July 27, 2024

“अगर हिंदू राष्ट्र सचमुच एक वास्तविकता बन जाता है तो इसमें संदेह नहीं कि यह देश के लिए भयानक विपत्ति होगी, क्योंकि यह स्वाधीनता, समता और बंधुत्व के लिए खतरा है। इस दृष्टि से यह लोकतंत्र से मेल नहीं खाता। हिंदू राज को हर कीमत पर रोका जाना चाहिए। (डा.अंबेडकर, पाकिस्तान ऑर दि पार्टीशन ऑफ इंडिया, 1946, मुंबई, पृष्ठ 358)

आरएसएस  के “हिंदुत्व-गान’’ के बीच डा.अंबेडकर की इस चेतावनी को याद करना जरूरी है। खासतौर पर जब “हिंदुत्व में सबको हज़म करने’’ की ताकत का दावा भी किया जा रहा हो। भागवत को ”भारतीय” शब्द से तकलीफ़ है। वे चाहते हैं कि हिंदुस्तान के सभी निवासियों को हिंदू ही कहा जाए। सवाल ये है कि कि हिंदुत्व शब्द का अर्थ क्या है? न वेद न पुराण, न गीता न उपनिषद और न स्मृतियां- कहीं भी हिंदू धर्म या हिंदुत्व का जिक्र नहीं है। इस शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल किया विनायक दामोदर सावरकर ने। अंग्रेजों से माफी मांगकर जेल से छूटे सावरकर ने 1923 में पहली बार हिंदुत्व के सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए एक किताब लिखी थी। इसके बाद ही यह शब्द चलन में आया।

सावरकर के मुताबिक हिंदुत्व और हिंदू धर्म एक नहीं है। वे लिखते हैं, `हिंदुत्व एक शब्द नहीं, बल्कि इतिहास है। ये इतिहास केवल धार्मिक तथा अध्यात्मिक इतिहास नहीं है। अनेकों बार हिंदुत्व शब्द को उसी के समान किसी अन्य शब्द जैसे कि हिंदूवाद के समतुल्य मानकर बड़ी भूल की जाती है।….हिंदुत्व हमारी हिंदू नस्ल के संपूर्ण अस्तित्व से जुड़े विचार और गतिविधियों के सभी पहलुओं को समेटता है ‘

लेकिन बात आगे बढ़ती है तो वे खुद इस परिभाषा को भूल जाते हैं। वे लिखते हैं- ‘अगर निष्कर्षों की बात करें तो हिंदू वही है जो सिंधु से सागर तक फैली हुई इस भूमि को अपनी पितृभूमि मानता है। जो रक्त संबंध की दृष्टि से उसी महान नस्ल का वंशज है जिसका प्रथम उद्भव वैदिक सप्त सिंधुओं में हुआ। जो उसी नस्ल का है जिसकी संस्कृति संस्कृत भाषा में संचित है। जो सिंधुस्थान (हिंदूस्थान) को पितृभूमि ही नहीं, पुण्यभूमि भी स्वीकार करता है। ‘

इस लिहाज से तो भारत में पैदा हुआ कोई ईसाई या मुसलमान, जो इसे पुण्यभूमि करार देता हो, आराम से हिंदू माना जा सकता है। लेकिन कहां जनाब। सावरकर तुरंत इस खतरे को भांपते हुए स्थिति स्पष्ट करते हैं…’ईसाई और मुसलमान समुदाय, जो ज्यादा संख्या में अभी हाल तक हिंदू थे और अभी भी’ अपनी पहली पीढ़ी में नए धर्म के अनुयायी बने हैं, भले ही हमसे साझा पितृभूमि का दावा करें और लगभग शुद्ध हिंदू खून और मूल का दावा करे लेकिन उन्हें हिंदू के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती। क्योंकि नया पंथ अपनाकर उन्होंने कुल मिलाकर हिंदू संस्कृति का होने का दावा खो दिया है।

साफ है कि ये हिंदुत्व एक राजनीतिक अभियान है जो मुसलमानों, ईसाइयों के खिलाफ व्यापक हिंदू समाज को संगठित करके हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए है। तो चलिए मान लेते हैं कि हिंदुत्ववाद हिंदुओं की व्यापक एकता के लिए है। पर हिंदूओं की एकता की राह में सबसे बड़ी बाधा तो जातिप्रथा है। तो क्या हिंदुत्ववादी इसे खत्म करना चाहते हैं। बिलकुल नहीं। जातिप्रथा को हिंदू राष्ट्र के अभिन्न तत्व के रूप में समर्थन देते हुए सावरकर ने कहा कि ‘जिस देश में वर्णव्यवस्था नहीं है उसे म्लेच्छ देश माना जाए।

यही नहीं, दलितों और स्त्रियों को हर हाल में गुलाम बनाए रखने की समझ देने वाली मनुस्मृति को वेदों के बाद सबसे पवित्र ग्रंथ घोषित करते हुए सावरकर लिखते हैं.. ‘ यही ग्रंथ सदियों से हमारे राष्ट्र की ऐहिक एवं पारलौकिक यात्रा का नियमन करता आया है। आज भी करोड़ों हिंदू जिन नियमों के अनुसार जीवन यापन तथा आचरण व्यवहार कर रहे हैं, वे नियम तत्वत: मनुस्मृति पर आधारित है। आज भी मनुस्मृति ही हिंदू नियम (हिंदू लॉ) है। वही मूल है।’

इस लिहाज से देखा जाए तो हिंदुत्व और कुछ नहीं ब्राह्मणवाद को हर हाल में बनाए रखने का अभियान है। डा.अंबेडकर ने इसे बखूबी पहचानकर लिखा था कि ‘अगर हिंदू राज सचमुच एक वास्तविकता बन जाता है तो इसमें संदेह नहीं कि यह देश के लिए भयानक विपत्ति होगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *