रविंद्र पटवाल /जनचौक
संसद में मानसून सत्र के तीसरे दिन भी मणिपुर हिंसा मामले पर जमकर हंगामा होता रहा। आप पार्टी के नेता और राज्य सभा सांसद संजय सिंह को मानसून के शेष सत्र से निलंबित कर दिया है। उन पर सभापति का आदेश न मानने का आरोप लगा है। सस्पेंड करने के बाद उन्हें बाहर जाने को भी कहा गया। विपक्षी सांसदों ने इस कार्रवाई का विरोध किया है। हालांकि 2 बजे जब राज्यसभा की कार्रवाई शुरू की गई तो उपसभापति ने पाया कि संजय सिंह सदन में अपनी सीट पर मौजूद थे। उन्होंने संजय सिंह को सदन से बाहर जाने को कहा, लेकिन विपक्ष के हंगामे को देखते हुए 25 जुलाई 11 बजे तक सदन स्थगित करने का निर्देश दिया।
सदन से बाहर आकर आप नेता संजय सिंह ने पत्रकारों के समक्ष बयान दिया है, “देश के प्रधानमंत्री सदन में आकर मणिपुर की हिंसा पर जवाब क्यों नहीं दे रहे। एक आर्मी के योद्धा की पत्नी के कपड़े उतारकर परेड कराई गई, ये शर्मनाक है। भारत की सेना और भारत के 140 करोड़ लोगों का सिर शर्म से झुक गया है। लेकिन प्रधानमंत्री सदन में आकर जवाब नहीं दे रहे।”
संजय सिंह के अनुसार, “मैंने आज नियम 267 का नोटिस दिया था। पहले 15 मिनट तक मैं चेयर से अनुरोध करता रहा कि मुझे 267 के तहत बोलने का मौका दिया जाए। जब उन्होंने मौका नहीं दिया तो मैंने चेयर के पास जाकर अनुरोध किया कि मणिपुर पर चर्चा कराइए। एक सरकार मणिपुर पर बात करने के लिए तैयार नहीं है।” उन्होंने आगे कहा “हमारा विरोध जारी रहेगा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा पर मैं अपना धरना जारी रखूंगा। हमने सभी राजनीतिक पार्टियों से कहा है कि वे इस आंदोलन में शामिल हों।”
आज सदन की कार्यवाही शुरू होने से ठीक पहले लोकसभा में कांग्रेस के गौरव गोगोई, सांसद मणिकम टैगोर और राज्यसभा में आरजेडी के सांसद मनोज झा और आम आदमी पार्टी सांसद संजय सिंह ने नियम 267 के तहत चर्चा चलाने का नोटिस दिया था। इससे पहले राज्यसभा में विपक्ष लगातार मणिपुर पर नियम 267 के तहत चर्चा कराने, पीएम मोदी से बयान देने पर अड़ा हुआ था।
लोकसभा में भी विपक्षी सांसदों ने प्रधानमंत्री मोदी को सदन के भीतर मणिपुर मामले पर वक्तव्य देने की मांग करते हुए नारेबाजी की। कल से इस बात की चर्चा थी कि गृहमंत्री सदन में सरकार की ओर मणिपुर के मुद्दे पर चर्चा की शुरुआत करेंगे, लेकिन विपक्षी दल अड़े थे कि इस विषय पर पीएम मोदी बहस की शुरूआत करें और सभी दलों को नियम 267 के तहत चर्चा में भाग लेने का मौका मिले। इसके बाद पीएम मोदी सभी पक्षों और विषय की गंभीरता को समझकर अंत में अपना वक्तव्य दें।
वहीं सरकार की ओर से नियम 176 के तहत अल्पकालिक समय के लिए चर्चा का प्रस्ताव दिया गया है। इस नियम के तहत किसी खास मुद्दे पर सीमित समय के अंदर चर्चा कराने की अनुमति होती है, जिसमें अधिकतम समय ढाई घंटे से ज्यादा नही होता। ऐसा विषय जो सार्वजनिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हो उस पर कोई भी सदस्य चर्चा कराने के लिए नोटिस दे सकता है। इसमें एक शर्त यह भी जुड़ी है कि जो भी सदस्य इस नियम के तहत नोटिस देता है उसको नोटिस के साथ कारण भी बताना होता है और इसके साथ ही दो सदस्यों का इसके समर्थन में हस्ताक्षर भी होना चाहिए।
नियम 267 के तहत राज्यसभा में चर्चा करने का प्रावधान है, जिसके तहत राज्यसभा के सभापति की सहमति से कोई भी राज्यसभा सदस्य प्रस्ताव ला सकता है। लेकिन किन नियमों के तहत सदन के भीतर चर्चा होगी इसे सभापति द्वारा तय किया जाता है। इसमें सदन के पूर्व निर्धारित एजेंडे को निलंबित करने की विशेष शक्ति निहित है। इस नियम की विशेषता या महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर चर्चा हेतु अन्य सभी विषयों या चर्चाओं को रोक दिया जाता है।
इससे स्पष्ट संदेश जाता है कि देश के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। विपक्ष के द्वारा उठाये गये सवालों पर जवाब संबंधित मंत्रालय के मंत्री द्वारा दिया जाता है और इस नियम के तहत चर्चा के बाद वोटिंग कराने का भी प्रावधान है। नियम 267 के तहत यदि चर्चा करने की इजाजत मिलती है तो उस दिन के लिस्टेड एजेंडे को निलंबित कर दिया जाता है। इसलिए विपक्ष इस नियम के तहत चर्चा कराने की मांग पर अड़ा हुआ है।
सरकार विपक्ष पर आरोप लगा रही है कि विपक्ष मणिपुर पर चर्चा से भाग रही है। लेकिन असल बात यह है कि विपक्ष इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा चाहता है, और साथ ही पीएम मोदी को कठघरे में खड़ा करना चाहता है। पीएम मोदी ने मणिपुर पर 36 सेकंड का वक्तव्य दिया था, और घटना पर दुःख जताते हुए भी मणिपुर के साथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर भी चिंता व्यक्त कर कहीं न कहीं मणिपुर पर राष्ट्रीय शर्म और चिंता पर पर्दा डालने का काम किया था।
सदन में जारी हंगामे पर सरकार और राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल में एकतरफा सरकारी पक्ष को पेश कर देश को गुमराह करना जारी है। विपक्ष के सामने इससे पहले भी कई बार सरकार को घेरने के मौके आये थे, जिसमें नोटबंदी से लेकर राफेल सौदे, अडानी-हिंडनबर्ग, महिला पहलवानों के यौन शोषण का मामला सहित किसान आंदोलन के मुद्दे थे, लेकिन इन सभी मुद्दों पर देश की राय एकमत नहीं थी।
लेकिन मणिपुर में 80 दिनों से जारी हिंसा, डबल इंजन सरकार की विफलता, राज्य सरकार की बहुसंख्यक समुदाय के साथ संलिप्तता और भारी सैन्य बलों की उपस्थिति के बावजूद शांति-व्यवस्था से कोसों दूर मणिपुर की समस्या जस की तस बनी हुई है। इस मुद्दे पर मोदी सरकार पूरी तरह से घिरी हुई है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने जब स्वतः संज्ञान की धमकी दी, तब जाकर कहीं पीएम मोदी ने इस बारे में मुंह खोला है।
आज मणिपुर जातीय हिंसा और यौन दुर्व्यहार का मामला भारत ही नहीं बल्कि ब्रिटेन, अमेरिका सहित यूरोपीय संसद के भीतर तक चर्चा, प्रस्ताव और भारत को नसीहत के रूप में देखने को मिल रहा है। पिछले 9 वर्षों से मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ नियोजित घृणा अभियान, मॉब लिंचिंग, आर्थिक बहिष्कार और बुलडोजर नीति के बावजूद विपक्ष कमोबेश खामोश देखता रहा। विश्व ने भी भारतीय लोकतंत्र के क्षरण पर कभीकभार टिप्पणी कर भारतीय नेतृत्व पर दबाब बनाकर अपने हिस्से का केक ही छीनने पर फोकस बनाये रखा।
लेकिन मणिपुर की जातीय हिंसा को पश्चिमी देश हिंदू-ईसाई संघर्ष के चश्मे से देख रहा है, और पहली बार हिन्दुत्ववादी परियोजना पर तथाकथित पश्चिमी लोकतंत्र ने गंभीरता से पहलकदमी लेने की शुरुआत की है। विपक्ष भी इस मौके को खोने के पक्ष में नहीं है, और आगामी लोकसभा चुनावों में उसके पास हिंदू राष्ट्र बनाने के 10 वर्ष बनाम समावेशी लोकतांत्रिक भारत के नैरेटिव के साथ हल्ला बोलने का सुनहरा अवसर है।
इस प्रकार आज तीसरे दिन भी सदन की कार्रवाई नहीं चलाई जा सकी। सरकार करीब 31 बिल संसद में पेश करना चाहती है, इसमें 10 पहली बार संसद में पेश होंगे। इनमें से 3 बिल सरकार की निगाह में बेहद अहम हैं। 1) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023 जिसके तहत दिल्ली में अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के अधिकार को पुनर्परिभाषित किया गया । 2) डिजिटल पसर्नल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2023 और 3) जन विश्वास (प्रावधान संशोधन) विधेयक, 2023 है।