July 27, 2024

नई दिल्ली: मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 370 को कमजोर कर जम्मू कश्मीर की विशेष स्थिति को खत्म करने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर 2 अगस्त से सुनवाई शुरू करने का फैसला किया है.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह 2 अगस्त से संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई शुरू करेगा और सोमवार और शुक्रवार को छोड़कर दैनिक आधार पर मामले की सुनवाई करेगा.

संविधान पीठ ने यह भी कहा कि सभी पक्षों को 27 जुलाई तक सभी दस्तावेज, संकलन और लिखित प्रस्तुतियां दाखिल करनी होंगी. पीठ में सीजेआई के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं.

न्यायालय ने कहा कि अधिवक्ता प्रसन्ना और कनु अग्रवाल सामान्य सुविधा संकलन तैयार करने के लिए नोडल वकील होंगे. इस बीच दो याचिकाकर्ताओं शाह फैसल और शहला रशीद ने अपनी याचिकाएं वापस लेने की अनुमति मांगी और अदालत ने इसे स्वीकार कर लिया.

मार्च 2020 में मामले की आखिरी सुनवाई के समय कुछ याचिकाकर्ताओं द्वारा संदर्भ की मांग के बावजूद सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इन याचिकाओं को सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को नहीं भेजने का फैसला किया था.

5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने संसद में एक प्रस्ताव लाकर अनुच्छेद 370 की अधिकतर धाराओं को खत्म कर दिया था और जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कम से कम 23 याचिकाएं दाखिल की गई हैं. इससे पहले जून 2018 में तत्कालीन राज्य की विधानसभा भंग कर और यहां राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया था.

दैनिक सुनवाई पर महबूबा मुफ्ती ने जताई आशंका

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ‘चार साल तक चुप रहने’ के बाद जम्मू कश्मीर के संबंध में अनुच्छेद 370 में किए गए बदलावों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दैनिक आधार पर सुनवाई करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आशंका व्यक्त की.

मंगलवार (11 जुलाई) को एक ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘भारत सरकार के हलफनामे पर भरोसा न करने का माननीय सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय इस बात की पुष्टि करता है कि अनुच्छेद 370 के अवैध निरस्तीकरण को उचित ठहराने के लिए उसके पास कोई तार्किक व्याख्या नहीं है.’

उन्होंने कहा कि इस बात को लेकर वैध आशंकाएं हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीर दौरे के बाद अनुच्छेद 370 को इतनी तत्परता से क्यों उठाया है.

मुफ्ती ने आगे कहा, ‘चार साल तक खामोश रहने के बाद मामले की रोजाना सुनवाई का फैसला संदेह पैदा करता है. आशा है कि इस देश का संविधान जिसकी न्यायपालिका शपथ लेती है, उन लोगों की सामूहिक अंतरात्मा को संतुष्ट करने के लिए सत्ता की वेदी पर बलिदान नहीं किया जाएगा, जो इस मामले के बारे में बहुत कम जानते हैं.’

इस बीच नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा कि 5 अगस्त 2019 को जब अनुच्छेद 370 हटाया गया तो कानून की धज्जियां उड़ गई थीं.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, संवाददाताओं से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘मामले को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने में चार साल लग गए. इससे पता चलता है कि हमारा केस कितना मजबूत है. यदि यह मजबूत नहीं होता तो वे कुछ ही हफ्तों में मामले की सुनवाई शुरू कर देते. उन्हें इतना समय लग गया, क्योंकि 5 अगस्त 2019 को कानून और आईन (अधिनियम – Aaeen Act) की धज्जियां उड़ा दी गई थीं.’

उमर ने आगे कहा, ‘आप इसे राजनीतिक रूप से जिस तरह चाहें पैकेज कर सकते हैं. आप इसे जी20 और पर्यटन से जोड़ सकते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि संवैधानिक और कानूनी रूप से जम्मू कश्मीर के साथ, जो हुआ वह गलत था. हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट हमें जवाब दे सकता है.’

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