(जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए एक विशेष साक्षात्कार में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर, नयी विश्व व्यवस्था को “संचालित” करने में भारत की “महत्वपूर्ण भूमिका” है और उसने इस संबंध में “शांति की अपील करते हुए अपने संप्रभु और आर्थिक हितों को पहले स्थान पर रखकर सही काम किया है।” साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि वह “भारत के भविष्य के बारे में चिंतित होने की तुलना में अधिक आशावादी हैं,” लेकिन वह आशावाद “भारत के एक सामाजिक समरसता वाला समाज बने रहने पर निर्भर है।” मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान ही, 2008 के वित्तीय संकट के बाद वैश्विक नेताओं के शिखर सम्मेलन के रूप में जी-20 अस्तित्व में आया था। उन्होंने यह भी कहा है कि दुनिया में भारत की स्थिति घरेलू राजनीति में एक मुद्दा होना चाहिए, लेकिन “कूटनीति और विदेश नीति का उपयोग पार्टी या व्यक्तिगत राजनीति के लिए” करने में “संयम और सावधानी” बरती जानी चाहिए। प्रस्तुत हैं बातचीत के अंश:)
प्रश्न: भारत शनिवार से शुरू होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा; आप एक दशक (2004-14) तक भारत के प्रधानमंत्री रहे, इस दौरान आप कई जी-20 शिखर सम्मेलनों का हिस्सा थे। आप घरेलू राजनीति में विदेश नीति की बदलती या विकसित होती भूमिका को कैसे देखते हैं?
मनमोहन सिंह: मुझे बहुत खुशी है कि जी-20 के सदस्य देशों को बारी-बारी से मिलने वाली अध्यक्षता का मौका भारत को मेरे जीवनकाल में ही मिला और मैं जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए भारत द्वारा विश्व नेताओं की मेजबानी का गवाह हूं। विदेश नीति हमेशा से भारत के शासन ढांचे का एक महत्वपूर्ण तत्व रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि यह आज के समय में घरेलू राजनीति के लिए पहले की तुलना में इसका और भी इस्तेमाल किया जाने लगा है। हालांकि दुनिया में भारत की स्थिति घरेलू राजनीति में एक मुद्दा होना चाहिए, लेकिन किसी पार्टी या व्यक्तिगत राजनीति के लिए कूटनीति और विदेश नीति का इस्तेमाल करने में संयम बरतना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
प्रश्न: अब आप वैश्विक स्तर पर भारत के वर्तमान स्थान और वर्तमान तथा बदलती विश्व व्यवस्था में इसकी भूमिका को किस प्रकार देखते हैं?
मनमोहन सिंह: खासकर रूस-यूक्रेन संघर्ष और पश्चिमी देशों और चीन के बीच भू-राजनीतिक दरार के बाद अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था अब बहुत अलग हो गयी है। इस नयी विश्व व्यवस्था को चलाने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है। आजादी के बाद से ही निर्मित संवैधानिक मूल्यों वाले एक शांतिपूर्ण बड़े लोकतंत्र और एक बढ़ती हुई बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत को विश्व स्तर पर अत्यधिक सम्मान प्राप्त है।
प्रश्न: 2008 में वैश्विक वित्तीय मंदी के बाद जी-20 को प्रारंभिक मंत्रिस्तरीय परामर्श के मंच से शासनाध्यक्षों के शिखर सम्मेलन के स्तर तक ऊपर उठाया गया था। वैश्विक अर्थव्यवस्था और भारतीय अर्थव्यवस्था दोनों ने तब से कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने अब क्या चुनौतियां हैं और भारत इस समय किस स्थिति में है?
मनमोहन सिंह: सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में भारत का विदेशी व्यापार 2005 से 2015 के दशक में दोगुना हो गया, जिससे हमें बहुत फायदा हुआ। करोड़ों लोग गरीबी से बाहर निकले। इसका मतलब यह भी है कि भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ अधिक एकीकृत है। 2008 के वित्तीय संकट के दौरान जी-20 ने नीतिगत प्रतिक्रियाओं के समन्वय, वैश्विक वित्तीय सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने और अंतर-सरकारी समन्वय की प्रक्रिया शुरू करने में बहुत अच्छा काम किया। वर्तमान में वि-वैश्वीकरण (डी-ग्लोबलाइजेशन) और नये प्रकार के व्यापार प्रतिबंधों की बात हो रही है। ये मौजूदा व्यवस्था को बाधित कर सकते हैं लेकिन वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में भारत के लिए नये अवसर भी खोल सकते हैं। यह भारत के आर्थिक हित में है कि वह संघर्षों में न फंसे और देशों और क्षेत्रों के बीच व्यापारिक संबंधों का संतुलन बनाए रखे।
प्रश्न: अब जी-20 देशों के सामने क्या चुनौतियां हैं, खासकर रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर? नयी दिल्ली रूस और पश्चिम के साथ अपने संबंधों को संयोजित करने में कितनी चतुराई से काम कर रही है?
मनमोहन सिंह: जब दो या दो से अधिक शक्तियां संघर्ष में फंस जाती हैं, तो अन्य देशों पर पक्ष चुनने का भारी दबाव होता है। मेरा मानना है कि भारत ने शांति की अपील करते हुए हमारे संप्रभु और आर्थिक हितों को पहले रखकर सही काम किया है। सुरक्षा संबंधी विवादों को निपटाने के मंच के रूप में जी-20 की कभी कल्पना नहीं की गयी थी। जी-20 के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह सुरक्षा मतभेदों को दूर रखे और वैश्विक व्यापार में जलवायु, असमानता और विश्वास की चुनौतियों से निपटने के लिए नीति समन्वय पर अपना ध्यान केंद्रित रखे।
प्रश्न: भारत और चीन जी-20 के साथ-साथ ब्रिक्स के भी सदस्य हैं। एलएसी पर तनाव अभी तक सुलझ नहीं पाया है। एक पूर्व प्रधानमंत्री के रूप में आप भारत-चीन संबंधों को कैसे देखते हैं और सरकार को आपकी क्या सलाह है?
मनमोहन सिंह: मेरे लिए प्रधानमंत्री को जटिल राजनयिक मामलों को संभालने के बारे में सलाह देना सही नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेने का फैसला किया है। मुझे आशा और विश्वास है कि प्रधानमंत्री भारत की क्षेत्रीय और संप्रभु अखंडता की रक्षा करने और द्विपक्षीय तनाव को कम करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे।
प्रश्न: जब आप प्रधानमंत्री थे तब चंद्रयान-1 लॉन्च किया गया था। अब भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास एक अंतरिक्ष यान उतारा है। आप चंद्रयान कार्यक्रम और इसकी सफलता का मूल्यांकन कैसे करते हैं?
मनमोहन सिंह: यह बहुत गर्व की बात है कि भारत के वैज्ञानिक प्रतिष्ठान ने एक बार फिर दुनिया की सर्वश्रेष्ठ शक्तियों में से एक होने की अपनी क्षमता साबित की है। समाज में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने और संस्थान बनाने में पिछले सात दशकों में हमारे प्रयासों से भारी लाभ हुआ है और हम सभी को गौरवान्वित किया है। मैं वास्तव में रोमांचित हूं कि चंद्रयान मिशन, जिसे 2008 में लॉन्च किया गया था, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला मिशन बनकर नयी ऊंचाइयों पर पहुंच गया है। इसरो के सभी स्त्री-पुरुषों को मेरी हार्दिक बधाई।
प्रश्न: भारत के सामने क्या चुनौतियां हैं-मध्यम अवधि में अर्थव्यवस्था के लिए कौन से सुधार महत्वपूर्ण हैं और आप उन्हें किस क्रम में रखेंगे? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि उनके अगले कार्यकाल में भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा। आप इसे कैसे देखते हैं?
मनमोहन सिंह: जैसा कि मैंने पिछले साल ‘द हिंदू’ में एक लेख में लिखा था, भारत बदलती विश्व व्यवस्था में एक अद्वितीय आर्थिक अवसर के मुहाने पर खड़ा है। एक बड़े बाजार और प्रचुर मानव और प्राकृतिक संसाधनों के साथ एक शांतिपूर्ण लोकतंत्र के रूप में, भारत आने वाले दशकों में सेवाओं के साथ-साथ विनिर्माण और उत्पादन पर जोर देकर दुनिया की एक आर्थिक महाशक्ति बन सकता है। जैसे-जैसे दुनिया पर्यावरण-अनुकूल विकास मॉडल में परिवर्तित हो रही है, यह हरित गतिशीलता, खनिज और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों जैसे नये रास्ते खोलता है, जिसका लाभ उठाने के लिए भारत को तैयार रहना चाहिए, जो हमारे लोगों को रोजगार और समृद्धि प्रदान कर सकता है।
प्रश्न: जैसा कि भारत स्वतंत्रता का 75वां वर्ष मना रहा है, आप आगे की चुनौतियों को कैसे देखते हैं?
मनमोहन सिंह: कुल मिलाकर, मैं भारत के भविष्य को लेकर चिंतित होने की बजाय अधिक आशावादी हूं। हालांकि, मेरी आशावादिता इस बात पर निर्भर है कि भारत एक सामंजस्यपूर्ण समाज बने, जो हर तरह की प्रगति और विकास का आधार है। भारत की सहज प्रवृत्ति विविधता का स्वागत करना और उसका जश्न मनाना है जिसे संरक्षित किया जाना चाहिए।
(‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से साभार; अनुवाद : शैलेश।)