June 16, 2025

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे ने शनिवार (19 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करते हुए शीर्ष अदालत पर देश में ‘धार्मिक युद्ध’ भड़काने का आरोप लगाया.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 368 के तहत केवल संसद को कानून बनाने का अधिकार है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका उनकी व्याख्या तक सीमित है.

निशिकांत दुबे ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, ‘अनुच्छेद 368 में कहा गया है कि इस देश में कानून बनाने का अधिकार केवल संसद को है. कानून की व्याख्या करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को है. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला करना चाहिए कि क्या करना है और राज्यपाल को तीन महीने के भीतर फैसला करना चाहिए.’

दुबे ने यह भी कहा कि भारत भगवान राम, कृष्ण, सीता, राधा, 12 ज्योतिर्लिंगों और 51 शक्तिपीठों की परंपराओं में गहराई से निहित है, जिसमें हजारों साल पुरानी सनातन परंपरा है.

झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद ने दावा किया, ‘जब राम मंदिर का मुद्दा उठता है, तो आप (सुप्रीम कोर्ट) कहते हैं ‘दस्तावेज दिखाओ’; जब मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा आता है, तो आप कहेंगे ‘दस्तावेज दिखाओ’; जब ज्ञानवापी मस्जिद की बात आती है, तो आप फिर कहेंगे ‘दस्तावेज दिखाओ’. लेकिन जब मुगलों के आने के बाद बनी मस्जिदों की बात आती है, तो आप कहते हैं कि दिखाने के लिए कोई दस्तावेज नहीं हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इस देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सिर्फ और सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही जिम्मेदार है.’

यह ताज़ा घटनाक्रम दुबे की उस टिप्पणी के कुछ ही घंटों बाद सामने आया, जिसमें उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा था कि क़ानून यदि सुप्रीम कोर्ट ही बनाएगा तो संसद भवन बंद कर देना चाहिए.

उल्लेखनीय है कि उनकी टिप्पणी वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के बीच आई है.  केंद्र ने 17 अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय को आश्वासन दिया था कि वह फ़िलहाल ‘वक्फ-बाय-यूजर’ के किसी भी प्रावधान को रद्द नहीं करेगा और बोर्ड में किसी भी गैर-मुस्लिम सदस्य को शामिल नहीं करेगा.

यह आश्वासन शीर्ष अदालत द्वारा यह कहे जाने के एक दिन बाद आया है कि वह कानून के उन हिस्सों पर रोक लगाने पर विचार करेगी.

ज्ञात हो कि महीने की शुरुआत में संसद के दोनों सदनों से पारित इस अधिनियम को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की गई थीं, जिसमें कहा गया था कि यह मुस्लिम समुदाय के प्रति भेदभावपूर्ण है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में राज्यपालों के विधेयकों को लंबे समय तक मंजूरी न देने को मनमाना बताते हुए उन्हें संविधान के अनुरूप चलने को कहा था.

सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को कहा था कि तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा दस महत्वपूर्ण बिलों को मंजूरी न देना और उन्हें राष्ट्रपति की सहमति के लिए सुरक्षित रखना गैरकानूनी है. राज्यपाल इस तरह से कानून को वीटो नहीं कर सकते.

भाजपा ने दुबे के बयान से किनारा किया

निशिकांत दुबे की ओर से की गई टिप्पणी के बाद देश में सियासी तूफान आ गया है. हालांकि, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने निशिकांत के बयान से खुद को अलग कर लिया है.

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शनिवार (19 अप्रैल) देर रात एक ट्वीट कर कहा, ‘भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा का न्यायपालिका एवं देश के चीफ जस्टिस पर दिए गए बयान से भारतीय जनता पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है. यह इनका व्यक्तिगत बयान है, लेकिन भाजपा ऐसे बयानों से न तो कोई इत्तेफाक रखती है और न ही कभी भी ऐसे बयानों का समर्थन करती है. भाजपा इन बयान को सिरे से खारिज करती है.’

 

नड्डा ने आगे लिखा, ‘भारतीय जनता पार्टी ने सदैव ही न्यायपालिका का सम्मान किया है, उनके आदेशों और सुझावों को सहर्ष स्वीकार किया है क्योंकि एक पार्टी के नाते हमारा मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय सहित देश की सभी अदालतें हमारे लोकतंत्र का अभिन्न अंग हैं तथा संविधान के संरक्षण का मजबूत आधारस्तंभ हैं. मैंने इन दोनों को और सभी को ऐसे बयान न देने के लिए निर्देशित किया है.’

विपक्ष ने कड़ी प्रतिक्रिया दी, संस्थानों को कमज़ोर करने का लगाया आरोप

विपक्षी दलों ने भी इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. विपक्ष का कहना है कि शीर्ष अदालत पर उनका हमला ‘स्वीकार्य नहीं है. कोर्ट को उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए.

कांग्रेस के नेता मणिकम टैगोर ने निशिकांत के बयान को ‘अपमानजनक’ करार दिया और कहा कि शीर्ष अदालत पर उनका हमला ‘स्वीकार्य नहीं है.’ उन्होंने कहा, ‘यह सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ एक अपमानजनक बयान है. निशिकांत दुबे एक ऐसे शख्स हैं जो लगातार सभी अन्य संस्थानों को ध्वस्त करते रहते हैं. अब, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर हमला किया है.’

टैगोर ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के जज इस पर ध्यान रखेंगे क्योंकि वह संसद में नहीं बल्कि संसद के बाहर बोल रहे थे. सुप्रीम कोर्ट पर उनका हमला स्वीकार्य नहीं है.’

कांग्रेस के एक अन्य सांसद इमरान मसूद ने कहा कि भाजपा नेता की ओर से दिया गया यह बयान ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ है. मसूद ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ जिस तरह के बयान आ रहे हैं, वे बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं… यह पहली बार नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने पूर्ण बहुमत वाली सरकार के खिलाफ फैसला दिया है… यह हताशा समझ से परे है.’

पूर्व विदेश मंत्री और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा, ‘अगर कोई सांसद सुप्रीम कोर्ट या किसी भी कोर्ट पर सवाल उठाता है तो यह बहुत दुख की बात है. हमारी न्याय व्यवस्था में अंतिम फैसला सरकार का नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट का होता है. अगर कोई इसे नहीं समझता है तो यह बहुत दुख की बात है.’

आम आदमी पार्टी की प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने कहा, ‘उन्होंने (निशिकांत दुबे) बहुत ही घटिया बयान दिया है. मुझे उम्मीद है कि कल ही सुप्रीम कोर्ट भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर अवमानना ​​की कार्यवाही शुरू करेगा और उन्हें जेल भेजेगा. जब भी कोई जज भाजपा के पक्ष में फैसला देता है तो उसे राज्यसभा भेज दिया जाता है और अब जब एक जज ने यह निर्देश दिया कि कानून का पालन किया जाना चाहिए और राज्यपालों को बिलों पर अनिश्चितकाल तक नहीं बैठना चाहिए, तो भाजपा जजों को बदनाम करने और सुप्रीम कोर्ट पर हमला करने के लिए अपने सभी संसाधनों का इस्तेमाल कर रही है.’

वहीं, कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने भी इस बयान पर निराशा जाहिर करते हुए कहा, ‘वे सुप्रीम कोर्ट को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं. संवैधानिक पदाधिकारी, मंत्री, भाजपा सांसद सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बोल रहे हैं जबकि सुप्रीम कोर्ट एक बात कह रहा है कि जब कोई कानून बनता है, तो आपको संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ नहीं जाना चाहिए और अगर कानून संविधान के खिलाफ है, तो हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे.’

उन्होंने यह भी कहा, ‘जानबूझकर सुप्रीम कोर्ट को निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि चुनावी बॉन्ड जैसे कई मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार ने जो किया है वह असंवैधानिक है.’

डीएमके नेता टीकेएस एलंगोवन ने भी निशिकांत के बयान की आलोचना करते हुए कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट देश के कानूनों की रक्षा के लिए होता है. सरकार बर्बर है क्योंकि वे किसी भी कानून का सम्मान नहीं करती. वे जो चाहें करती है और संविधान के प्रावधानों को बदलने की कोशिश करते हैं. भाजपा सभी कानूनों के खिलाफ जा रही है. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कानून के खिलाफ न जाने की सलाह दी है.’

इस संबंध में हैदराबाद से सांसद और एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ‘आप लोग (भाजपा) ट्यूबलाइट हैं. इस तरह से कोर्ट को धमका रहे हैं. क्या आपको पता है कि (अनुच्छेद) 142 (संविधान का) क्या है?, इसे आंबेडकर ने बनाया था. भाजपा धोखाधड़ी कर रही है और धार्मिक युद्ध की धमकी दे रही है.’

झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के प्रवक्ता मनोज पांडेय ने भी निशिकांत दुबे के सुप्रीम कोर्ट पर दिए गए बयान को लेकर निशाना साधते हुए कहा, ‘देश में तानाशाही इस स्तर पर पहुंच गई है कि अब संसद का एक सदस्य कोर्ट को चुनौती दे रहा है. क्या ये लोग जजों से ज्यादा विद्वान हो गए हैं? बहुमत के अंधेरे में ये क्या कुछ कर लेंगे और कोर्ट चुप रहेगा? जब कोर्ट इनके पक्ष में फैसला देता है तो ये कहते हैं कि न्यायपालिका लोकतंत्र का तीसरा स्तंभ है.’

उन्होंने कहा कि कोर्ट को इनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए. ‘यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है.

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