सिद्धार्थ
भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद पर जानलेवा हमला गाय पट्टी की आज की प्रमुख आंबेडकरवादी आवाज को खामोश करने की कोशिश है। आंबेडकर की वैचारिकी देश के सभी वर्चस्वशाली जातियों-वर्गों और मर्दवादी विचारों के लोगों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। आंबेडकर वर्ण-जाति व्यवस्था को पूरी तरह से नेस्तनाबूत करने का आह्वान करते हैं। वे वर्ण-जाति व्यवस्था को पोषित करने वाले ग्रंथों को डायनामाइट से उड़ा देने को कहते हैं। वे ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद को इस देश के मेहनतकशों का सबसे बड़ा दुश्मन घोषित करते हैं। उन्होंने एक ऐसे संविधान की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई जो स्वतंत्रता, समता, न्याय और बंधुता की स्थापना को अपना सबसे बड़ा लक्ष्य घोषित किया।
वे राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन में समता स्थापित करने को अपने जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य मानते थे। वे हिंदू राष्ट्र को लोकतंत्र, स्वतंत्रता और समता जैसे मूल्यों के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते हैं। वे हिंदू राष्ट्र के निर्माण को किसी भी कीमत पर रोकने की बात करते हैं। वे लोकतंत्र, समता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुता को सबसे बड़ा मूल्य मानते हैं। वे सबके न्याय के लिए संघर्ष करने वाले योद्धा थे। लेकिन उनकी सबसे पहली घोषित प्रतिबद्धता दलितों के प्रति थी, क्योंकि दलित समाज इस देश का सबसे शोषित, उत्पीड़ित और अपमानित समुदाय रहा है और है। उसी समाज में उन्होंने जन्म लिया था और बहुत सारे अपमानों को खुद झेला था।
भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद इस समय हिदी पट्टी के सबसे मुख्य आंबेडकरवादी आवाज हैं। वे जहां न्याय के लिए कोई संघर्ष होता है, उसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। इस देश के सबसे बड़े जनसंघर्षों में उनकी सक्रिय और निरंतर हिस्सेदारी रही है। वे NRC और CAA विरोधी संघर्षों में सक्रिय तौर हिस्सेदार थे। वे इन आंदोलनों के एक बड़े स्वर रहे। हाल में महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न विरोधी संघर्ष में सबसे सक्रिय चेहरा थे। उन्होंने बृजभूषण सिंह को खुली चुनौती दी। राजनीति में उन्होंने नरेंद्र मोदी और योगी को सीधी चुनौती दी। हिंदी पट्टी के मुसलमान उन्हें अपने सबसे करीबी दोस्त के रूप में देखते हैं। इस तरह से वे आंबेडकर के इस विचार और मूल्य को आगे बढ़ाते हैं कि जहां भी अन्याय हो, उसकी मुखालफत करनी चाहिए। हमेशा न्याय के साथ और अन्याय के खिलाफ खड़ा होना चाहिए।
इस सब के बावजूद भी आंबेडकर की तरह उनकी पहली प्रतिबद्धता दलितों के साथ है। हिंदी पट्टी में कहीं भी दलितों के साथ कोई हिंसा, अत्याचार और उत्पीड़न की घटना घटती हैं, चंद्रशेखर आजाद और उनकी भीम आर्मी जरूर मौजूद रहती है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भीम आर्मी दलितों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों की मुखालफत करने वाली सबसे महत्वपूर्ण आवाज है। जहां अक्सर राजनेता और कार्यकर्ता जाने से डरते हैं, वहां भी चंद्रशेखर पहुंच जाते हैं या पहुचंने की कोशिश करते हैं। इस दौरान उनकी सवर्णों और पुलिस से टकराव और भिड़ंत भी होती है। सच यह है कि हिंदी पट्टी में यदि कोई बड़ा संगठन सीधे जमीन पर दलितों के पक्ष में खड़ा होता है, दलितों पर अत्याचार करने वाले सवर्णों और पुलिस को चुनौती देता है, तो उस संगठन का नाम भीम आर्मी है। उसके मुख्य चेहरा चंद्रशेखर हैं। हालांकि स्थानीय स्तर पर ऐसे बहुत सारे अन्य संगठन और व्यक्तित्व भी हैं।
दलितों के बाद चंद्रशेखर की दूसरी सबसे बड़ी प्रतिबद्धता पिछड़े वर्गों के प्रति है। जिन्हें वर्ण-व्यवस्था में शूद्र ठहराया गया है। चंद्रशेखर आगे बढ़कर पिछड़े वर्गों के हर संघर्ष में हिस्सेदारी करते हैं। अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण का पूरा का पूरा लाभ मिले इसके लिए चलने वाले हर संघर्ष में चंद्रशेखर शामिल रहे हैं। वे जाति जनगनणना के लिए चलने वाले संघर्ष के अग्रिम पंक्ति के लोगों में शामिल हैं। वे दलितों-पिछड़ों की मजबूत एका के हिमायती हैं। इस एका को वास्तविक बहुजन एका में बदलना चाहते हैं।
बहुजन समाज की बात की जाती है, लेकिन आदिवासी सैद्धांतिक तौर पर इसका हिस्सा होते हुए अक्सर इससे बाहर छूट जाते हैं। हिंदी पट्टी में चंद्रशेखर एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो आदिवासियों के सवालों-मुद्दों पर भी उतने ही मुखर रहते हैं, जितना दलितों-पिछड़ों के मुद्दे पर। उन्होंने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के संघर्षों में सक्रिय हिस्सेदारी की है। वे व्यापक बहुजन एकता के लिए काम करते हैं।
मुसलमानों को चंद्रशेखर दलितों का स्वाभाविक मित्र और सहयोगी मानते हैं। NRC और CAA विरोधी आंदोलन में वे उनके बड़े सहयोगी और समर्थक के रूप में सामने आए थे। वे मुसमलानों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों और हिंसा के खिलाफ हमेशा अपनी आवाज बुलंद करते हैं।
आंबेडकर के विचारों के अनुयायी के रूप में चंद्रशेखर न्याय-अन्याय को सिर्फ जाति के चश्मे से नहीं देखते हैं। CAA-NRC, किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के आंदोलन में उनकी सक्रिय और निरंतर हिस्सेदारी इस तथ्य को पुरजोर तरीके से प्रमाणित करती है। वे न्याय के पक्षधर हैं, अन्याय के खिलाफ हैं, लेकिन बदले की मानसिकता से काम नहीं करते हैं।
चंद्रशेखर का व्यक्तित्व बेखौफ है, वे अक्सर एक साहसी व्यक्तित्व के रूप में सामने आते हैं। वे न जेल-पुलिस से डरते हैं और न सवर्णों की धमकियों से। वे स्पष्ट और बुलंद आवाज में सत्ता को चुनौती देते हैं। चाहे वे मोदी-योगी की राजनीतिक सत्ता हो या सवर्णों की सामाजिक सत्ता। वे मीडिया के तथाकथित दबंग एंकरों (अक्सर सवर्ण) को लताड़ते और डांट लगाते हैं।
चंद्रशेखर आजाद की अब तक की गतिविधियों और सक्रियाताओं को देखकर कोई भी कह सकता है, उनकी राजनीति के केंद्र में समाज परिवर्तन है। उनकी राजनीति सिर्फ व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के इर्द-गिर्द घूमती नहीं दिखती है। उनकी समझ साफ और स्पष्ट है। वे दो टूक बात करते हैं। वे गोल-मटोल बात नहीं करते हैं।
उनकी पहली बार बड़ी पहचान शब्बीरपुर (सहारनपुर) घटना (मई 2017) के बाद बनी थी। अजय सिंह बिष्ट उर्फ योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद ठाकुरों का अंहकार चरम पर पहुंच गया था। शब्बीर गांव में दलितों के खिलाफ ठाकुरों ने भयानक हिंसा और अत्याचार किया। इस हिंसा और अत्याचार के खिलाफ भीम आर्मी खड़ी हुई और उसने ठाकुरों को कड़ी चुनौती दिया। उसके बाद से चंद्रशेखर आजाद सवर्णों के नजरों में घटकते रहे हैं।
शायद ही कोई इससे इंकार कर पाए कि आज की तारीख में चंद्रशेखर आजाद हिंदी पट्टी की बड़ी और मुखकर आंबेडकरवादी आवाज हैं। यह आवाज उन लोगों के कानों में खटकती होगी, जो वर्ण-जाति वर्चस्व को बनाए रखना चाहते हैं, जो किसी भी कीमत पर अपने जातीय वर्चस्व छोड़ना नहीं चाहते हैं। चंद्रशेखर की आवाज उन लोगों को भी चुभती होगी जो महिलाओं को अपने पैरों की जूती बनाकर रखना चाहते हैं।
चंद्रशेखर से वे सभी लोग नफरत करते होंगे, जो दलितों को अपने समान मानने को तैयार नहीं हैं। उनकी आवाज उन्हें भी चुभती होगी, जो बहुजनों की दावेदारी से डरते हैं। उन्हें भी बेचैन करती होगी, जो मुसमलानों से घृणा करते हैं और महिलाओं पर मर्दों के वर्चस्व के हिमायती हैं।
चंद्रशेखर को वे लोग भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे होंगे, जो किसान आंदोलन को खालिस्तानी या द्रेशद्रोही लोगों का आंदोलन कहते थे। CAA और NRC विरोधी संघर्ष को टुकड़े-टुकड़े गैंग का संघर्ष मानने वालों की आंखों को भी वे सुहाते नहीं होंगे। वे हिंदू राष्ट्र निर्माण के अभियान के लोगों के आंखों में भी तीखी मिर्च की तरह लगते होंगे।
चंद्रखेशर आजाद हिंदी पट्टी में ब्राह्मणवाद विरोधी आंबेडकरवादी आंदोलन का सबसे बड़ा चेहरा और स्वर हैं। चंद्रशेखर आजाद की हत्या की कोशिश एक मुखर आंबेडकरवादी आवाज को खामोश कर देने की कोशिश थी। ऐसी कोशिश आगे भी हो सकती है। ऐसे लोगों ने फूलनदेवी की हत्या की थी। इसी तरह के लोगों ने गौरी लंकेश को मार डाला था।
(सिद्धार्थ जनचौक के संपादक हैं।)