जे.पी.सिंह
नूंह में विध्वंस अभियान पर रोक लगाने वाली पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय की खंडपीठ को बदले जाने को लेकर पूरे देश में भ्रान्ति फ़ैल गयी है। कहा जा रहा है कि बेंच में शामिल जजों, जस्टिस गुरमीत सिंह संधावालिया और जस्टिस हरप्रीत कौर जीवन का तबादला कर दिया गया है। जबकि बेंच बदली गयी है, जजों का तबादला नहीं हुआ।
शुक्रवार को इस मामले में जब सुनवाई हुई तो हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण पल्ली व जगमोहन बंसल की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई से इनकार कर दिया। जस्टिस अरुण पल्ली ने कहा कि यह हाईकोर्ट द्वारा लिया गया संज्ञान है। इस पर चीफ जस्टिस की बेंच ही सुनवाई कर सकती है।
इसके बाद मामले की सुनवाई अगले शुक्रवार तक स्थगित कर दी गई। लेकिन सारा रायता मास्टर ऑफ़ रोस्टर के कारण फैला हुआ है क्योंकि चीफ जस्टिस एक हफ्ते के अवकाश पर हैं और मास्टर ऑफ़ रोस्टर का दायित्व सबसे वरिष्ट न्यायाधीश को सौपा नहीं गया है।
दरअसल 7 अगस्त को, जस्टिस गुरमीत सिंह संधावालिया और जस्टिस हरप्रीत कौर जीवन की पीठ ने नूंह में विध्वंस पर स्वत: संज्ञान लेते हुए विध्वंस अभियान पर रोक लगा दी और पाया कि उचित प्रक्रिया के बिना कानून-व्यवस्था की स्थिति का इमारतों को गिराने की एक चाल के रूप में “इस्तेमाल” किया जा रहा था।
पहली सुनवाई के बाद दूसरी सुनवाई गुरुवार को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय की एक नई पीठ को सौंपी गई, जिसके कुछ दिनों बाद पहली बार सुनवाई करने वाले न्यायाधीशों ने राज्य सरकार से पूछा कि क्या उसने सांप्रदायिक हिंसा प्रभावित जिले में कार्रवाई की है। यह “जातीय सफ़ाई” का एक कार्य था। जस्टिस अरुण पल्ली और जगमोहन बंसल की बेंच शुक्रवार को मामले की सुनवाई करनी थी। शुक्रवार को हाईकोर्ट में इस केस की सुनवाई के दौरान जस्टिस अरुण पल्ली और जगमोहन बंसल की बेंच ने खुद को मामले से अलग करते हुए सुनवाई से इनकार कर दिया।
इस पुनर्नियुक्ति के कारण तुरंत स्पष्ट नहीं थे। उच्च न्यायालय का चीफ जस्टिस उसका “मास्टर ऑफ रोस्टर” होता है और न्यायाधीशों को मामले सौंपता है। प्रक्रिया के अनुसार, किसी न्यायाधीश या पीठ द्वारा किसी मामले का स्वत: संज्ञान लेने के बाद मामले को चीफ जस्टिस के पास विचार के लिए भेजा जाता है, जो जनहित याचिका पीठ की अध्यक्षता करते हैं। यह जांच का विषय बन गया है कि मास्टर ऑफ रोस्टर की अनुपस्थिति में कौन मास्टर ऑफ रोस्टर के दायित्व का निर्वहन कर रहा है और किसके कहने से बेंच बदली गयी।
हालांकि, चूंकि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस रविशंकर झा अवकाश पर हैं और अदालत नहीं कर रहे हैं, इसलिए मामले को जस्टिस पल्ली और जस्टिस बंसल की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया, जहां अन्य जनहित याचिका मामले भी शुक्रवार को सुनवाई के लिए हैं। शुक्रवार को इस मामले में जब सुनवाई हुई तो हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण पल्ली व जगमोहन बंसल की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई से इनकार कर दिया।
अरुण पल्ली ने कहा कि यह हाईकोर्ट द्वारा लिया गया संज्ञान है। इस पर चीफ जस्टिस की बेंच ही सुनवाई कर सकती है। जस्टिस पल्ली ने कहा की हाईकोर्ट नियमों के तहत जनहित याचिका पर केवल चीफ जस्टिस सुनवाई कर सकते हैं। इसके बाद मामले की सुनवाई अगले शुक्रवार तक स्थगित कर दी गई है।
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान, सरकार विध्वंस पर एक रिपोर्ट पेश करने और यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या अभियान के दौरान गिराई गई इमारतों के रहने वालों को अग्रिम नोटिस दिया गया था।
झड़पों के बाद, अधिकारियों ने लगभग 1,200 संपत्तियों को निशाना बनाया, जिनमें से लगभग सभी मुसलमानों की थीं, इस आधार पर कि वे अतिक्रमण थीं या हिंसा में शामिल लोगों के स्वामित्व में थीं। 30 जुलाई को जिले में सांप्रदायिक हिंसा भड़कने के चार दिन बाद 3 अगस्त को नूंह में विध्वंस की कवायद शुरू हुई। यह 7 अगस्त की सुबह तक जारी रही, जब उच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया और सरकार से इसे करने के तरीके पर सवाल उठाया।
प्रशासन ने 753 से ज्यादा घर-दुकान, शोरूम, झुग्गियां और होटल गिराए गए। नूंह में प्रशासन ने 37 जगहों पर कार्रवाई कर 57.5 एकड़ जमीन खाली कराई। इनमें 162 स्थायी और 591 अस्थायी निर्माण गिराए गए।
अब अगली सुनवाई चीफ जस्टिस पर आधारित बेंच करेगी। नूंह में 31 जुलाई को हिंसा की घटनाएं हुईं थीं। इन घटनाओं में छह लोगों की मौत होने और बड़ी संख्या में संपत्ति नष्ट हुई थी। इसके बाद दो अगस्त से हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण, नूंह प्रशासन और जिला योजना विभाग की टीमों ने नूंह में अवैध निर्माण गिराने की कार्रवाई शुरू की थी। इस अभियान के तहत हजारों की संख्या में जहां कच्चे निर्माण हटाए जा चुके हैं वहीं भारी संख्या में पक्के निर्माण भी गिराए गए हैं।
वहीं, इस मामले में सरकार ने कोर्ट को जवाब देने के लिए समय मांगा है। सरकार ने कोर्ट में कहा वह नियमों के खिलाफ करवाई नहीं कर रही है। हरियाणा के अतिरिक्त महाधिवक्ता दीपक सबरवाल ने सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश होकर अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा की गुरुग्राम और नूंह में अवैध निर्माण गिराने पर कोई रोक नहीं है। नियमों के तहत सरकार अभी भी अवैध निर्माण गिराने की कार्रवाई जारी रखी है।
(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)