December 7, 2024

नए मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम, 2023 (अधिनियम) के तहत चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 15 मार्च को सुनवाई करेगा।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और डॉ. जया ठाकुर (मध्य प्रदेश महिला कांग्रेस कमेटी की महासचिव) द्वारा दायर याचिकाओं का उल्लेख जस्टिस संजीव खन्ना, एमएम सुंदरेश और बेला एम त्रिवेदी की पीठ के समक्ष किया गया था।

कल 12 मार्च को जब प्रशांत भूषण ने शुरू में एडीआर की ओर से तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए याचिका का उल्लेख किया था, तो न्यायमूर्ति खन्ना ने वकील से एक उल्लेख पर्ची पेश करके उचित प्रक्रिया का पालन करने के लिए कहा था। आज जस्टिस खन्ना ने बताया कि याचिकाएं शुक्रवार के लिए सूचीबद्ध हैं।

न्यायमूर्ति खन्ना ने एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड प्रशांत भूषण से कहा कि मुझे अभी मुख्य न्यायाधीश से संदेश मिला है, मामले शुक्रवार के लिए सूचीबद्ध हैं।

दरअसल चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीफे के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय चयन पैनल द्वारा 15 मार्च तक चुनाव आयोग में आसन्न रिक्तियों को भरने की संभावना के बाद आया है।

याचिकाकर्ताओं ने अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ निर्णय (2023) के अनुसार चुनाव आयोग के एक नए सदस्य को तुरंत नियुक्त करने के लिए संघ को निर्देश देने की मांग करते हुए अंतरिम आवेदन दायर किए हैं, जहां यह निर्देश दिया गया था कि मुख्य चुनाव आयुक्त के पदों पर नियुक्तियां की जाएं। चुनाव आयुक्तों को राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक समिति द्वारा दी गई सलाह के आधार पर बनाया जाना चाहिए।

संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एडीआर की जनहित याचिका विशेष रूप से अनुच्छेद 14 और संविधान की बुनियादी विशेषताओं का उल्लंघन करने के लिए अधिनियम की धारा 7 को चुनौती देती है। यह खंड नियुक्ति प्रक्रिया की रूपरेखा बताता है, जिसमें कहा गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। समिति में अध्यक्ष के रूप में प्रधान मंत्री, एक सदस्य के रूप में लोक सभा में विपक्ष के नेता और एक अन्य सदस्य के रूप में प्रधान मंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।

गौरतलब है निर्वाचन आयोग में रिक्त पड़े चुनाव आयुक्त दो पदों को भरने के लिए 15 मार्च को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बैठक होने वाली है। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) कानून को लेकर शुक्रवार को एक सरकारी अधिसूचना जारी की गई थी। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को सिफारिशें करने के लिए प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री की अध्यक्षता में एक चयन समिति का प्रावधान है।

मुख्य चुनाव आयुक्त/आयुक्त के वेतन के संबंध में खंड 10 में संशोधन किया है। आयुक्तों को अभी सुप्रीम कोर्ट के जजों के बराबर वेतन मिलता है, लेकिन नए कानून के तहत उसमें आयुक्तों का वेतन कैबिनेट सचिव के बराबर कर दिया गया। कैबिनेट सचिव का वेतन जजों के बराबर है, लेकिन भत्तों व अन्य सुविधाओं में खासा अंतर है। सेवा शर्तों से जुड़े खंड-15 में संशोधन के साथ खंड 15(ए) जोड़ा गया है, जो चुनाव आयुक्तों को कानूनी संरक्षण से जुड़ा है। खंड-15 में आयुक्तों के यात्रा भत्ते, चिकित्सा, एलटीसी व अन्य सुविधाओं को जिक्र है, जबकि 15 (ए) में कहा है कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त जो फैसले लेंगे, उसके खिलाफ प्राथमिकी नहीं हो सकेगी, न ही फैसलों को कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी।

चुनाव आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर हटाया जा सकेगा

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित खंड में संशोधन किया  है, जिसमें आयुक्तों के सर्च पैनल का स्वरूप तय किया है। संशोधन के बाद अब आयुक्त की नियुक्ति से पहले देश के कानून मंत्री और भारत सरकार में सचिव स्तर के दो अधिकारी मिलकर पांच व्यक्तियों का पैनल तैयार करेंगे। इसी पैनल से अगला आयुक्त नियुक्त होगा। खंड 11 में मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्त हटाने की प्रक्रिया तय की है। मुख्य आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के जज की प्रक्रिया से ही हटाया जा सकेगा, जबकि चुनाव आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर हटाया जा सकेगा।

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