November 13, 2024

लाल बहादुर सिंह

कांग्रेस ने अपना जो घोषणापत्र पेश किया है, उसकी जनकल्याण की आकर्षक गारंटियों ने हलचल पैदा की है। घोषणापत्र जारी होते समय एक पत्रकार के पूछने पर कि क्या यह चुनाव मोदी की गारंटी और कांग्रेस की गारंटी के बीच है, इस पर जब चिदम्बरम ने यह कहा कि मोदी की खोखली गारंटी के खिलाफ हमारी गारंटी ठोस हैं, तब राहुल गांधी ने हस्तक्षेप करते हुए, चिदम्बरम से सहमति व्यक्त करते हुए भी यह रेखांकित किया कि यह चुनाव मूलतः लोकतंत्र और संविधान को बचाने की लड़ाई है।

कांग्रेस के घोषणापत्र का मीडिया में आज ठीक-ठाक कवरेज है। न तो स्वयं मोदी, न उनके नेता-प्रवक्ता उसमें व्यक्त वादों-इरादों का कोई संतोशजनक जवाब दे पा रहे हैं। यह साफ है कि देश में माहौल बदलने लगा है। इसका पहला बड़ा संकेत 31 मार्च को रामलीला मैदान में हुई ऐतिहासिक रैली से मिला। जैसी कि उम्मीद थी उस दिन पूरे देश को यह सन्देश चला गया कि विपक्ष भाजपा को बराबर की टक्कर दे रहा है। यह अनायास नहीं है कि उसी दिन जानबूझकर ध्यान बटाने के लिए की गई मोदी की मेरठ रैली के बावजूद मीडिया को रामलीला मैदान की रैली को भी कवरेज देना पड़ा। कई अखबारों में तो विपक्षी रैली हावी रही और उस पर कई खबर की गईं। अनेक अखबारों ने, विशेषकर अंग्रेज़ी अखबारों ने इस पर सम्पादकीय भी लिखे।

जगन रेड्डी, नवीन पटनायक, बहन मायावती जैसे चंद उल्लेखनीय अपवादों को छोड़कर, रामलीला मैदान की रैली देश के लगभग सम्पूर्ण विपक्ष की विराट एकता की गवाह बनी। आसन्न नंगी तानाशाही के खतरे के बारे में देश की जनता को विपक्ष के सभी नेताओं ने बेहद चिंता भरे स्वर में आगाह किया। बेहद आक्रामक तेवर और समवेत स्वर में नेताओं ने इसे शिकस्त देकर संविधान और लोकतंत्र को बचाने की चुनौती कबूल करने का जनता से आह्वान किया।

रामलीला मैदान में जनता के स्वतःस्फूर्त उत्साह और भागेदारी के विपरीत मेरठ में जयंत चौधरी के परम्परागत गढ़ में जुटाई गई भीड़ में मोदी के भाषण में कुछ भी नयापन नहीं था, वह किसी घिसे पिटे टेप जैसा था- विपक्ष की भ्रष्टाचार के नाम पर घेरेबन्दी और विकसित भारत की हवा-हवाई लफ्फाजी। यह उबाऊ टेप अब बिहार से बंगाल तक की उनकी रैलियों में सुना जा सकता है।

जाहिर है अब इन बातों से जनता का कोई जुड़ाव नहीं बन पा रहा है। क्योंकि लोग अपने वास्तविक जीवन में जिन सवालों से जूझ रहे हैं, वह अलग ही हैं और स्वयं मोदी की विनाशकारी नीतियों का परिणाम हैं। इसीलिए अब उनकी ये बातें जनता के मन को छू नहीं पा रहीं।

जहां तक भ्रष्टाचार की बात है, इलेक्टोरल बॉन्ड महाघोटाले-जिन्हें वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के पति अर्थशास्त्री परकला प्रभाकर ने विश्व-इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला बताया है- के विस्फोटक खुलासों के बाद, अब यह बात समाज के सचेत हिस्सों से छिपी नहीं रही कि दरअसल यह तो मोदी सरकार और भाजपा थी जिसने ED, CBI, IT जैसी एजेंसियों का प्रयोग तमाम कम्पनियों को ब्लैकमेल कर उनसे लूट में हिस्सा लिया तथा तमाम कारपोरेट घरानों को लाखों करोड़ के सौदे देकर उनसे घूस में बड़े पाने पर धन उगाही की। यहां तक कि दवा और वैक्सीन कम्पनियों को भी नहीं बख्शा गया, भले ही इसमें गुणवत्ता समझौता हुई हो। quid pro quo के इस पूरे खेल में फ़र्ज़ी कम्पनियों का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया गया, जिन्होंने अपनी आमदनी और मुनाफे से कई गुना अधिक चंदा भाजपा को दे दिया ! ऐसा वे मोदी सरकार द्वारा बाकायदा बदले चंदा कानून के माध्यम से कर पायीं।

द हिन्दू की एक स्टोरी में बताया गया है कि 45 ऐसी कम्पनियों ने जिनकी आय का स्रोत संदिग्ध है, भाजपा को 1068.4 करोड़ के बॉन्ड दिए जो उनके द्वारा खरीदे गए कुल 1432.4 करोड़ के चंदे का 75% है। इन कम्पनियों में 33 तो ऐसी हैं जिनका मुनाफा लगभग शून्य या ऋणात्मक है, 6 कम्पनियों ने अपने मुनाफे से कई गुना अधिक चंदा दिया।

केजरीवाल की गिरफ्तारी उसी approver के बयान के आधार पर जिसने माफीशुदा सरकारी गवाह बनने के आगे पीछे भाजपा को कुल मिलाकर 65 करोड़ का बॉन्ड दिया है। एक आरोपी के पिता तो बाकायदा अब NDA के उम्मीदवार हैं, भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी-शाह के जेहाद का काला सच और भी साफ तरीके से उभर कर आ गया है कि कैसे स्वयं थैलीशाहों को बिजनेस में फायदा पहुंचाकर/उन्हें डरा करके अथाह धन की लूट इन्होंने स्वयं किया और राजनीतिक जरूरत और सुविधा के अनुरूप विरोधियों को भ्र्ष्ट तथा अपने साथ आने वालों को ईमानदारी का सर्टिफिकेट बांटते रहे।

द इंडियन एक्सप्रेस में छपी स्टोरी में बताया गया है कि 2014 से लेकर अब तक विपक्ष के 25 बड़े नेता जिनके खिलाफ एजेंसियों की जांच चल रही थी, वे पाला बदलकर भाजपा में शामिल हुए। उनमें से 23 को अब तक राहत मिल चुकी है, कई के खिलाफ मामले पूरी तरह बन्द हो चुके हैं। बस दो लोग किन्हीं कारणों से अभी तक लाभ उठा पाने से वंचित रह गए हैं।

हाल के दिनों में सरकारी खेमे के प्रतिकूल आये कई न्यायिक फैसले विपक्ष के अनुकूल राजनीतिक माहौल बनाने में मददगार साबित हुए हैं और भाजपा बैकफुट पर है। न सिर्फ इलेक्टोरल बॉन्ड पर उच्चतम न्यायालय का निर्णायक हस्तक्षेप, संजय सिंह को बेल, कुल वीवीपैट (VVPAT) की गिनती के सवाल पर याचिका की सुनवाई, बल्कि रामदेव प्रकरण में भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खिंचाई से मोदी सरकार की किरकिरी हुई है। इसी के साथ मीडिया में भी विपक्ष का कवरेज बढ़ने लगा है और सरकार की आलोचना की खबरें भी दिखने लगी हैं। जाहिर है यह सब समाज में बदलते माहौल और नए सामाजिक समीकरण की भी अभिव्यक्ति है।

दरअसल भाजपा आज चौतरफा घिरती जा रही है, अयोध्या से लेकर CAA तक उनके सारे मुद्दे फुस्स हो चुके हैं, मोदी के पास जनता को देने के लिए नया कुछ बचा नहीं है और इलेक्टोरल बॉन्ड के खुलासों ने भ्रष्टाचार को विपक्ष के खिलाफ सबसे बड़ा मुद्दा बनाने की उनकी मुहिम की हवा निकाल दी है। सच्चाई यह है कि भ्रष्टाचार के सवाल पर उनकी अब तक बचा कर रखी गयी साख को धक्का लगा है।

यही वह समय है जब विपक्ष के नेताओं को नई सरकार बनने पर वे जनकल्याण और लोकतांत्रिक सुधार के कौन कौन से काम करेंगे, इसे लेकर जोरशोर से मैदान में उतर पड़ना चाहिए और घर घर तक अपना सन्देश पहुंचाना चाहिए। दरअसल इसका एक बड़ा अवसर रामलीला मैदान की रैली थी, जहां से पूरे देश में बड़ा सन्देश जाता। हालांकि तेजस्वी राहुल व कुछ अन्य नेताओं ने कुछ बिंदुओं को छुआ जरूर, लेकिन जरूरत थी कि नई सरकार बनने पर जनकल्याण का पूरा वैकल्पिक एजेंडा पूरे इंडिया गठबंधन की ओर से loud and clear वहां पेश किया जाता। उससे लोकतंत्र की रक्षा के कार्यभार की केन्द्रीयता कम न होती बल्कि उसकी जरूरत जनता के जीवन के सरोकारों से जुड़कर और बढ़ जाती।

बहरहाल अब कांग्रेस और सीपीएम का घोषणापत्र आ चुका है और अन्य दलों के भी जनता से अनेक वायदे हैं। आज जरूरत इस बात की है कि पूरे गठबंधन की ओर से लोकतांत्रिक सुधार तथा जनकल्याण की योजनाओं को-युवाओं, किसानों, महिलाओं, श्रमिकों, हाशिये के तबकों के लिए ठोस वायदों को-जिसमें बेशक सभी विपक्षी दलों की बातें शामिल हों, उन्हें इंडिया गठबंधन की ओर से जन-जन तक पहुंचाया जाए और मोदी राज की चौतरफा विनाशलीला और तबाही के बरखिलाफ विकल्प के बतौर पेश किया जाय।

इतिहास के जिस चौराहे पर देश आज खड़ा है, वहां सत्ताधारी ताकतों द्वारा Free & fair चुनाव को बाधित कर येन केन प्रकारेण जनादेश अपने पक्ष में manipulate कर लेने और लोकतंत्र का अपहरण कर लेने का वास्तविक खतरा देश के सामने मुंह बाए खड़ा है, जनता की ताकत के बल पर इन सारी साजिशों और दमनचक्र को शिकस्त देकर जनता के सच्चे जनादेश को फलीभूत करते हुए दिल्ली में एक वैकल्पिक सरकार के गठन का ऐतिहासिक कार्यभार आज सम्पूर्ण विपक्ष तथा लोकतांत्रिक ताकतों के सामने उपस्थित है। क्या वे इतिहास की इस कसौटी पर खरी उतरेंगी?

(लाल बहादुर सिंह, पूर्व अध्यक्ष, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *