प्रधानमंत्री मोदी अब तक मणिपुर का म बोलने से बचे हुए हैं, वो क्या मध्यप्रदेश का म बोल पाएंगे। क्योंकि पिछले हफ्ते ही दो बार इस राज्य में आकर मोदीजी ने बहुत बड़ी-बड़ी बातें कही हैं। यूसीसी का मुद्दा उन्होंने यहीं छेड़ा है। क्या यूसीसी को लाकर मोदीजी ऐसे अत्याचारों पर रोक की गारंटी दे सकते हैं। जब भाजपा ने राष्ट्रपति पद के लिए श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाया था, तो इस बात का खूब ढिंढोरा पीटा था कि भाजपा देश में पहली बार एक आदिवासी महिला को सर्वोच्च पद पर आसीन करना चाहती है। श्रीमती मुर्मू राष्ट्रपति बन भी गईं, लेकिन एक आदिवासी के प्रथम नागरिक होने के बावजूद देश के बाकी आदिवासी किस हाल में हैं, इसका नमूना मप्र ने दिखा दिया है। दुख इस बात का है कि देश की प्रथम नागरिक भी इस घटना पर मौन हैं।
– सर्वमित्रा
श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाया था, तो इस बात का खूब ढिंढोरा पीटा था कि भाजपा देश में पहली बार एक आदिवासी महिला को सर्वोच्च पद पर आसीन करना चाहती है। श्रीमती मुर्मू राष्ट्रपति बन भी गईं, लेकिन एक आदिवासी के प्रथम नागरिक होने के बावजूद देश के बाकी आदिवासी किस हाल में हैं, इसका नमूना मप्र ने दिखा दिया है।
दो साल पहले मध्यप्रदेश के भोपाल से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिरसा मुंडा की जयंती पर जनजातीय गौरव दिवस मनाने की शुरुआत की थी। तब उन्होंने कहा था कि आज भारत अपना पहला जनजातीय गौरव दिवस मना रहा है। आज़ादी के बाद देश में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर, पूरे देश के जनजातीय समाज की कला-संस्कृति, स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्रनिर्माण में उनके योगदान को गौरव के साथ याद किया जा रहा है, उन्हें सम्मान दिया जा रहा है। अपने चिर-परिचित अंदाज में पहले की कांग्रेस सरकारों को नकारा बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि देश की आबादी का करीब-करीब 10 प्रतिशत होने के बावजूद दशकों तक, जनजातीय समाज को, उनकी संस्कृति, उनके सामर्थ्य को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। आदिवासियों का दु:ख, उनकी तकलीफ, बच्चों की शिक्षा उन लोगों के लिए कोई मायने नहीं रखती थी। देश के जनजातीय योद्धाओं के बारे में लोगों को अंधेरे में रखा गया। ऐसी बातें प्रधानमंत्री बार-बार अलग-अलग मंचों से करते रहे। खासकर उन चुनावी राज्यों में जहां आदिवासियों की संख्या अधिक है।
प्रधानमंत्री मोदी ने जो कहा, उसे एक बार में नकारा नहीं जा सकता। क्योंकि यह सही है कि आजादी के बाद भी आदिवासियों को उनके अधिकार दिलाने की लड़ाई अब तक जारी ही है। जल, जंगल और जमीन से आदिवासियों का हक छीना जा रहा है। उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करने की जगह विकास के नाम पर उन पर अत्याचार किया जा रहा है। आदिवासियों पर कई बार दिल दहलाने वाली प्रताड़नाएं हुई हैं।
लेकिन उनका असर व्यापक समाज तक नहीं पहुंच पाता, क्योंकि उन घटनाओं के बारे में सुना जाता है, देखा नहीं जाता। लेकिन अभी मध्यप्रदेश के सीधी जिले से आई एक घटना ने दुनिया को दिखा दिया है कि सवर्ण मानसिकता आदिवासियों को इंसान होने की गरिमा से भी वंचित रखना चाहती है, मानवाधिकार तो दूर की बात है। सीधी में प्रवेश शुक्ला नाम के एक व्यक्ति ने सिगरेट पीते हुए एक आदिवासी पर पेशाब की और उसका वीडियो भी बनवाया। कल्पना नहीं की जा सकती कि सभ्य समाज में इस तरह की घटना हो सकती है।
लेकिन यही सच है कि जाति और धर्म की सड़ांध ऐसे पेशाब कांड के जरिए समाज के सामने आई है। मंगलवार से सोशल मीडिया पर मध्यप्रदेश का यह वीडियो खूब वायरल हो रहा है। आरोपी प्रवेश शु्क्ला भाजपा के विधायक केदारनाथ शुक्ला का पूर्व प्रतिनिधि बताया जा रहा है। हालांकि भाजपा इस बात से इंकार कर रही है कि प्रवेश शुक्ला का भाजपा से कोई लेना-देना है। बहरहाल, इस घटना का वीडियो जैसे ही वायरल हुआ और लोगों ने सवाल उठाने शुरु किए, तो शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट किया- ”मेरे संज्ञान में सीधी ज़िले का एक वायरल वीडियो आया है। मैंने प्रशासन को निर्देश दिए हैं कि अपराधी को गिरफ्तार कर कड़ी से कड़ी कार्रवाई कर एनएसए भी लगाया जाए”।
इसके बाद शिवराज सिंह मंगलवार देर रात एक और वीडियो ट्वीट आया जिसमें उन्होंने लिखा है कि ‘अपराधी केवल अपराधी होता है, उसकी कोई जाति, धर्म या पार्टी नहीं होती. सीधी मामले को लेकर मैंने निर्देश दिए हैं, अभियुक्त को ऐसी सज़ा दी जाएगी जो उदाहरण बने। हम उसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे।’ श्री चौहान इस वीडियो में कह रहे हैं, ‘मानवता को उसने (अभियुक्त) कलंकित किया है। घोर अमानवीय कृत्य किया है। ऐसे अपराध के लिए कठोरतम सज़ा दी जाए।’
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का ये कहना ठीक है कि अपराधी की कोई जाति, धर्म या पार्टी नहीं होती। लेकिन सीधी का यह मामला इतना सीधा भी नहीं है कि अपराधी को केवल अपराधी की तरह देखा जाए। यहां अपराधी की जाति, धर्म और पार्टी तीनों मायने रखती हैं। यहां आरोपी सवर्ण होने की दंभी मानसिकता से ग्रसित दिखाई दे रहा है, तभी वो एक आदिवासी पर इस तरह का अत्याचार कर रहा है। उसमें जाति और धर्म का घमंड साफ दिखाई दे रहा है और ये पहली बार नहीं है जब किसी आदिवासी या दलित पर ऐसा अत्याचार हुआ हो। इससे पहले घोड़ी चढ़ने से लेकर, मूंछ रखने के नाम पर दलितों को पीटा जाता रहा है। किसी मुसलमान को जबरन बांधकर उससे जय श्रीराम बुलवाया जाता है।
आदिवासी और दलित महिलाओं का शोषण आम बात है। और अक्सर शोषण करने वाले सवर्ण ही होते हैं। तो शिवराज सिंह जी धर्म और जाति को किनारे करने का मासूम तर्क यहां नहीं दे सकते। यही बात पार्टी पर भी लागू होती है। भाजपा राज में आदिवासियों के खिलाफ हुए अत्याचारों की संख्या लगातार बढ़ी है। सरकार ने फरवरी में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के जो आंकड़े बताए हैं, उसके मुताबिक देश में 2019 में कुल 7570 मामले दर्ज किए गए थे, जो 2020 में बढ़कर 8272 और 2021 में 8802 हो गए। ये मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के तीन सालों का सच है, अभी दो और सालों के आंकड़े जब आएंगे, तब पता चलेगा कि भाजपा आदिवासियों की हितैषी होने का जो दावा करती है, वो भी जुमलेबाजी है या उसमें कोई सच्चाई है।
वैसे प्रवेश शुक्ला को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 323, 123, 294, 506 और एनएसए के तहत मामला दर्ज कर दिया है। उसके अवैध कब्जे पर प्रशासन ने बुलडोजर चलाने की सख्ती भी दिखलाई है। बुलडोजर से इमारतें तो ध्वस्त हो जाती हैं, क्योंकि वो कांक्रीट और पत्थर की बनी होती हैं। मगर सवर्ण मानसिकता भारतीय समाज की जड़ों में इतनी गहरी पैठी हुई है कि कोई बुलडोजर उसे उखाड़ नहीं सकता, ध्वस्त नहीं कर सकता। ये काम सतत प्रयास से होगा। जिसमें सबसे पहल का इंतजार किए बिना समाज और राजनैतिक दलों सभी को सुधार की कोशिशें करनी होंगी। फिलहाल ऐसा नहीं दिख रहा। क्योंकि चुनाव में धर्म और जाति के नाम पर बंटे लोग ही किसी राजनैतिक दल का खेल बनाते या बिगाड़ते दिखते हैं। इस लिहाज से मध्यप्रदेश में भाजपा का खेल इस घटना के कारण बिगड़ता दिख रहा है, क्योंकि पूरे आदिवासी समुदाय में इसका गलत संदेश गया है। मध्यप्रदेश के साथ-साथ राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम बाकी चुनावी राज्यों में भी आदिवासी आबादी अधिक है और यहां भाजपा को नुकसान हो सकता है।
चुनावी नुकसान संभालने के लिहाज से ही सही अगर भाजपा सरकार इस मामले पर कार्रवाई में तेजी दिखा रही है, तो यह अच्छी बात है। मगर इसके साथ विचारणीय यह भी है कि आखिर कुछ लोगों में इस हद तक गिर कर इंसानियत को शर्मसार करने की हिम्मत आती कहां से है। क्या इसके पीछे सत्ता का नशा जिम्मेदार है। अगर ऐसा है तो इस नशे का इलाज भी जनता को तलाश लेना चाहिए। वैसे सीधी की घटना के बारे में मप्र कांग्रेस प्रवक्ता अब्बास हफ़ीज़ ने ट्वीट किया है, ‘आदरणीय शिवराज जी वीडियो के बारे में सीधी के कुछ लोगों का कहना है कि यह प्रकरण तीन महीने पहले का है लेकिन आपकी कार्रवाई तब हो रही है जब हम कांग्रेस के साथियों ने इसको उठाया। आज तक आपका प्रशासन सो रहा था क्या?’
अब सवाल ये है कि अगर घटना वाकई तीन महीने पहले की है, तो इस बारे में सरकार को कोई खबर क्यों नहीं हुई। सवाल ये भी है कि क्या आदिवासियों को प्रताड़ित करने वाली और भी घटनाएं हो रही होंगी, जिन्हें खबरों में आने से रोक दिया जाता होगा। पुलिस अब तक इतनी बेखबर क्यों थी। वैसे सोशल मीडिया पर अब पीड़ित का एक कथित शपथपत्र भी वायरल हो रहा है जिसमें लिखा गया है कि प्रवेश शुक्ला ने ऐसी कोई भी हरकत नहीं की है। तो क्या प्रवेश शुक्ला या उसके समर्थकों ने पीड़ित पर कोई दबाव बनाकर उससे ये शपथपत्र बनवाया या ये फर्जी है। अगर फर्जी है तो क्या ये प्रवेश शुक्ला को बचाने की कोशिश है। इस कोशिश के पीछे कौन लोग हैं, क्या शिवराज सिंह चौहान उस का भी पता लगवाएंगे?
प्रधानमंत्री मोदी अब तक मणिपुर का म बोलने से बचे हुए हैं, वो क्या मध्यप्रदेश का म बोल पाएंगे। क्योंकि पिछले हफ्ते ही दो बार इस राज्य में आकर मोदीजी ने बहुत बड़ी-बड़ी बातें कही हैं। यूसीसी का मुद्दा उन्होंने यहीं छेड़ा है। क्या यूसीसी को लाकर मोदीजी ऐसे अत्याचारों पर रोक की गारंटी दे सकते हैं। जब भाजपा ने राष्ट्रपति पद के लिए श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाया था, तो इस बात का खूब ढिंढोरा पीटा था कि भाजपा देश में पहली बार एक आदिवासी महिला को सर्वोच्च पद पर आसीन करना चाहती है। श्रीमती मुर्मू राष्ट्रपति बन भी गईं, लेकिन एक आदिवासी के प्रथम नागरिक होने के बावजूद देश के बाकी आदिवासी किस हाल में हैं, इसका नमूना मप्र ने दिखा दिया है। दुख इस बात का है कि देश की प्रथम नागरिक भी इस घटना पर मौन हैं।