देहरादून/मसूरी। नगर पालिका के अध्यक्ष अनुज गुप्ता के खेल भी कम निराले नहीं हैं। इस खेल की कीमत रोडवेज को भी चुकानी पड़ रही है। अपने सियासी फायदे के लिए परिवहन निगम को एक कोने में सिमटाकर अनुज गुप्ता ने मासोनिक लॉज पार्किंग स्पेस प्राइवेट टैक्सी वालों के हवाले कर दिया है। टैक्सी वालों ने पार्किंग का पूरा स्पेस घेर लिया है, लेकिन रोडवेज को बस पार्किंग के लिए जगह तक नहीं है। यहीं नहीं यात्रियों के बैठने के लिए न तो शेड ही है, और न ही कर्मचारियों के लिए आफिस संचालन के लिए पर्याप्त जगह। दूसरी तरह अनुज गुप्ता की कृपा से दूसरे लोगों ने पूरे मासोनिक लॉज पर अवैध कब्जे कर लिए हैं।
1967 में नगर पालिका से 18248 वर्ग फुट की 99 साल के लिए लीज हासिल करने वाले परिवहन निगम को एक ढंग के कार्यालय के लिए न तो जगह मिल रही है और न ही पर्याप्त संख्या में बसों को पार्क करने के लिए ही स्पेस दिया जा रहा है। परिवहन निगम के अधिकारियों की भूमिका इस पूरे खेल को लेकर संदेह के घेरे में है। अधिकारियोें ने रोडवेज के हितों की पुख्ता सुरक्षा करने के बजाय किस आधार पर नगर पालिका को एनओसी प्रदान कर दी, यह सवाल खड़ा हो रहा है।
परिवहन निगम के महाप्रबन्धक दीपक जैन द्वारा नगर पालिका को लिखी चिटठी के मजमून से पता चलता है कि वर्ष 1967 में उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग ने सिटी बोर्ड मसूरी से 99 साल की लीज पर पिक्चर पलेस/मासोनिक लॉज में 18248 वर्ग फुट जगह रोडवेज बस स्टेशन के लिए हासिल की थी। इसके साथ ही 150 गुना 60 वर्ग फुट का एक समतल भूखण्ड रोडवेज के नाम लीज की गई थी, जिस पर रोडवेज का कार्यालय निर्मित किया गया था।
जैन ने नगर पालिका को लिखी चिटठी में रोडवेज की जरूरतों का हवाला देते हुए कहा है कि मसूरी में रोडवेज को बस स्टेशन में महिला-पुरूष शौचालय, यात्री विश्रामालय, टिकट घर, अमानत कक्ष, जलपान गृह, एमटीएम के लिए स्पेस, वाटर स्टैंड पोस्ट, सिक्योरिटी कक्ष के साथ ही प्रशासनिक भवन और बस पार्किंग के लिए पर्याप्ता जगह उपलब्ध कराई जानी चाहिए। जैन ने रोडवेज की इन जरूरतों की पूर्ति सुनिश्चित किए जाने के बाद ही नगर पालिका को बस स्टेशन के पूराने कार्यालय के ध्वस्तीकरण के लिए एनओसी जारी की।
इस सबके बीच नगर पालिका ने सड़क चौड़ीकरण का हवाला देते हुए रोडवेज का कार्यालय का ध्वस्तीकरण कर मासोनिक लॉज की एक दुकान के भीतर रोडवेज का कार्यालय खोल दिया गया। रोडवेज को नगर पालिका द्वारा एक और कमरा देने की बात कहीं गई, लेकिन परिवहन निगम ही मानता है कि उस कमरे में हवा-पानी जाने के लिए तक के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि रोडवेज ने आखिर अनुज गुप्ता के आगे अपने हितों की बलि क्यों चढ़ा दी। जो जगह रोडवेज को लीज पर हासिल थी, उस जगह पर प्राइवेट टैक्सी वालों के साथ ही दूसरे और लोगों ने अपनी-अपनी दुकानें सजा लीं, लेकिन रोडवेज को बड़े ही शातिराना तरीके से एक दुकान के भीतर सिमटा कर झुनझुना थमा दिया गया है। हालांकि अभी मासोनिक लॉज के आवंटन पर हाईकोर्ट ने रोक लगा रखी है, लेकिन परिवहन निगम के अधिकारी इस तरह आपसी सांठगांठ कर रोडवेज के हितों को ही कुर्बान करते रहेंगे तो उसके हाथ कुछ नहीं आने वाला।
मासोनिक लॉज घोटाले को लेकर हाईकोर्ट में रिट दायर करने वाले याचिकाकर्ता शेखर पांडेय ने शासन को एक प्रतिवेदन देकर इस प्रकरण में परिवहन निगम के अधिकारियों की भूमिका की जांच करने व रोडवेज के हितों की सुरक्षा करने की मांग की है।