक्षी सांसद और देश को आश्वस्त करता विदेश मंत्री का बयान कल औंधे मुंह तब गिर गया जब, खबर आई कि क़तर की अदालत ने सभी 8 भारतीय मूल के नागरिकों को जासूसी के अपराध में मृत्यु दंड की सजा सुना दी है।
30 अगस्त 2022 को गिरफ्तार भूतपूर्व नौ-सेना अधिकारियों में कमांडर पुर्नेंदु तिवारी, कमांडर सुगुनकर पकला, कमांडर अमित नागपाल, कमांडर संजीव गुप्ता, कैप्टन नवतेज सिंह गिल, कैप्टन बीरेंद्र कुमार वर्मा, कैप्टन सौरभ वशिष्ठ और नौसेनिक राजेश गोपा कुमार शामिल हैं।
पिछले वर्ष संसद में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस मामले पर जानकारी देते हुए इसे बेहद संवेदनशील मामला करार दिया था और सांसदों को आश्वस्त करते हुए कहा था कि “हमारे सामने उनके हितों की रक्षा का ध्यान सर्वोपरि बना हुआ है। हमारे राजनयिक और वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा क़तर सरकार के साथ नियमित संपर्क बनाये रखा जा रहा है। हम आश्वस्स्त करते हैं कि वे हमारी प्राथमिकता में हैं।”
लेकिन हैरत की बात यह है कि न तो कतर के अधिकारियों और न ही भारतीय विदेश मंत्रालय ने ही भारतीय नागरिकों के खिलाफ लगे आरोपों को लेकर अब तक कोई सार्वजनिक जानकारी साझा की है।
लेकिन जब क़तर की अदालत द्वारा 8 भूतपूर्व भारतीय नौ-सैनिकों को सजा-ए-मौत की सजा सुनाये जाने की खबर ने भारत को स्तब्ध कर दिया तो विदेश मंत्रालय की ओर से “भारी सदमे” में होने वाले बयान पर सोशल मीडिया में तरह-तरह के बयान आने शुरू हो गये थे।
अपने बयान में विदेश मंत्रालय का कहना है, “मौत की सजा के फैसले से हम गहरे सदमे की स्थिति में हैं, और विस्तृत फैसले का इंतजार कर रहे हैं। हम उनके परिवार के सदस्यों एवं कानूनी टीम के साथ भी बराबर संपर्क में हैं, और सभी कानूनी विकल्पों की तलाश कर रहे हैं। इस मामले को हम बहुत तवज्जो दे रहे हैं और इस पर बारीकी से नज़र रखे हुए हैं। हमारी ओर से सभी राजनयिक एवं कानूनी सहायता जारी रहने वाली है। कतर के अधिकारियों के समक्ष भी हम इस फैसले को उठाएंगे। लेकिन इस केस की कार्यवाही की गोपनीय प्रकृति को देखते हुए इस मौके पर इससे अधिक टिप्पणी करना उचित नहीं होगा।”
मृत्यु-दंड की खबर से विपक्ष और देश की मीडिया भौचक्का है
अब सवाल उठता है कि इस मामले की जानकारी तो भारत सरकार और विदेश मंत्रालय को ही नहीं बल्कि देश-दुनिया के सभी मीडिया आउटलेट्स तक को थी। फाइनेंशियल टाइम्स ने तो इजरायली अधिकारी तक से इस बारे में संपर्क साधा था, हालांकि उनकी ओर से इस मामले में कोई टिप्पणी नहीं की गई। भारत में भी अनेकों मीडिया समूहों ने समय-समय पर क़तर में गिरफ्तार भारतीयों के बारे में खबरें प्रकाशित की हैं।
यहां तक कि भारत की संसद के भीतर भी कांग्रेस पार्टी के सांसद मनीष तिवारी द्वारा 7 दिसंबर 2022 को लोकसभा में इस सवाल को उठाया था, और पूछा था कि हमारे 8 भूतपूर्व नौ-सैनिकों को क़तर की सरकार ने गैर-क़ानूनी तौर पर पिछले 120 दिनों से क्यों हिरासत में ले रखा है? उनका कहना था कि सरकार को तत्काल इस मामले में क़तर के साथ राजनयिक संपर्क साध उनकी रिहाई के प्रयास करने चाहिए।
अपने बयान में उन्होंने कहा है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 26 दिसंबर को अपने जवाब में संसद को आश्वस्त किया था कि सरकार इस मामले में पूरी सक्रियता के साथ काम कर रही है। उन्होंने संसद में सरकार के सामने सवाल उठाया था कि इन नौ-सैनिकों के ऊपर कौन-कौन से आरोप लगाये गये हैं, और सरकार को इस बारे में संसद को विश्वास में लेना चाहिए।
सदन को इस बात की जानकरी नहीं है कि आखिर किन आरोपों के तहत हमारे बेहद प्रतिष्ठित भूतपूर्व नौ-सैनिकों को क़तर की सरकार ने गिरफ्तार किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि पूरा मामला बेहद गोपनीय तरीके से चलाया जा रहा है, और एस जयशंकर सहित विदेश मंत्रालय घमंड में चूर होकर मंत्रालय चला रहा है।
आज एक बार फिर एएनआई के साथ अपनी बातचीत में कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने केंद्र की मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कुछ महत्वपूर्ण सवाल खड़े किये हैं। उनका साफ़ कहना है कि, “यदि इन नौ-सैनिकों के साथ कुछ भी गलत होता है, तो इसके लिए भारत सरकार पूरी तरह से जिम्मेदार होगी। आखिर जी-20 की अध्यक्षता का क्या मतलब रह जाता है? ऐसे में आवश्यक है कि पीएम नरेंद्र मोदी इस मुद्दे को प्राथमिकता पर लेते हुए तत्काल क़तर के सर्वोच्च प्रमुख के साथ उच्च-स्तरीय वार्ता करें, और सभी नौ-सैनिकों की सकुशल स्वदेश वापसी के लिए हरसंभव कूटनीतिक प्रयास शुरू करें।”
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने भी क़तर में 8 पूर्व भारतीय नौ-सेना के अधिकारियों को मौत की सजा के ऐलान पर गहरा दुःख और चिंता जताते हुए उम्मीद जताई है कि भारतीय सरकार इन लोगों की जल्द से जल्द रिहाई के लिए क़तर सरकार के साथ सभी राजनयिक एवं राजनीतिक उपायों को अपनाने की पहल करेगी।
नौ-सेना के पूर्व अधिकारियों का ट्रैक रिकॉर्ड
बता दें कि ये सभी भूतपूर्व नौ-सेना अधिकारी कम से कम 20 वर्षों तक भारतीय नौ-सेना में अपनी सेवाएं दे चुके थे, और इनका ट्रैक रिकॉर्ड बेदाग़ रहा है। इन सभी ने नौ-सेना में महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए अपनी सेवाएं दी थीं और सेना में प्रशिक्षण तक दिया है।
इनमें से कमांडर पूर्णेंदु तिवारी 2019 में प्रवासी भारतीय सम्मान से नवाजे जा चुके हैं। बता दें कि प्रवासी भारतीयों को दिया जाने वाला यह सर्वोच्च सम्मान है। उस दौरान दोहा स्थित भारतीय दूतावास ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा था कि कमांडर तिवारी को यह पुरस्कार देश के बाहर भारत की छवि बेहतर बनाने में योगदान के लिए दिया गया है।
ये सभी नौ-सैनिक दहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजीज एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज नामक एक निजी कंपनी के लिए काम करते थे, जिसका काम क़तर के सशस्त्र बलों को प्रशिक्षण एवं अन्य सेवाएं प्रदान करना था। इस कंपनी का स्वामित्व रॉयल ओमान की वायुसेना से सेवानिवृत स्क्वाड्रन लीडर खामिस अल-अजमी के पास है। अजमी सहित एक अन्य कतरी नागरिक को भी पिछले वर्ष 8 भारतीय मूल के लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया था, लेकिन बाद में नवंबर 2022 को इन्हें रिहा कर दिया गया था।
गिरफ्तारी की वजह
बताया जा रहा है कि इनमें से कुछ अधिकारी क़तर के एक बेहद संवेदनशील एवं गोपनीय प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। इनके जिम्मे कतरी अमीरी नौ-सेना बल (QENF-क्यूइएनएफ) में इतालवी U212 स्टील्थ पनडुब्बियों को शामिल किये जाने की समूची प्रक्रिया की देखरेख की जिम्मेदारी थी। विभिन्न समाचार पत्रों की सूचना के आधार पर जानकारी निकल कर आ रही है कि क़तर में इन आठ भारतीयों पर इजरायल के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया गया था। हालांकि, उनके पास अपनी सज़ा के ख़िलाफ़ अपील करने की छूट थी।
ऐसी जानकारी मिल रही है कि इनमें से कुछ नौ-सैनिकों के परिवार की ओर से क़तर में क़ानूनी प्रयास किये गये हैं, हालाँकि इसे कोई लाभ नहीं हुआ। उनकी ओर से कई बार जमानत याचिकाएं दायर की गईं, लेकिन उन सभी को खारिज कर दिया गया, और गुरुवार को कतर की प्रथम दृष्टया अदालत ने उनके खिलाफ मृत्यु-दंड का फैसला सुना दिया।
एनडीटीवी की खबर के मुताबिक इस वर्ष मई माह में अल दहरा ग्लोबल ने दोहा में अपना कामधाम बंद कर दिया था और वहां काम करने वाले सभी लोग (मुख्य रूप से भारतीय) स्वदेश लौट आए हैं।
जहाँ तक भारत-क़तर के बीच व्यापारिक एवं कुटनीतिक संबंधों का प्रश्न है, तो इस बारे में 12 जुलाई 2021 की भारतीय विदेश मंत्रालय की विज्ञप्ति में दोनों देशों के बीच हाल के वर्षों में संबंधों में बड़े पैमाने पर सुधार को दर्शाया गया है। दोनों देशों के बीच में व्यापार संबंध पहले की तुलना में कई गुना बढ़े हैं। भारत में एलएनजी एवं पीएनजी की कुल खपत का 50% हिस्सा अकेले क़तर के द्वारा मुहैया कराया जाता है। एमईए की विज्ञप्ति के अनुसार, कतर में 2021 तक 700,000 से अधिक भारतीय नागरिक (अभी इनकी संख्या 8 लाख बताई जा रही है) कायरत थे। यह संख्या कतर में सबसे बड़े प्रवासी समुदाय को द्योतक है, जिसमें चिकित्सा क्षेत्र के साथ-साथ, इंजीनियरिंग , शिक्षा, वित्त, बैंकिंग, व्यापार और मीडिया जगत के अलावा बड़ी तादाद में ब्लू कॉलर श्रमिकों की भागीदारी क़तर के विकास और प्रगति में अपना योगदान दे रही है।
कतर की ओर से भारत सरकार को नौ-सैनिकों पर लगाये गये आरोपों की जानकारी का मुद्दा
यहां पर बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय नौ-सेना से अवकाश प्राप्त इन अधिकारियों ने क़तर के दुश्मन देश के लिए जासूसी जैसा कृत्य किया है या नहीं? कल भारतीय सरकार की ओर से इस बारे में एक स्पष्टीकरण यह भी दिया गया था कि किसी भी देश के मौजूदा कानूनों के तहत आरोपियों को सजा देने का प्रावधान जायज है। यदि भारत का कोई भी नागरिक विदेश में काम करता है तो वह उस देश के कानूनों के तहत संचालन करने के लिए बाध्य है।
हमारे देश का कोई नागरिक यदि उस देश में कोई आपराधिक कृत्य करता है तो उस देश के कानून के मुताबिक जो भी सजा मुकर्रर होती है, भले ही उस देश का कानून हमारे देश की तुलना में बेहद कड़ा या बर्बर ही क्यों न हो, वह उसका पात्र होगा। यही बात भारत के भीतर भी किसी भी विदेशी नागरिक के ऊपर लागू होती है। लेकिन जिन आरोपों के तहत क़तर की अदालत ने मृत्युदंड दिया है, उसके बारे में सारी मालूमात भारत सरकार के पास होनी चाहिए।
भारत सरकार के पास यदि पूरी जानकारी नहीं है, तो क्यों नहीं है? सरकार को यह भी बताना होगा कि उसके द्वारा पिछले 14 महीने से कौन-कौन से कूटनीतिक एवं राजनीतिक प्रयास किये गये और उसमें क्या सफलता हासिल हुई? पिछले वर्ष खबर थी कि उप राष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने फीफा विश्व कप के दौरान क़तर की यात्रा की थी, जिसमें इस मामले पर भी उच्च स्तर पर बातचीत की संभावना जताई जा रही थी, जो संभवतः नहीं हो सकी। दूसरी तरफ, यदि इजराइल के लिए जासूसी करने का आरोप सही पाया जाता है, तो यह अपने आप में भारत की छवि पर बड़ा धब्बा होगा।
एक पल को मान लेते हैं कि कोई व्यक्ति यदि भारत के लिए जासूसी करते हुए दूसरे देश में पकड़ा जाता है तो अंतर्राष्ट्रीय कानून की निगाह में यह अपराध होगा, लेकिन यह तो हर देश की ख़ुफ़िया एजेंसी के द्वारा किया जाता है। लेकिन किसी दूसरे देश में जाकर तीसरे देश के लिए जासूसी करना अकल्पनीय है। इसके लपेटे में देश की छवि धूमिल ही नहीं सशंकित हो जाती है।
पश्चिमी एशिया में इजराइल और खाड़ी के देश पिछले कई दशकों से शक्ति-संतुलन को अपने पक्ष में साधने की कोशिशों में लगे हैं। ऐसे में महत्वपूर्ण सामरिक सूचनाएं दुश्मन देश को पहुंच जायें तो देश के लिए रणनीतिक नुकसान होना स्वाभाविक है। बहरहाल, जो भी तथ्य हैं उसके बारे में देश की संसद के माध्यम से देश को अवगत कराने का काम भारत सरकार के जिम्मे है।
लेकिन इन नौ-सैनिकों की मृत्युदंड की सजा में कमी की एक उम्मीद अभी भी बची हुई है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सजायाफ्ता नौ-सैनिकों के परिवारों ने कतर के अमीर के समक्ष दया याचिका की अपील दायर की है। क़तर का कानून अमीर को रमजान, ईद और कतर के राष्ट्रीय दिवस-18 दिसंबर के मौकों पर दोषियों को माफ करने की इजाजत देता है। केंद्र की भाजपा सरकार और विदेश मंत्रालय की कोशिशें और क़तर के अमीर की ओर से दया याचिका पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाता है या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।