November 24, 2024
अनन्त आकाश
मोदी सरकार एवं उत्तराखण्ड सरकार अपनी विफलताओं से जनता का ध्यान भटकाने‌ की सोची समझी नीति के तहत समान नागरिक संहिता लागू करने का सगुफा छोड़ रही है । यह कुतर्क दिया जा रहा है कि अम्बेडकर इसे लागू करने के पक्षधर थे ,जो कि सही नहीं है ।अम्बेडकर जी ने चेताया था कि  देश की विविधता को किसी भी हाल में नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता जबकि भाजपा इसे साम्प्रदायिक हथियार बनाकर 2024 के चुनावों के लिऐ इस्तेमाल की फिराक में है। संघ परिवार एवं भाजपा के अनुवांशिक संगठनों ने संहिता के पक्ष में हिन्दू मुस्लिम के बीच साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें तेज कर दी हैं ।
बर्ष 2003 में भी समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग वर्तमान सत्ताधारी बीजेपी द्वारा उठाई गई थी  उस समय वामपंथी दलों ने कहा था कि  समान नागरिक संहिता (ucc) पर  “हिन्दुत्व मंच द्वारा प्रचलित साम्प्रदायिक राजनीति के हमले और अल्पसंख्यकों, बिशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के बीच असुरक्षा के सन्दर्भ में,सर्वोच्च न्यायालय द्वारा” राष्ट्रीय एकता के कारण”की मदद करने के बजाय एक समान नागरिक संहिता की सिफारिश की गई है ,पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा ।
बहुसंख्यक समुदाय सहित विभिन्न समुदायों के कई व्यक्तिगत कानून महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करते हैं और भारत के संविधान द्वारा भारतीय नागरिकों को दिये गये अधिकारों के अनुरूप नहीं है।विभिन्न पर्सनल ला में सुधार की तत्काल आवश्यकता है । यह ऐसा अभ्यास है कि जिसमें कोई देरी नहीं होनी चाहिए।
 9 दिसंबर 022 को राज्य सभा में पूरे भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने वाले भाजपा सांसद किरोड़ीलाल मीणा के निजी बिल को विपक्ष के विरोध के बावजूद भी सदन में रखा गया ,इस प्राइवेट बिल पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सभा सांसद कामरेड जान ब्रिट्स ने सदन में विधि आयोग के ताजातरीन रिपोर्ट का हवाला दिया जो स्पष्ट कहती है देश में न तो समान नागरिक संहिता” न तो जरूरी है ,नहीं वांछनीय  है ” उन्होंने यूसीसी को गैर जरूरी संहिता के रूप में वर्णित किया है ।यू सी सी जो समाज में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करेगी। विधि आयोग के हालिया परामर्श पत्र में कहा गया है कि, “जो समान नागरिक संहिता प्रदान करने के बजाय भेदभावपूर्ण है जो इस स्तर पर न तो जरूरी है ,और न वांछनीय है ,विश्वभर में अधिकांश देश अब भिन्नता को मान्यता देने की ओर आगे बढ़ रहे हैं और भिन्नता होना कोई भेदभाव नहीं बल्कि मजबूत लोकतंत्र का संकेत है ।
मोदी जी के इस सन्दर्भ में दिये गये वक्तव्य कि समान नागरिक संहिता पर हमारी सरकार विचार कर रही है, संहिता का  कुप्रभाव सर्वाधिक प्रभावित होने वाले अल्पसंख्यक समुदाय , महिलाओं तथा आदिवासि समाज होगा क्योंकि संहिता का सर्वाधिक दबाव उन्हीं पर है ।
आज केन्द्र सरकार बिना  लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाऐ अपने राजनैतिक लाभ के लिऐ संहिता को लागू करने की जल्दबाजी कर रही है तथा हमारी स्वस्थ जनतांत्रिक प्रक्रिया को आघात पहुंचा रही है ।ऐसे वक्त में यह संहिता लागू करने का प्रयास किया जा रहा है ,जब देश में  साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण तीव्र है ,देश में आये दिन साम्प्रदायिक एवं जातिय घटनाएं अनेक स्वरूपों में सामने आ रही हैं । मणिपुर पिछले दो माह से जल रहा है । लव जेहाद , लैण्ड जेहाद ,अवैध मजार व ईद में बकरे की कुर्बानी मस्जिदों,गिरजाघरों के नाम पर सरकार एवं सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के आनुवांशिक संगठनों का अल्पसंख्यकों के खिलाफ दुष्प्रचार चरम पर है ।
 अकेले हमारे राज्य में ही सैकड़ों की संख्या में सरकारी एवं जंगलात की भूमि पर अवैध रूप से मन्दिर मौजूद हैं ।परन्तु सरकार चुन – चुन कर मजारों /मस्जिदों पर ही बुल्डोजर चलाकर अल्पसंख्यकों को  सीधा सन्देश दे रही है ।वन क्षेत्र में दशकों से रहे वनगुजरों को चुन – चुन कर प्रताड़ित किया जा रहा है , मीडिया का एक हिस्सा भी इस मुहिम में शामिल है ।   अच्छा होता कि हमारी शासक पार्टी जनता की बुनियादी शिक्षा ,रोजगार तथा बेहतरीन भबिष्य के लिए कार्य करती ।   समान नागरिक संहिता को लागू केरने का विचार  गैर जरूरी  है ।
“23 नवम्बर 1948 को  संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जी ने यूसीसी पर चर्चा के दौरान  संविधान सभा में अल्पसंख्यक सदस्यों को आश्वस्त करने की कोशिश की थी ।उन्होंने ने कहा था (अनुछेद 35 यह नहीं कहता है कि संहिता तैयार होने के बाद राज्य इसे सभी नागरिकों पर केवल इसीलिए लागू करेगा ,क्योंकि वे नागरिक हैं ।”उन्होंने यह भी कहा कि यह पूरी तरह से सम्भव” है कि भबिष्य की संसद शुरुआत में एक ऐसा प्रावधान कर सकती है कि संहिता केवल उन लोगों पर लागू हो ,जो घोषणा करते हैं कि वे इससे वाध्य होने के लिए तैयार हैं ,” दूसरे शब्दों में ,प्रारम्भ में ,”संहिता का अनुप्रयोग बिशुध्द रूप से स्वैच्छिक हो सकता है ।”दूसरे शब्दों में,अम्बेडकर जी ने महसूस किया था कि ,यूसीसी को शुरू में एक स्वैच्छिक संहिता के रूप में पेश किया जा सकता है ,और संसद निश्चित रूप से नागरिकों को इसका पालन कराने के लिये बाध्य नहीं करेगी । इस सन्दर्भ में विचारणीय सवाल:-
1-संविधान में वर्णित नीति निर्देशक तत्व अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि- “राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा” आज यह पूरा मामला विधि आयोग के समक्ष विचाराधीन है । इसके प्रभावों पर रिपोर्ट आनी शेष है ।  इस संबंध में भारत सरकार के विधि मंत्रालय ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपना शपथ पत्र भी दिया है है जिसमें कहा गया है कि यह विधि आयोग की रिपोर्ट आने के बाद ही आगे की कार्रवाई होगी। तो मोदी सरकार द्वारा इस संबंध में बनाया गया कोई क़ानून विधि सम्मत होगा ?
2- भारतीय संविधान में वर्णित नागरिकों के मूल अधिकार 25 से 28 देश के हर नागरिक को अपने अपने धार्मिक विश्वासों के अनुसार उपासना पद्धति अपनाने के साथ निजी व सामुदायिक धार्मिक/ सांस्कृतिक आचरण Religious Practices करने की स्वतंत्रता देता है . क्या समान नागरिक संहिता क़ानून का, नागरिकों के धार्मिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार पर हनन नहीं है ?
3- क्या राज्य द्वारा प्रस्तावित समान नागरिक संहिता क़ानून हिंदू विवाह अधिनियम 1955 एवं उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में भी  बदलाव करेगा ?
4- क्या संहिता देश में रह रहे महिलाओं , आदिवासियों के धार्मिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक रीति रिवाजों को अपनाने से रोकेगा ?
5-क्या मोदी सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता क़ानून को लागू करने की कोशिश मात्र देश में रह रहे ईसाई एवं इस्लाम के अनुयायियों को डराने की कोशिश के साथ राजनीतिक दिखावा नहीं  तो और क्या है?
 अन्त में समान नागरिक संहिता को लागू करने के पीछे असली मंशा 2024आसन चुनाव के लिये बोटों के ध्रुवीकरण के सिवाय कुछ नहीं है ।
_लेखक अनंत आकाश, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े हैं.

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