क्या से सब बेरोजगारी, भर्ती घोटालों , भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने की सोची समझी चालें हैं
अखर शेरविंद
‘साम्प्रदायिकता सदैव संस्कृति की दुहाई दिया करती है. उसे अपने असली रूप में निकलते शायद लज्जा आती है, इसलिए वह … संस्कृति का खोल ओढ़कर आती है।’–प्रेमचंद (साम्प्रदायिकता और संस्कृति)
जिस उत्तराखंड में देवताओं के जागरों में सैय्यद नाचता हो। अब्दुल घरभूत बन जाता हो। न जाने कितने गांवों में गुरु का झंडा पूजा जाता हो। अरदास होती हो। जिस धरती के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में गढ़वाली फौजियों ने पेशावर में निहत्थे पठानों पर गोली चलाने के अंग्रेजों के आदेश को ठुकरा कर सांप्रदायिक भाईचारे कि मिसाल पेश की हो। वहीं की हवा में आजकल एक जहर घुल रहा है। दिलों में दूरियां बढ़ाने वाला सांप्रदायिकता का जहर। लव जिहाद, लैंड जिहाद, मजार जिहाद, जैसे जुमलों से सांप्रदायिकता की फसल को खाद -पानी देने का काम जारी है। नफरत की खेती का आलम यह है कि देश में जन्मी उर्दू भाषा तक लोगों को बर्दाश्त नहीं हो रही।
बीते 7 अप्रैल 2023 को देहरादून की जिलाधिकारी के सामने एक अजीबो गरीब शिकायत आई। आईसीएसई बोर्ड के एक स्कूल की दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले एक बच्चे के पिता मनीष मित्तल ने शिकायत की कि अपनी स्कूल की पाठ्यपुस्तक में उर्दू में मां और पिता के लिए शब्द पढ़ने के बाद उनके बच्चे ने उन्हें ‘अम्मी और अब्बू’ कहा। मित्तल ने कहा कि जब उन्होंने अपने बेटे को उन्हें अब्बू और अम्मी कहते सुना तो वे चौंक गए। एक अंग्रेजी पाठ्यपुस्तक के पहले अध्याय में अम्मी और अब्बू का प्रयोग माता और पिता के लिए किया गया है। यह किताब देश भर में आईसीएसई बोर्ड के स्कूलों में पाठ्यक्रम का एक हिस्सा रही है लेकिन किसी ने आपत्ति नहीं जताई। संभवतः
उत्तराखंड में किसी ने पहली बार आपत्ति की। मित्तल ने कहा कि अंग्रेजी किताबों में अम्मी और अब्बू का इस्तेमाल अनुचित और शरारतपूर्ण है। हिंदी की किताबों में माता और पिता का और उर्दू की किताबों में अम्मी और अब्बू का इस्तेमाल होना चाहिए। मित्तल ने किताब में इन शब्दों के इस्तेमाल को ‘धार्मिक आस्था पर हमला’ बताते हुए किताब पर पाबंदी लगाने की मांग की। उन्होंने कहा कि अभी सिर्फ नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हुई है और तत्काल कार्रवाई से इस तरह की ‘धर्म-विरोधी प्रथाओं’ को रोका जा सकता है। मौका देख हिंदू वाहिनी भी मामले में कूद पड़ी। उसने भी देहरादून के मुख्य शिक्षा अधिकारी प्रदीप कुमार से इस किताब को पाठ्यक्रम से हटाने की मांग की। प्रदीप कुमार ने इस बाबत आईसीएसई से संबद्ध स्कूल के प्रधानाचार्यों और शिक्षाविदों की राय मांगने की बात कही तो वहीं विद्यालयी शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने जांच की बात कर निष्कर्षों के आधार पर आगे की कार्रवाई की बात की तो मामले पर कुछ ठंडा पानी पड़ा।
यह जहर शहरों तक नहीं बल्कि दुर्गम पहाड़ों तक फैल चुका है। अप्रैल में ही एक और घटना हुई। देहरादून जिले के त्यूणी तहसील के दारागाड़, सुनीर गांव, चांटी, अटाल, हिड़सू, अणू प्लासू, लखवाड़, चान्दनी, मेंद्रथ डंडोली, पुरटाड (धनराश), हनोल (बिवलाड़ा) आदि में पीढियों से रह रहे वनगुज्जर परिवारों को रुद्र सेना नामक संगठन से जमीन खाली करने की धमकियां मिलने लगी। त्यूणी के वन गुज्जर समाज के मोहम्मद रमजान, शमशेर अली, अशरफ अली, सूफी नूर अहमद, अली शेर, शमशाद और अमीर हम्जा को 15 अप्रैल 2023 को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था आयोग के अध्यक्ष जस्टिस नरेंद्र कुमार जैन को पत्र लिखकर तत्काल प्रभाव से वन गुज्जरों को सुरक्षा मुहैया कराने और मामले की न्यायिक जांच के लिए केंद्र व राज्य सरकार को सिफारिश करने और अशांति फैलाने वाले असमाजिक तत्वों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की मांग करने पर मजबूर होना पड़ा।
बता दें कि उत्तराखंड के हरिद्वार, देहरादून, उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी, रूद्रप्रयाग व चमोली, अल्मोडा, नैनीताल व उधमसिंह नगर समेत तमाम विभिन्न जिलों में वन गुज्जर समाज कई दशकों से आबाद हैं। इनमें से हजारों परिवारों के पास राज्य सरकार की ओर से प्रदान किये गये वन परमिट भी हैं। पूर्व में सैकड़ों वन गुज्जर परिवारों को केंद्र सरकार व राज्य सरकार विस्थापित भी कर चुकी है।
वन गुज्जरों ने अपनी शिकायत में कहा कि काफी लंबे समय से कुछ असामाजिक तत्व समाज में अशांति फैलाने की नीयत से वन गुज्जर समाज को निशाना बना रहें हैं। गुज्जरों को उनके धार्मिक, शैक्षिक कार्यों से रोका जा रहा है। साथ ही अपनी निजी सम्पत्तियों में निवास करने वाले वन गुर्जरों तक को क्षेत्र से बेदखल करने ओर सामाजिक बहिष्कार करने तक की धमकी दी जा रही है। वन गुज्जर समाज की ओर से शैक्षिक कार्य के लिये बनाए गये केंद्रों को तोड़ा जा रहा है।
पिछले कुछ समय से क्षेत्र के कुछ असमाजिक तत्व रैली निकाल कर ओर सोशल मीडिया में विडियो एवं कुछ फोटो डाल कर उन्हें यहां से चले जाने की धमकी दे रहें है। त्यूणी तहसील के अंन्तर्गत पड़ने वाले कई गांवों में सांप्रदायिक विद्वेष का माहौल बनाकर वन गुज्जरों का सामाजिक उत्पीड़न किया जा रहा है। राकेश तोमर (रूद्र सेना का अध्यक्ष) ने 10 अप्रैल 2023 तक उन्हें क्षेत्र खाली करने की धमकी दी और यह भी कहा कि अगर क्षेत्र खाली नही किया तो वे अशांति फैला देंगे।
उन्होंने अपने शिकायती पत्र में कहा कि राकेश तोमर की धमकी से त्यूणी क्षेत्र में आशांति फैलने का खतरा उत्पन हो गया। औरतें-बच्चे तक दहशत में आ गए। लोगों ने अपनी जान, माल, इज्जत आबरू की रक्षा के लिए 5 अप्रैल 2023 को देहरादून की जिला अधिकारी व पुलिस कप्तान को शिकायत दर्ज कराई। जिला अधिकारी ने एसडीएम चकराता व पुलिस कप्तान ने त्यूणी थाना इंचार्ज को मामला का संज्ञान लेने को कहा। वन गुज्जर भी थाना प्रभारी से मिले, उसके बाद देहरादून में कुछ सामाजिक संगठनों ने जिला प्रशासन से मुलाकात कर राकेश तोमर के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने की बाबत पत्र दिए। 10 अप्रैल को राकेश तोमर ने रैली तो नहीं निकाली, मगर फिर एक वीडियो जारी करके देहरादून जाने ओर जिला प्रशासन से शिकायत करने वाले गुज्जरों को भला-बुरा कहा।
वन गुज्जरों का कष्ट इतना ही नहीं है। वहां शिक्षा का कोई भी उचित प्रबंध नही है, स्कूली शिक्षा के केंद्र भी बहुत दूर-दराज हैं। वन गुज्जर समुदाय ने अपने-अपने डेरों के आस-पास टीन शेड डाल कर बच्चों की मदरसों के जरिए शिक्षा की व्यवस्था की है। वन गुज्जरों का इलजाम है कि स्थानीय प्रशासन कुछ क्षेत्र के असामाजिक तत्वों के दबाव में आकर छानी के रूप में बनाए गये शिक्षा के केंद्रों को ध्वस्त कर रहा है। जिला प्रशासन ने बिना नोटिस के आठ स्थानों सुनीर गांव, चांती, हेडसु, पलासु, मझोग, कालसी व पुरटाड़ आदि में सभी शिक्षा केंद्रों को ध्वस्त कर दिया। जिससे वन गुज्जरों के बच्चों की शिक्षा-दीक्षा प्रभावित हो गई है।यहीं, नहीं उन्हें कब्रिस्तान में तदफीन करने ओर नमाज़ पढ़ने से भी रोका जा रहा है। वन गुज्जरों का कहना है कि यह तब है जब नैनीताल हाईकोर्ट में 2019 में दायर जनहित याचिका पर 17 मार्च 2021 को हुए आदेश के बाज 10 जून 2021 को गठित समिति ने साफ कहा कि वन गुज्जरों के विरुद्ध की जा रही वैधानिक कार्यवाही जैसे अतिक्रमण हटाना इत्यादि पर रोक लगाई जानी चाहिए। जब मामला शासन व उच्च न्यायलय में विचाराधीन है तो स्थानीय प्रशासन अथवा व्यक्ति विशेष कैसे मकानों एवं शिक्षा केंद्रों (मदरसों) आदि को बिना वैध नोटिस दिये ध्वस्त कर रहा है। क्या यह संविधान और उच्च न्यायलय के आदेशों की अवहेलना नहीं है।
इन शिकायतों का भी लगता है कोई असर नहीं पड़ रहा। 20 अप्रैल को उत्तराखंड की चकराता तहसील के हनोल में इसी रुद्र सेना ने एक धर्म सभा की जिसमें अल्पसंख्यकों के विरुद्ध आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया। इस सम्मेलन में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा और आर्थिक बहिष्कार का आह्वान किया गया। स्थानीय प्रशासन ने धर्म सभा की इजाजत इस शर्त के साथ दी थी कि कोई भी हेट स्पीच यानी घृणा फैलाने वाला भाषण नहीं दिया जाएगा और ऐसा कोई काम नहीं किया जाएगा कि रमजान के महीने में अल्पसंख्यकों की भावनाएं आहत हों। पुलिस की मौजूदगी में यह धर्मसभा हुई और पुलिस ने इसकी वीडियोग्राफी भी की हालांकि धर्मसभा को लेकर कोई शिकायत नहीं हुई लेकिन इस सम्मेलन के वीडियो साफ करते हैं कि वहां कहा गया कि देवभूमि में किसी गैरसनातनी को बसने नहीं दिया जाएगा। विश्व में तब तक किसी किस्म की शांति नहीं बनी रह सकती जब तक कि हर जिहादी का सफाया न कर दिया जाए।
इस दौरान हिंदू रक्षा सेना के अध्यक्षश प्रबोधा नंद गिरी भी मौजूद रहे। सम्मेलन में शामिल होने के पते फेसबुक में लाइव दिखते रहे। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता हठयोगी महाराज कहते हुए दिखाई दिए कि अगर संत और महात्मा जिहाद को खत्म करने की बात करते हैं तो क्या यह गलत है। अगर वे लोकतांत्रिक तरीके से यह कहते हैं तो इसका देश की हर सरकार और नागरिक को समर्थन करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को एक हजार मजारें ध्वस्त करने का आदेश देने के लिए बधाई देना चाहते हैं।
धर्म सभा के आयोजक रुद्र सेना के राकेश तोमर के मुताबिक धर्मसभा का मुख्य उद्देश्य सरकार से महासू देवता की भूमि जौनसार बावर क्षेत्र में गैर हिंदुओं द्वारा अवैध रूप से कब्जाई गई जमीनों को मुक्त कराने की अपील करना था। साथ ही सरकार से यह मांग की गई कि राज्य के हर मंदिर के पांच किलोमीटर के दायरे में गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित हो। कार्यक्रम की इजाजत देने वाली चकराता की एसडीएम युक्ता मिश्रा ने कहा कि वह चारधाम की ड्यूटी से लौटने के बाद ही कुछ कह सकेंगी। वहीं देहरादून के एसपी ग्रामीण कमलेश उपाध्याय ने कहा कि यह पूरा कार्यक्रम पुलिस की मौजूदगी में हुआ कार्यक्रम की वीडियोग्राफी की गई है और इसे लेकर पुलिस को अब तक कोई शिकायत नहीं मिली है। राज्य में किसी को भी शांति और सद्भावना का माहौल बिगाड़ने की इजाजत नहीं दी जा सकती। इस मामले में अब तक किसी किस्म की कार्रवाई की खबर नहीं है।
प्रदेश में नगर निकाय के बाद देश में लोकसभा चुनाव भी है। लगता है कि यह कोई अभियान है जिसे बड़ी जगहों से संरक्षण मिल रहा है। यह सब तब हो रहा है जबकि 17 जुलाई 2018 को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने तहसीन पूनावाला की याचिका पर भीड़ की हिंसा पर लगाम लगाने के लिए स्पष्ट निर्देश जारी कर कहा था कि हर जिले में एसपी रैंक अधिकारी का ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए नोडल ऑफिसर बनाया जाए। ऐसे इलाकों और लोगों की पहचान हो जिनसे हिंसा की आशंका है। ऐसी जगहों और लोगों पर खास चौकसी बरती जाए। ज़रूरत पड़ने पर तुरंत भीड़ को खदेड़ा जाए।सोशल मीडिया या दूसरे तरीकों से भड़काऊ मैसेज या वीडियो फैलाने पर रोकथाम के लिए ज़रूरी कदम उठाए जाएं। ऐसे मैसेज फैलाने वालों पर आईपीसी की धारा 153 ए (समाज में वैमनस्य फैलाना) के तहत केस दर्ज हो। भीड़ की हिंसा से जुड़े मुकदमों की फ़ास्ट ट्रैक सुनवाई हो और उनका छह महीने में निपटारा हो।इसके पहले 2017 में लॉ कमीशन ने 267वीं रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट में लॉ कमीशन ने कहा था, ‘हेट स्पीच कोई भी लिखा या बोला हुआ शब्द, इशारा, कोई प्रस्तुति हो सकता है जिसे देखकर या सुनकर डर पैदा हो या हिंसा को बढ़ावा मिले.’ हमारे देश में भड़काऊ भाषण देने पर इंडियन पीनल कोड (IPC) की धारा 153A और 153AA के तहत केस दर्ज किया जाता है। कई मामलों में धारा 505 भी जोड़ी जाती है।
सुप्रीम कोर्ट के इन निर्देशों का पालन हुआ हो या नहीं लेकिन उत्तराखंड में एक खास किस्म की
विभाजनकारी सोच को प्रोत्साहन देने की योजनाबद्ध कोशिशें जारी हैं।
ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी जारी है। देश भर का एक आंकड़ा साफ कर देता है कि आखिर नफरत का कारोबार बेहिचक क्यों जारी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में वर्ष 2020 में हेट स्पीच के 1,804 मामले दर्ज हुए लेकिन ऐसे मामलों में सजा महज 20 फीसद को हुई। यह तो नफरत फैलाने वालों का हौसला बढ़ाने वाला ही आंकड़ा लगता है। खैर 17 दिसंबर 2021 को उत्तराखंड के हरिद्वार में हुई धर्म संसद के मामले ने बहुत तूल पकड़ा था।वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली की याचिका पर 12 जनवरी 2022 को कोर्ट ने हरिद्वार और दिल्ली में हुए धर्म संसद में दिए गए भड़काऊ भाषणों के मामले पर केंद्र, उततराखंड व दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया। याचिका में कहा गया था कि दोनों कार्यक्रमों में जिस तरह के भाषण दिए गए, वे आईपीसी की कई धाराओं के खिलाफ थे। इनमें वक्ताओं ने खुलकर मुस्लिम समुदाय के संहार की बातें कहीं लेकिन पुलिस ने कोई गिरफ्तारी नहीं की। सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के बाद उत्तराखंड पुलिस हरकत में आई और यति नरसिंहानंद समेत कई लोगों की गिरफ्तारी हुई। मगर इसके बावजूद नफरत फैलाने की कोशिशें खत्म नहीं हुईं हैं. और व्हाट्स ऐप के जरिए या अनौपचारिक माध्यमों से यह जारी हैं।
मजार जिहाद को लोगों के मन में बिठाने की कोशिशें लंबे समय से शुरू हो गई थीं
इन कोशिशों का असर मई 2022 में अल्मोड़ा जिले के दूरस्थ मानिला के दुनैणा गांव में दिखा। गांव में स्थानीय लोगों ने मजदूरों द्वारा बनाई गई एक दरगाह को तोड़ कर ध्वस्त कर दिया। जुलाई 2022 को भाजपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य तरुण विजय ने ट्वीट कर देहरादून के फॉरेस्ट रेंजर्स कॉलेज में बरसों से मौजूद दरगाह पर सवाल खड़े किए और उसे वन विभाग के संरक्षण में इस्लामीकरण करार दिया। अगस्त में पांचजन्य ने कॉर्बेट में पाखरो टाइगर सफारी के नाम पर 167 की इजाजत की जगह छह हजार से ज्यादा पेड़ों के अवैध कटान और अवैध निर्माण के घोटाले के बरक्स मजार का मुद्दा खड़ा करना शुरू किया। हाल में एक ऐसा प्रचार अभियान चला जिससे लगा कि प्रदेश के जंगलों में शायद अवैध मजारें ही मजारें हो गई हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा ने इसे मजार जिहाद या लैंड जिहाद का नाम दिया। मुख्यमंत्री ने कुमाऊं में बयान दिया कि प्रदेश के जंगलों में जो एक हजार मजारें और अन्य अवैध धार्मिक ढांचे बने हैं उनके खिलाफ कार्रवाई होगी। सीएम का यह बयान मीडिया की सुर्खियां बना। लेकिन जब वन विभाग के प्राथमिक सर्वे की रिपोर्ट आई तो पता चला कि प्रदेश के जंगलों में अवैध मजारों से ज्यादा तो अवैध मंदिर हैं । वन विभाग के प्राथमिक सर्वे के मुताबिक प्रदेश के जंगलों में करीब 300 अनधिकृत मंदिर और आश्रम तथा 35 से ज्यादा मजारें व मस्जिदें हैं। यही नहीं वन भूमि पर दो गुरुद्वारे भी बने हैं। ये वे धार्मक स्थल हैं जो वन क्षेत्रों में बने हैं और इनके पास वहां की जमीन के कोई कागज नहीं हैं। प्राथमिक सर्वे से खुलासा हुआ है कि गढ़वाल मंडल के चार वृत्तों गढवाल, भागीरथी, शिवालिक और यमुना वृत्त में 155 अनधिकृत मंदिर दो गुरुद्वारे और दस मजारें हैं। कुमाऊं क्षेत्र में दस वन प्रभागों में 115 के आसपास अनधिकृत मंदिर हैं। दिलचस्प बात यह है कि इनमें चंपावत जिलो में टनकपुर का प्रसिद्ध पूर्णागिरी मंदिर भी शामिल हैं जहां हर साल तीन महीने का मेला लगता है। यही नहीं नैनीताल जिले के रामनगर का मशहूर गर्जिया मंदिर भी वन भूमि पर है। सर्वे में कुमाऊं के केवल मंदिरों का ब्योरा लिया गया है और उनके अलावा किसी अन्य धार्मिक स्थल का ब्योरा नहीं शामिल है। इस क्षेत्र में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व, राजाजी टाइगर रिजर्व, गंगोत्री नेशनल पार्क व अन्य संरक्षित वन क्षेत्रों के अवैध धार्मिक स्थलों के ब्योरे अभी जुटाए जा रहे हैं। सर्वे के मुताबिक अभी 37 गुफाओं, 26 मजारों व कुछ मंदिरों का ब्योरा ही जुटाया गया है। वन विभाग ने बीते दिनों सर्वे के लिए एक नया प्रारूप अपने अधिकारियों व स्टाफ को भेजा था जिसमें कहा गया था कि वे अपने अधिकार क्षेत्र में मौजूद हर तरह के अवैध ढांचों के बारे में सूचनाएं भर कर भेजें। बीते 12 मार्च (रविवार) को खबरें आईं थी प्रदेश में एक ही रात के अंदर 26 अवैध मजारों को बुलडोजरों से ध्वस्त कर दिया गया।ध्वस्त हुई मजारों में कुछ देहरादून से सटे राजाजी टाइगर रिजर्व क्षेत्र में बनी हुई थीं। तब दावा किया गया कि इन मजारों के नीचे कोई मानव अवशेष नहीं मिले। हालांकि यह स्पष्ट नहीं किया गया कि कब्र खोदने के लिए समुचित इजाजत ली गई या नहीं और क्या जो अवशेष मिले उनकी फॉरेंसिक जांच की गई। सूत्रों के मुताबिक राज्य सरकार ने प्रदेश भर में लगभग 1400 ऐसे स्थान चिह्नित किए हैं जहां धर्म पंथ के नाम पर अतिक्रमण किया गया है। स्थलों का चिह्नीकरण कर सख्त कार्रवाई की तैयारी में है।
उधर, वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि वनों में अवैध ढाचों का निर्माँण धार्मिक मुद्दा नहीं है बल्कि वन भूमि पर अवैध अतिक्रमण का मसला है। हमारी योजना पुराने ढांचों को छेड़ने की नहीं है लेकिन नए बन रहे अवैध ढांचों पर सरकार की नजर है। नए बने अवैध ढांचे चाहे किसी पंथ से संबंधित हों वन विभाग उन्हें ध्वस्त करेगा।
खैर वनभूमि को अतिक्रमण मुक्त करने के लिए बड़ा अभियान चलाने की बात भी सामने आई, जिसके लिए वन विभाग के मुखिया विनोद सिंघल ने वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी और मुख्य वन संरक्षक वन पंचायत एवं सामुदायिक वानिकी उत्तराखंड डॉ पराग मधुकर धकाते अतिक्रमण खाली कराने के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किया। डॉ. धकाते को अतिक्रमण हटाओ मामले में सीधे सीएम को रिपोर्ट करने को कहा गया। अवैध धार्मिक ढांचों के जरिए वन भूमि पर कब्जे पर प्राथमिक रिपोर्ट अब सरकार के गले नहीं उतर रही तो सरकार अब दोबारा ऐसे धर्म स्थलों का चिह्नीकरण कर सख्त कार्रवाई की तैयारी में है।उसकी योजना है कि वन क्षेत्रों में वर्ष 1980 के बाद बनाए गए धर्म स्थलों को हटाया जाएगा। इससे पहले के निर्माण वन विभाग की अनुमति के बाद बने होने के कारण उन्हें कार्रवाई से बाहर रखा जाएगा।
नोडल अधिकारी पराग मधुकर धकाते ने सभी अधीनस्थों को निर्देश दिए कि वर्ष 1980 के बाद प्रदेश की वन भूमि पर अवैध रूप से बनाए गए धर्म स्थलों को चिहि्नत किया जाए। सभी वन प्रभागों को निर्देश दिए गए हैं कि अपने-अपने क्षेत्रों में अवैध रूप से निर्मित धर्म स्थलों के निर्माण से लेकर वर्तमान स्थिति, वन भूमि और वहां संचालित गतिविधियों का एक परफार्मा तैयार कर विस्तृत रिपोर्ट मुख्यालय को दी जाए। जिसे शासन और मुख्यमंत्री को भेजा जाएगा। इसके बाद इन पर कार्रवाई की जाएगी। वन क्षेत्र को कब्जा मुक्त कराने के लिए नामित नोडल अधिकारी सीसीएफ पराग मधुकर धकाते ने अवैध धर्मस्थलों की सूची तैयार करने के लिए सभी वन प्रभागों से तीन दिन के भीतर विस्तृत रिपोर्ट मांगी लेकिन वह उन्हें समय पर नहीं मिल सकी। सीसीएफ पराग मधुकर धकाते ने सभी प्रभागीय वनाधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए कि य Nदि वन क्षेत्र में कोई अवैध निर्माण क करता पाया जाता है तो उसके विरुद्ध वन संरक्षण अधिनियम के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया जाएगा। साथ ही उन्होंने डीएफओ को अतिक्रमण के विरुद्ध कार्रवाई में पुलिस और प्रशासन का सहयोग लेने को कहा। अब जो भी हो। सवाल यह भी हैं क्या से सब बेरोजगारी, भर्ती घोटालों , भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने की सोची समझी चालें हैं।
और अंत में शमशेर बहादुर सिंह
की कविता
ईश्वर अगर मैंने अरबी में
प्रार्थना की
तू मुझसे नाराज़ हो जाएगा?
अल्लमह
यदि मैंने संस्कृत में
संध्या कर ली
तो तू
मुझे दोज़ख़ में डालेगा?
लोग तो यही कहते घूम रहे हैं।