देहरादून। विगत मई माह में भारी वनाग्नि के बाद सीएम पुष्कर सिंह धामी ने समीक्षा बैठक में पिरुल को इसका बड़ा कारण माना था। सीएम ने पिरुल की समस्या से निपटने लिए सरकारी स्तर पर इसकी खऱीद का फैसला किया था। सीएम धामी ने वन विभाग के अधीन आने वाले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोडल संस्था बनाते हुए 50 रुपये प्रति किलो की दर से पिरुल खरीदने का आदेश दिया था। लोगों ने पिरुल एकत्र किया और जब बेचने आए तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मजह तीन रुपये प्रति किलो की दर से ही भुगतान किया है।
गैर सरकारी संगठन एसडीसी फाउंडेशन के मुखिया अनूप नौटियाल ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर अमर उजाला अखबार की दो कतरनें साझा की है। नौ मई के अखबार की कटिंग में लिखा है कि एक किलो पिरुल के लिए 50 रुपये देगी सरकार। इसकी खरीद के लिए सरकार प्रदेशभऱ में 250 कलेक्शन सेंटर बनाएगी। सीएम धामी ने इस खरीद के लिए उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोडल एजेंसी बनाने और 50 करोड़ का कारपस फंड बनाने का आदेश दिया है।
इसी खबर के साथ 29 जून की एक और खबर अनूप ने चस्पा की है। इसके अनुसार प्रदेश में 2800 कुंतल पिरुल जमा कराया गया है। विभाग इसकी तीन रुपये किलो की दर से भुगतान करेगा। निजी कंपनियां भी इसी दर से भुगतान करेंगी। सवाल यह है कि जब सीएम धामी ने पिरुल की खरीद दर 50 रुपये प्रति किलो करने का आदेश दिया है तो वन विभाग महज तीन रुपये की दर से भुगतान क्यों कर रहा है।
वन अफसरों की ना-फरमानी का यह अकेला उदाहरण नहीं है। आठ मई की बैठक में सीएम धामी ने आदेश दिया था कि वन कर्मियों और फायर वाचरों की तीन लाख की जीवन बीमा करवाया जाए। अफसरों ने इसे भी हवा में उड़ा दिया। नतीजा यह रहा है कि वनाग्नि की चपेट में आकर असमय मौत के आगोश में चले गए कर्मियों को इसका लाभ नहीं मिल सका।