राजनीतिक मौकापरस्ती के लिए कुख्यात यशपाल बेनाम जिस संघ परिवारी सियासत को खाद-पानी देकर सींचते आ रहे हैं आज वही बेनाम उसी का दंश झेल रहे हैं जिसको वे मौन रहकर हवा देते रहे हैं। उत्तराखण्ड में पिछले कुछ सालों से मुस्लिम विरोधी राजनीति को जिस तरह हिन्दू वर्चस्ववाद के नाम पर आगे बढ़ाया जा रहा है उसकी परिणति यही है जो आज शादी-विवाद जैसे निहायत एक पारिवारिक आयोजन को इस तरह सरेआम तमाशे में तब्दील किया जा रहा है। बेनाम की राजनीतिक मौकापरस्ती अपनी जगह है, लेकिन एक अर्न्तधार्मिक विवाह को लेकर बेटी की पसंद के साथ खड़ा होना काबिलेतारीफ है और बेनाम इसके लिए बधाई के हकदार हैं। जिस तरह से बेनाम का नफरती चिंटुओं द्वारा सरेआज तमाशा खड़ा किया जा रहा है, उसका जवाब बेनाम को भी राजनीतिक तौर पर ही पेश करना चाहिए। बेनाम को चाहिए वे नफरत का कारोबार करने वाली राजनीति को छोड़कर ऐसी राजनीति के साथ खड़ा होने का ऐलान करे, जो हिन्दू-मुस्लिम के बीच सौहार्द और भाईचारे के विचार को अपनाते हैं, न की समाज में नफरत की दरारें पैदा करने वालों के साथ। उत्तराखण्ड में जिस तरह नफरत को हवा दी जा रही है वह परेशान करने वाली है। हिन्दू वर्चस्ववादी राजनीति के साये में पल रहे ये नफरती कीड़े दो युवा जिंदगियों की मोहम्बत के ही नहीं बल्कि ये उत्तराखण्ड के भी दुश्मन हैं, इनसे सावधान रहना चाहिए। वाम राजनीतिक कार्यकर्ता इन्द्रेश मैखुरी ने विस्तार से नफरत के इन सौदागरों को जवाब दिया है, जिसे पढ़ा जाना चाहिए- दीपक आज़ाद
मोहब्बत के नाम से जिनके दिमागों में घृणा उपजती है, उन्हें मानसिक उपचार की जरूरत है !
-इन्द्रेश मैखुरी
पौड़ी में होने वाली एक शादी का कार्ड वायरल है, बहुतेरे इस पर हाय तौबा मचाए हुए हैं. हाय तौबा इसलिए कि अंतर धार्मिक विवाह हो रहा है, जिसमें लड़की हिन्दू है और लड़का मुस्लिम है.
दोनों ने साथ बी.टेक किया और अब साथ नौकरी कर रहे हैं. उन्होंने जीवन भी साथ बिताने का निर्णय लिया. किसी उदार समाज, उदार मुल्क में यह बात होती तो चर्चा का विषय भी न बनती. दो बालिग लोग विवाह कर रहे हैं, उसमें चर्चा करने जैसी कौन सी बात है !
लेकिन एक समाज के तौर पर हमारा जैसा दक़ियानूसी, रूढ़िवादी मानस बनाया जा रहा है, उसमें ऐसा लगता है कि यह विवाह ही सबसे बड़ी विपत्ति जो उत्तराखंड के सामने आ गयी है और चौतरफा रुदन-क्रंदन मचा हुआ है. कतिपय तो ऐसे फुफकार रहे हैं, गोया उनका कोई व्यक्तिगत नुकसान हो गया हो.
मुस्लिमों के शादी करने के नाम पर ही लोगों को लव जेहाद नज़र आने लगता है. कुछ को तुरंत सूटकेस और उसमें पैक की हुई लड़की की देह याद आने लगती है. इसका संदर्भ यह कि बीते बरस लिव इन में एक हिन्दू लड़की के साथ रहने वाले आफताब पूनावाला ने उस लड़की श्रद्धा वाकर के शव के क्रूरता पूर्वक 35 टुकड़े किए और उन्हें अंजान जगहों पर फेंक आया.
पर उत्तराखंड वालो तुम डीप फ्रीजर और सूटकेस में लड़की को काट कर फेंके जाने के लिए दिल्ली तक क्यूँ जाते हो, वैसा घटनाक्रम तो अपने ही देहरादून में हो चुका है. 2010 में राजेश गुलाटी ने अपनी ब्याहता पत्नी अनुपमा गुलाटी के 72 टुकड़े किए, उन्हें डीप फ्रीजर में रखा और फिर उन्हें देहरादून के जंगलों में फेंकता रहा.
देहरादून के घटनाक्रम में कोई मुस्लिम न था, इसलिए शायद हिन्दू धर्मध्वजा धारियों को इसे याद करने की जरूरत महसूस नहीं होती.
जैसे हर हिन्दू राजेश गुलाटी नहीं है, ठीक वैसे ही, हर मुस्लिम आफताब पूनावाला नहीं है.
और जिन्हें हिन्दू लड़की के मुस्लिम से विवाह पर इतनी दिक्कत हो रही है, वे बताएं कि जगदीश चंद्र तो मुस्लिम भी न था ! बहुतेरों के दिमाग में प्रश्न उठेगा, कौन जगदीश चंद्र ? अल्मोड़ा जिले का राजनीतिक कार्यकर्ता था, जगदीश चंद्र. 01 सितंबर 2022 को क्रूरता पूर्वक कत्ल कर दिया गया, जगदीश चंद्र.
कमाल है, आपकी याददाश्त, आपको मई 2022 को दिल्ली में कत्ल करने वाला आफताब पूनावाला याद रहता है और सितंबर 2022 में उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में कत्ल होने वाला जगदीश चंद्र याद नहीं रहता या उसका पता भी नहीं चलता !
जगदीश चंद्र हिन्दू तो था पर दलित था और उसका गुनाह ये था कि उसने एक सवर्ण हिन्दू लड़की से प्रेम विवाह किया था. इस प्रेम की की कीमत, उसे जान गंवा कर चुकानी पड़ी. पौड़ी वाले प्रेम विवाह पर हाय-तौबा मचाने वाले अधिकांश को न तो जगदीश चंद्र पता है, न याद. कैसे याद रहेगा, राज्य के मुख्यमंत्री ने जगदीश चंद्र की हत्या पर एक शब्द नहीं बोला, ना ही जगदीश चंद्र के लिए किसी मुआवजे की घोषणा हुई. प्रदेश कॉंग्रेस के अध्यक्ष ने भी जगदीश चंद्र के घर जा कर सांत्वना देने जाने का “खतरा” मोल नहीं लिया !
जब पौड़ी वाली शादी के कार्ड पर हायतौबा मची हुई है, उसी वक्त अखबार में खबर है कि चंपावत के गौरव पांडेय का एक युवती से लंबे समय तक प्रेम प्रसंग चला और फिर उसने कहीं और शादी कर ली. पूर्व प्रेमिका शादी का दबाव बना रही थी तो उसने, उक्त युवती की हत्या कर दी. खबर के अनुसार हत्यारोपी कथावाचक है !
मुझे अफसोस है कि एक प्रेम विवाह के मामले में ऐसे वीभत्स उदाहरण देने पड़ रहे हैं.
अरे हमारे पुरखे तो वो बहादुर चंद्र सिंह गढ़वाली और उनके साथी गढ़वाली सैनिक थे, जिन्होंने पेशावर में निहत्थे पठानों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया. ऐसा करने की एवज़ में गरीब घरों से फौज में भर्ती हुए उन गढ़वाली वीर सैनिकों ने अपनी नौकरियाँ गंवाई, पेंशन खोयी, कोर्ट मार्शल और काला पानी झेला. लेकिन इसके बावजूद वे साधारण सैनिक आज भी याद किए जाते हैं क्यूंकि सांप्रदायिक घृणा को दरकिनार करना तब भी असाधारण काम था और आज भी यह असाधारण ही बना हुआ है.
धर्म और संस्कृति के स्वयंभू ठेकेदारो, तुम जानते हो कि उत्तराखंड का जो सर्वाधिक लोकप्रिय गीत है – बेडु पाको बारामासा- उसको पूरी दुनिया में प्रसिद्ध करने वाले गायक का नाम मोहन उप्रेती था और उनकी जीवन संगिनी थी- नईमा खान ! नईमा खान उप्रेती खुद भी आला दर्जे की कलाकार थी और पूरा जीवन उन्होंने उत्तराखंडी लोकगीतों और रंगमंच को समर्पित किया.
बेशक वे कहीं बाहर से नहीं आयीं थीं, अल्मोड़ा में ही पैदा हुई थीं. लेकिन मुस्लिम नाम सुनते ही जिनके भीतर घृणा बजबजाने लगती है, उन्हें कहाँ पता होगा कि पहाड़ में विभिन्न इलाकों में मुस्लिमों के गांव हैं ! धर्म और संस्कृति के स्वयंभू ठेकेदारों को तो यह भी मालूम नहीं होगा कि उत्तराखंड में लोकगीतों की बाकायदा एक विधा है, जिसका नाम है- सैदवाली ! कभी सुनो सुरों के उस्ताद केशव अनुरागी को, वो लरज़ाती, थिरकती आवाज़ में गाते हैं-
“म्यारा मियां रतना गाज़ी, सल्लाम वाले कुम
तेरी वो बीवी फातिमा, सल्लाम वाले कुम…”
न सुना हो तो इस लिंक पर जाकर सुनो –
https://www.youtube.com/watch?v=1wEy134-z0Q
एक हिंदू शिक्षित युवती के एक मुस्लिम शिक्षित युवा से विवाह करने पर नफरत की बौछार करने वाले नफरत के प्रसारको, ऐसे तमाम उदाहरण हैं सांप्रदायिक सौहार्द का पक्ष पोषण करने वाले. आज ये जो घृणा बोयी जा रही है, यह वोटों की लहलहाती फसल काटने के लिए बोयी जा रही है.
पता नहीं कितने लोगों ने उन यशपाल बेनाम का नाम, उनकी बेटी के शादी के कार्ड के वायरल होने से पहले सुना था ! वे पौड़ी के विधायक रहे, लगातार दो बार से नगरपालिका के अध्यक्ष हैं, विधायक बनने से पहले भी नगरपालिका के अध्यक्ष रहे. कॉंग्रेस में भी रहे और आजकल भाजपा में हैं. एक राजनीतिक व्यक्ति के तौर पर उनके कार्यों से मेरी घनघोर असहमति है. उनके कामों के मसले पर चौराहे पर सभा आयोजित कीजिये, उनके कारनामों के बारे में बोलते हुए, उनकी धज्जियां उड़ा सकता हूँ.
पर ये तो उन्होंने बेहद साहस का काम किया है. अपनी बेटी की पसंद का सम्मान करना और उसके साथ खड़े होने, निश्चित ही सराहनीय है. इस काम के लिए उनके पक्ष में मजबूती से खड़े होने की जरूरत है. वे इतने उदार और खुले दिमाग के व्यक्ति हो सकते हैं, यह मैं नहीं जानता था. इस काम के लिए उनकी लानत-मलामत करने वाले सिर्फ और सिर्फ घृणा में डूबे हुए लोग हैं, नफरत की राजनीति ने उनकी सोच-समझ का हरण कर लिया है और वे जहर बुझे फनफनाते घूम रहे हैं ! दो युवाओं की मोहब्बत के शादी के मुकाम पर पहुँचने में जिनके भीतर घृणा उपज रही है, उन्हें मानसिक उपचार की जरूरत है !