July 27, 2024

LiveLaw

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (2 नवंबर) को इलेक्टरोल बॉन्ड स्कीम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने तीन दिनों तक मामले की सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), डॉ जया ठाकुर ने वित्त अधिनियम 2017 द्वारा पेश किए गए संशोधनों को चुनौती दी, जिसने इलेक्टरोल बॉन्ड स्कीम का मार्ग प्रशस्त किया।

याचिकाकर्ताओं के अनुसार, इलेक्टरोल बॉन्ड से जुड़ी गुमनामी राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करती है और मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि इस योजना में शेल कंपनियों के माध्यम से योगदान करने की अनुमति दी गई है। केंद्र सरकार ने इस योजना का बचाव यह सुनिश्चित करने की एक विधि के रूप में किया कि ‘सफेद’ धन का उपयोग उचित बैंकिंग चैनलों के माध्यम से राजनीतिक फंडिंग के लिए किया जाए। सरकार ने आगे तर्क दिया कि दानदाताओं की पहचान गोपनीय रखना जरूरी है, जिससे उन्हें राजनीतिक दलों से किसी प्रतिशोध का सामना न करना पड़े।

सुनवाई के दौरान, पीठ ने योजना के बारे में केंद्र सरकार से कई प्रासंगिक सवाल उठाए, उसकी “चयनात्मक गुमनामी” को चिह्नित किया और यह भी पूछा कि क्या वह पार्टियों के लिए रिश्वत को वैध बना रही है। पीठ ने कहा कि सत्ताधारी दल के लिए दानदाताओं की पहचान जानना संभव है, जबकि विपक्षी दलों को ऐसी जानकारी नहीं मिल सकती। पीठ ने इस शर्त को हटाने पर भी सवाल उठाया कि कंपनियां अपने शुद्ध लाभ का अधिकतम 7.5% ही राजनीतिक दलों को दान कर सकती हैं।

सुनवाई समाप्त करते हुए पीठ ने भारत के चुनाव आयोग को 30 सितंबर तक इलेक्टरोल बॉन्ड के माध्यम से सभी राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त योगदान का विवरण सीलबंद लिफाफे में अदालत को सौंपने का भी निर्देश दिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट प्रशांत भूषण (एडीआर के लिए), सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल (डॉ.जया ठाकुर के लिए), एडवोकेट शादान फरासत (सीपीआई (एम) के लिए), एडवोकेट निज़ाम पाशा और सीनियर एडवोकेट विजय हंसारिया ने बहस की। भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता संघ की ओर से पेश हुए।

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