November 24, 2024

-इन्द्रेश मैखुरी  

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा के अन्य नेतागण ज़ोर-शोर से लैंड जेहाद का नारा उछाल रहे हैं.  साफ दिखाई दे रहा है कि  इस नारे के पीछे, मंशा प्रदेश की ज़मीनों बचाना या अवैध अतिक्रमण रोकना नहीं बल्कि चुनावी जमीन मजबूत करने के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना है ! मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति जब सांप्रदायिक शब्दावली का ज़ोरशोर से इस्तेमाल करने लगता है तो वह इस बात का सूचक होता है कि पदारूढ़ व्यक्ति को संविधान, कानून, न्याय जैसे शब्दों से ज्यादा सरोकार नहीं है !

बहरहाल, लैंड जेहाद के इस जुमले में यह निहित है कि एक खास समुदाय यानि अल्पसंख्यक समुदाय के लोग ही अतिक्रमणकारी हैं और इसके पीछे उनका धार्मिक षड्यंत्र भी दर्शाने की कोशिश होती है.

लेकिन जो पार्टी, चुनावी लाभ के लिए एक पूरे समुदाय को, उसकी धार्मिक पहचान के कारण अतिक्रमणकारी सिद्ध करने पर उतारू है, स्वयं उसकी जमीन के मामले में क्या स्थिति है ? क्या उनके अपने ज़मीनों के सौदे, नियम सम्मत और कानून के दायरे में हैं ?

हैरत की बात है कि धार्मिक भिन्नता के चलते, जो पूरे समुदाय को अतिक्रमणकारी घोषित कर रहे हैं, उन्हें एक पार्टी के तौर पर, उनकी ही सरकार में, सरकारी जमीन को अवैध रूप से खरीदने का नोटिस दिया जा रहा है !

13 जून 2023 को देहरादून के अपर जिलाधिकारी और ग्रामीण सीलिंग के नियत प्राधिकारी डॉ.शिव कुमार बरनवाल ने भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान विधायक बिशन सिंह चुफाल को एक नोटिस भेजा. नोटिस का लब्बोलुआब यह है कि देहरादून में रायपुर में जहां भाजपा के राज्य कार्यालय के लिए जमीन खरीदी गयी है, वह जमीन राज्य सरकार की संपत्ति है. 1975 के बाद उस जमीन के समस्त बैनामे शून्य हैं और उक्त जमीन पर किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य गैरकानूनी है.

देहरादून के अपर जिलाधिकारी के उक्त नोटिस में भूमि पर स्वामित्व के दस्तावेज़ भी प्रस्तुत करने को कहा गया था.

उक्त नोटिस के जवाब में 24 जून 2023 को भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल ने जो जवाब दिया, वो बड़ा रोचक है. वे लिखते हैं कि 2011 में वे जब भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे तो भारतीय जनता पार्टी की व्यवस्था और रीति नीति के तहत दो सदस्यीय समिति, भूमि क्रय करने के लिए गठित की गयी थी. उनके द्वारा विक्रय पत्र पर प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत से क्रेता के तौर पर हस्ताक्षर किए गए. वे नोटिस को पूरे पते पर नहीं भेजे जाने की शिकायत भी करते हैं. बिशन सिंह चुफाल यह भी लिखते हैं कि वर्तमान में वे भाजपा के अध्यक्ष नहीं और भविष्य में उपरोक्त भूमि संबंधी कोई भी जानकारी वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट को दी जाये.

बिशन सिंह चुफाल के जवाब से स्पष्ट है कि वे नोटिस का जवाब गोलमोल तरीके से दे रहे हैं. उनके जवाब में इस बात का कहीं उल्लेख नहीं है कि जिस भूमि के सरकारी होने का नोटिस उन्हें मिला है, वो सरकारी भूमि है अथवा नहीं ! चूंकि वे अपने जवाब में इस बात से इंकार नहीं कर रहे हैं कि उक्त भूमि सरकारी भूमि है तो क्या यह समझा जाये कि वे इस बात को स्वीकार कर रहे हैं ? बढ़-चढ़ कर बयानबाजी करने वाले भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की भी इस मामले में अब तक कोई प्रतिक्रिया देखने-सुनने में नहीं आई है !

लेकिन भाजपा अध्यक्ष की हैसियत से बिशन सिंह चुफाल को भेजे नोटिस में अपर जिलाधिकारी ने तो स्पष्ट लिखा है कि भाजपा द्वारा खरीदी गयी भूमि सरकारी भूमि है और उक्त भूमि पर किसी भी प्रकार का निर्माण करना या उसे खुर्द-बुर्द करना अवैध है.

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत से जमीन खरीदने वाले बिशन सिंह चुफाल को भेजे गए नोटिस से तो यही प्रतीत होता है कि भाजपा द्वारा अवैध रूप से सरकारी जमीन अपने कार्यालय के निर्माण के लिए खरीदी गयी है. नोटिस में साफ लिखा है कि 10 अक्टूबर 1975 के बाद उक्त जमीन पर सभी बैनामे शून्य समझे जाएँगे.

बिशन सिंह चुफाल ने अपने उत्तर में लिखा है कि भाजपा की व्यवस्था और रीति-नीति के अनुसार जमीन खरीदने के लिए दो सदस्यीय समिति बनाई गयी. सवाल यह है कि उस समिति ने क्या यह जांच-परख करना जरूरी नहीं समझा कि जो जमीन वे खरीद रहे हैं, उस जमीन की मिल्कियत की स्थिति क्या है, वह निजी भूमि है अथवा नहीं ? या फिर उन्होंने सोचा कि कैसी भूमि हो, एक ताकतवर राजनीतिक पार्टी के तौर पर यदि वे जमीन पर काबिज हो जाएंगे तो उन्हें कौन रोकने वाला है ?

जमीन संबंधी यह नोटिस भाजपा को किसी और की सरकार में मिला होता तो वे इसे अपने विरुद्ध राजनीतिक षड्यंत्र और उत्पीड़न की कार्यवाही भी बता सकते थे. लेकिन यह नोटिस उन्हें तब मिला है, जबकि देहरादून और दिल्ली दोनों ही जगह उनकी अपनी डबल इंजन की सरकार है. इसके बावजूद यदि यह नोटिस दिया गया है तो दाल में कहीं कुछ काला तो लगता ही है !

भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष को दिये गए नोटिस और उनके जवाब के बाद यह प्रश्न खड़ा होता है कि क्या भाजपा सरकारी जमीन पर अपना कार्यालय बनाने की फिराक में थी/है ?

जो पार्टी और उसके मुख्यमंत्री, प्रदेश की ज़मीनों को धर्म विशेष के अतिक्रमण का हव्वा खड़ा कर रहे हैं, जब उनपर स्वयं ही कथित तौर पर सरकारी भूमि की अवैध रूप से खरीद का आरोप लग रहा है तो वे दूसरे पर किस मुंह से कीचड़ उछालते हैं ? तथाकथित लैंड जेहाद के नारे के सृजकों द्वारा स्वयं सरकारी भूमि पर अपना कार्यालय बनाने के सरकारी नोटिस के बाद तो उनके अतिक्रमण विरोधी अभियान के बारे  में यही कहा जा सकता है कि – औरों को नसीहत, खुद मियां फ़ज़ीहत !

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