राष्ट्रीय स्तर पर एक तरफ कांग्रेस वर्तमान हिंदुत्ववादी राजनीति के ख़िलाफ़ लड़ने का दम भरती है, वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश में इसके वरिष्ठ नेता कमलनाथ हिंदुत्व के घोर सांप्रदायिक चेहरों की आरती उतारते और भरे मंच पर उन्हें सम्मानित करते नज़र आते हैं.
इस तरह केंद्र और मध्य प्रदेश में कांग्रेस के दो अलग-अलग चेहरे नज़र आते हैं. केंद्र में कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता की पैरवी करती है और वर्तमान मुस्लिम विरोधी हिंदुत्ववादी राजनीति के ख़िलाफ़ लड़ने का दम भरती है, वहीं दूसरी ओर दिल्ली से थोड़े ही फासले पर स्थित मध्य प्रदेश में वह अपने वरिष्ठ नेता कमलनाथ के नेतृत्व में हिंदुत्व के घोर सांप्रदायिक चेहरों का भरे मंच पर सम्मान करती है.
हालिया उदाहरण मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा ज़िले में देखा गया. महिलाओं को ‘खाली/रजिस्टर्ड प्लॉट’ बताने वाले ‘हिंदू राष्ट्र’ के कट्टर समर्थक- जो धर्मांतरण के माध्यम से मुस्लिमों की ‘घर वापसी’ के ब्रांड एंबेसडर बन चुके हैं, उनकी संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने की पैरवी करते रहे हैं और ‘लव जिहाद’ का नारा देकर हिंदुओं से जागने का आह्वान करते रहे हैं- बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री कथा वाचन के लिए छिंदवाड़ा पहुंचे तो अपने गृह ज़िले में कमलनाथ और उनके सांसद पुत्र नकुलनाथ ने न सिर्फ उनकी आरती उतारी, बल्कि उनकी तारीफ में कसीदे भी पढ़े.
धीरेंद्र शास्त्री के सांप्रदायिक अतीत से आंखें मूंदते हुए कमलनाथ कहते नज़र आए, ‘भारत की सबसे बड़ी शक्ति है आध्यात्मिक शक्ति और महाराज जी इस आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक हैं.’ इससे पहले भी, कमलनाथ और अन्य कांग्रेसी नेता धीरेंद्र शास्त्री के चरणों में नमन की मुद्रा में बैठे नज़र आ चुके हैं.
पहले बजरंग सेना और अब धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, जिन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की डगर पर चलते हुए ‘हिंदू ख़तरे में’ नज़र आता है और एक बार नहीं बार-बार भरे मंच से एक धर्म विशेष के ख़िलाफ़ ज़हर उगल चुके हैं, कमलनाथ की आंखों का नूर बन गए हैं.
जब बीते जून माह में कमलनाथ की मौजूदगी में बजरंग सेना का कांग्रेस में विलय हुआ था तो कांग्रेस नेताओं का दावा था कि सेना के पदाधिकारियों का हृदय परिवर्तन हो गया है और उन्होंने कांग्रेस की विचारधारा को अंगीकार कर लिया है, लेकिन सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणवीर पटेरिया ने द वायर से बातचीत में कहा था कि वह अपनी ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग पर बने हुए हैं और कांग्रेस ने केंद्र में सरकार बनने की स्थिति में भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने का प्रयास करने का आश्वासन दिया है.
कांग्रेसी तब इस बयान से पल्ला झाड़ते नज़र आ रहे थे, लेकिन अब ‘हिंदू राष्ट्र’ समर्थक एक और चेहरे से कांग्रेस की क़रीबी के बाद क्या ऐसा कह सकते हैं कि बजरंग सेना का तो नहीं, कमलनाथ और कांग्रेस का जरूर हृदय परिवर्तन हो गया है और सत्ता की सियासत के लिए उसे संघ की विचारधारा अंगीकार करने से भी परहेज नहीं रहा है?
कांग्रेस के करीबी माने जाने वाले आचार्य प्रमोद कृष्णन का कमलनाथ के कदम की आलोचना करते हुए सोमवार को किया गया ट्वीट तो कुछ ऐसा ही कहता है.
उन्होंने लिखा है, ‘मुसलमानों के ऊपर ‘बुलडोज़र’ चढ़ाने और आरएसएस का एजेंडा ‘हिंदू राष्ट्र’ की खुल्लमखुल्ला वकालत करके ‘संविधान’ की धज्जियां उड़ाने वाले भाजपा के स्टार प्रचारक की आरती उतारना कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को शोभा नहीं देता.’
कमलनाथ और मध्य प्रदेश के अन्य कांग्रेसी नेताओं के बयान भी उपरोक्त तथ्य से मेल खाते हैं.
बजरंग सेना के विलय के समय एक कांग्रेसी प्रवक्ता ने द वायर से कहा था, ‘भारत हिंदू राष्ट्र है क्योंकि यहां 80-82 फीसदी हिंदू रहते हैं.’ अब, प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने भी यही दोहरा दिया है. उनसे जब धीरेंद्र शास्त्री की ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग के संबंध में सवाल किया गया तो वे बोले, ‘उन्होंने छिंदवाड़ा में ऐसी कोई मांग नहीं की, सबके अपने विचार होते हैं जब लोग उनसे पूछते हैं… आज 82 प्रतिशत हमारे देश में हिंदू हैं, तो ये कौन सा राष्ट्र है?’
ऐसा उद्बोधन देने के बाद भी कमलनाथ ‘धर्मनिरपेक्ष’ होने की बात कहने लगते हैं, लेकिन क्या संविधान में भारत के ‘हिंदू बहुसंख्यक’ होने के नाते इसे ‘हिंदू राष्ट्र’ कहा गया है? और क्या एक घोर सांप्रदायिक व्यक्ति सिर्फ आपके समक्ष सांप्रदायिकता की बातें न करे तो वह ‘धर्मनिरपेक्ष’ बन जाता है?
इससे पहले, जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में फैसला सुनाया था, तब भी मध्य प्रदेश कांग्रेस समिति का कार्यालय भगवामय हो गया था. कई मौकों पर कांग्रेसी नेता द वायर के साथ बातचीत में गर्व के साथ यह कह चुके हैं कि ‘राम मंदिर निर्माण का श्रेय हमें जाता है क्योंकि राजीव गांधी ने ही राम मंदिर के पट खुलवाए थे.’
यहां वे भूल जाते हैं कि इसके बाद भड़की सांप्रदायिक हिंसा में कितने परिवारों ने मातम के आंसू बहाए थे.
बहरहाल, आचार्य प्रमोद कृष्णन ने वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं पर तंज कसते हुए लिखा, ‘आज रो रही होगी (महात्मा) गांधी की आत्मा और तड़प रहे होंगे पंडित नेहरू और भगत सिंह, लेकिन धर्मनिरपेक्षता के ध्वजवाहक जयराम रमेश, दिग्विजय सिंह और (कांग्रेस अध्यक्ष) मल्लिकार्जुन खड़गे सब खामोश हैं.’
उन्होंने ट्वीट में ‘मोहब्बत की दुकान’ खोलने वाले राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को भी टैग किया, लेकिन किसी की भी इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. और ऐसा पहली बार नहीं है कि केंद्र में धर्मनिरपेक्षता, संविधान और महात्मा गांधी के आदर्शों की दुहाई देने वाली कांग्रेस और इसका केंद्रीय नेतृत्व मध्य प्रदेश में इनके उल्लंघन पर चुप्पी साध लेता है.
बीते दिनों घोर सांप्रदायिक और ‘गोडसे समर्थक’ बजरंग सेना के मामले में भी यही हुआ था.
इससे पहले, कमलनाथ जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने गांधी के हत्यारे ‘नाथूराम गोडसे’ के मंदिर की नींव रखने वाले बाबूलाल चौरसिया को पार्टी में शामिल कर लिया था, तब भी केंद्रीय नेतृत्व चुप्पी ओढ़े बैठा रहा.
शायद इस चुप्पी का कारण सत्ता से वो लंबी जुदाई है जिसने बीते विधानसभा चुनावों में भी राहुल गांधी को ‘शिव भक्त’ बताते हुए प्रदेश भर को होर्डिंग/पोस्टर से पाट दिया था और दिग्विजय सिंह को कम्प्यूटर बाबा एवं यौन उत्पीड़न के आरोप में जेल में बंद मिर्ची बाबा की शरण में पहुंचा दिया था. वह कांग्रेस का ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ था, जो अब ‘हार्डकोर हिंदुत्व’ में पदोन्नत होता प्रतीत हो रहा है.
रोचक यह है कि राज्य में सरकार बनाने की जुगत में जिस धीरेंद्र शास्त्री को प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और उनके सांसद बेटे नकुलनाथ अपना ‘नाथ’ या ‘सरकार’ बता रहे हैं, उन्हें राज्य विधानसभा में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ‘फर्ज़ी‘ करार दे चुके हैं. उन्होंने तो सार्वजनिक तौर पर शास्त्री को भाजपा का प्रचारक भी बताया था.
वैसे, कमलनाथ की मानें तो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी धीरेंद्र शास्त्री के दरबार में हाजिरी लगा चुके हैं. हां, वो बात अलग है कि सार्वजनिक तौर पर दिग्विजय सिंह हिंदू राष्ट्र, लव जिहाद, बुलडोजर न्याय आदि के खिलाफ संघ और भाजपा को घेरते देखे जा सकते हैं.
बहरहाल, कमलनाथ भले ही अपने बचाव में कहते रहें कि पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने छिंदवाड़ा में कोई ज़हर (हिंदू राष्ट्र की बात) नहीं उगला, लेकिन वह यह ज़रूर कह गए, ‘ज्ञानवापी मस्जिद नहीं है, भगवान शंकर का मंदिर है.’ अब इस बयान के परिपेक्ष्य में कांग्रेस की सियासत को समझिए कि केंद्र में वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को लेकर वरिष्ठ पार्टी नेता पी. चिदंबरम और सलमान खुर्शीद ठीक इसके विपरीत राय व्यक्त करते नज़र आ रहे थे.
इसे क्या कहें, सत्ता की चाह में सस्ती सियासत का विरोधाभास, जिसके तहत केंद्र में खुल रही ‘मोहब्बत की दुकान’ का ‘शटर’ मध्य प्रदेश में सांप्रदायिक सोच वाले साथियों के लिए ‘नीचे गिरा दिया जाता है.’