December 7, 2024

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने शनिवार को पीएम नरेंद्र मोदी के साथ सार्वजनिक बहस का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है और आशा जताई है कि प्रधानमंत्री इस संवाद में हिस्सा लेंगे। लेकिन अब भाजपा इस जन बहस से भाग रही है क्योंकि जैसे ही मोदी निमंत्रण स्वीकार कर लेंगे तो यहीं पर पहली हार हो जाएगी। भाजपा राहुल-मोदी सार्वजनिक बहस के ट्रैप में नहीं फंसना चाहती।  सेवानिवृत्त न्यायाधीश मदन बी लोकुर, सेवानिवृत्त न्यायाधीश अजीत पी शाह और एन राम ने इस साल लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान दोनों नेताओं द्वारा उठाए गए मुद्दों पर तटस्थ बहस का सुझाव दिया था और इसके मद्देनजर पत्र जारी किया था। राहुल गांधी ने सोशल साइट्स एक्स पर बहस के प्रस्ताव के पत्र का जवाब देते हुए कहा कि कांग्रेस इस पहल का स्वागत करती है और चर्चा के प्रस्ताव को स्वीकार करती है।

भाजपा ने बहस से भागते समय यह सवाल किया कि राहुल गांधी कौन हैं? इसकी शुरुआत हमेशा की तरह भाजपा आईटी सेल के अमित मालवीय ने कही। मालवीय ने एक्स पर लिखा- “अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत मिलने के बाद, राहुल गांधी अब अपने वजन से ऊपर उठ गए हैं”। बहस अच्छी है लेकिन किसी को, अकेले मौजूदा प्रधानमंत्री को, राहुल गांधी से बहस क्यों करनी चाहिए? वह न तो कांग्रेस अध्यक्ष हैं और न ही इंडिया गठबंधन का प्रधानमंत्री चेहरा हैं। कांग्रेस को राहुल गांधी को दोबारा लॉन्च करने के लिए ब्रांड मोदी का इस्तेमाल बंद करना चाहिए।’

पूर्व कांग्रेस नेता, जो अब बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं, जयवीर शेरगिल ने भी इस मुद्दे पर राहुल गांधी पर हमला किया। शेरगिल ने एक्स पर लिखा- संसद में राहुल गांधी का ट्रैक रिकॉर्ड: उपस्थिति: 51% राष्ट्रीय औसत: 79% बहस की संख्या: 8 राष्ट्रीय औसत: 46.7% उठाए गए प्रश्नों की संख्या: 99 राष्ट्रीय औसत: 210। वे संसद से भाग रहे हैं, अमेठी से भाग रहे हैं, जवाबदेही से भाग रहे हैं (पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ रहे हैं और विपक्ष के नेता नहीं बन रहे हैं) लेकिन फिर भी खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बहस करने का “हकदार” महसूस कर रहे हैं? भगोड़े शौक़ीन नेताओं से बहस करना मोदी जी के समय के लायक नहीं है!

भाजपा सांसद और भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने कहा- “राहुल गांधी कौन हैं, कि पीएम मोदी को उनसे बहस करनी चाहिए? राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के पीएम उम्मीदवार भी नहीं हैं, इंडिया गठबंधन की तो बात ही छोड़ दें। पहले उन्हें खुद को कांग्रेस का पीएम उम्मीदवार घोषित करवाएं, कहें कि वह अपनी पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेंगे और फिर पीएम को बहस के लिए आमंत्रित करें। तब तक, हम किसी भी बहस में उन्हें शामिल करने के लिए अपने भाजयुमो प्रवक्ताओं को तैनात करने के लिए तैयार हैं।”

भाजपा के अत्यंत जूनियर नेताओं के जवाब से साफ हो गया कि भाजपा राहुल-मोदी सार्वजनिक बहस के ट्रैप में नहीं फंसना चाहती।

जस्टिस (रिटायर्ड) मदन बी लोकुर, जस्टिस (रिटायर्ड) और भारत के विधि आयोग के पूर्व अध्यक्ष अजीत पी. शाह और वरिष्ठ पत्रकार एन राम (द हिन्दू के पूर्व संपादक) ने 9 मई को कांग्रेस नेता राहुल गांधी और पीएम मोदी को चुनाव से जुड़े सवालों का जवाब देने के लिए एक बहस के आयोजन का निमंत्रण भेजा। राहुल ने 11 मई को इस निमंत्रण को स्वीकार कर लिया। राहुल ने न सिर्फ निमंत्रण को स्वीकार किया, बल्कि सोशल मीडिया पर भी अपना जवाब डाल दिया।

राहुल ने लिखा- “मैंने मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ निमंत्रण पर चर्चा की और वे इस बात पर सहमत हुए कि इस तरह की बहस से लोगों को “हमारे नजरिए को समझने में मदद मिलेगी और वे एक सही विकल्प चुनने में सक्षम होंगे। हमारी और संबंधित पार्टियों पर लगाए गए किसी भी निराधार आरोप को खत्म करना भी महत्वपूर्ण है। चुनाव लड़ने वाली प्रमुख पार्टियों के रूप में, जनता अपने नेताओं से सीधे सुनने की हकदार है। इसलिए मुझे या कांग्रेस अध्यक्ष को ऐसी बहस में भाग लेने में खुशी होगी। हम एक सार्थक और ऐतिहासिक बहस में भाग लेने के लिए उत्सुक हैं। कृपया हमें बताएं कि क्या प्रधानमंत्री भाग लेने के लिए सहमत हैं, अगर सहमत हैं तो हम बहस के बाकी विवरण और प्रारूप (फॉर्मेट) पर चर्चा कर सकते हैं।”

राहुल के इस जवाब से भाजपा सन्न रह गई। काफी देर तक कोई जवाब नहीं आया। अमित शाह जो इस चुनाव को एक साल से राहुल बनाम मोदी करना चाहते थे, उन्होंने तो एकदम से चुप्पी साध ली। लेकिन भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेताओं ने जवाब देना शुरू किया और भाजपा के बयानों से साफ हो गया कि भाजपा ऐसी किसी भी सार्वजनिक बहस में मोदी को नहीं भेजने वाली है। मोदी ने शनिवार को जब से उड़ीसा के मुख्यमंत्री से जिलों की राजधानियों के नाम पूछे हैं, तब से इसकी संभावनाएं और क्षीण हो गई हैं। शनिवार को मोदी के इस भाषण के लिए काफी ट्रोल किया गया।

दरअसल जैसे ही अगर मोदी निमंत्रण स्वीकार कर लेंगे तो यहीं पर पहली हार हो जाएगी। क्योंकि मोदी, अमित शाह और भाजपा का अभी तक का हमला राहुल पर केंद्रित रहा है और अब उसी नेता से बहस के लिए उतरने का मतलब है आत्मरक्षा। वैसे भी अडानी-अंबानी मामले का जिक्र कर पीएम मोदी अभी खुद ही फंस चुके हैं। उस दिन के बाद से उन्होंने दोबारा अंबानी-अडानी का नाम राहुल के संदर्भ में नहीं लिया। मोदी मुसलमानों पर विवादित बयान देकर पहले से ही चर्चा में हैं।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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