November 24, 2024

जेपी सिंह

सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को मंगलवार को जबर्दस्त झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने जहां एक ओर ईडी निदेशक संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल विस्तार को अवैध ठहरा दिया। वहीं दूसरी ओर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के उस निर्देश पर रोक लगा दी, जिसमें दिल्ली के उपराज्यपाल को यमुना नदी प्रदूषण के लिए उच्च स्तरीय समिति का प्रमुख नियुक्त किया गया था। यक्ष प्रश्न है कि अबतक अवैध विस्तार के कारण ईडी निदेशक संजय कुमार मिश्रा द्वारा लिए गये निर्णयों कि क्या सुप्रीम कोर्ट समीक्षा करेगा? अदालत ने संजय मिश्रा को पद छोड़ने के लिए 31 जुलाई तक का समय दिया है।

गौरतलब है कि संजय कुमार मिश्रा को नवंबर 2018 में प्रवर्तन निदेशालय के पूर्णकालिक प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था। वो 1984 बैच के भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) कैडर के अधिकारी हैं। उन्हें पहले जांच एजेंसी में प्रमुख विशेष निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। ईडी में नियुक्ति से पहले संजय मिश्रा दिल्ली में आयकर विभाग के मुख्य आयुक्त के रूप में कार्यरत थे।

केंद्र सरकार ने सबसे पहले 2020 में उनको एक साल का सेवा विस्तार दिया था। तब 18 नवंबर, 2021 तक के लिए उनका कार्यकाल बढ़ाया गया था। फिर 2021 में कार्यकाल समाप्त होने से एक दिन पहले ही उन्हें दोबारा सेवा विस्तार दिया गया। ये दूसरी बार था। वहीं, 17 नवंबर 2022 को संजय कुमार मिश्रा का दूसरा सेवा विस्तार खत्म होने से पहले ही कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने एक वर्ष (18 नवंबर 2022 से 18 नवंबर 2023 तक) के लिए तीसरे सेवा विस्तार को मंजूरी दे दी थी।

प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक के कार्यकाल के विस्तार को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाएं दाखिल की गई थीं। इनमें उनके सेवा विस्तार को अवैध ठहराया गया था।

न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने माना कि मिश्रा को दिया गया विस्तार इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ द्वारा दिए गए 2021 के फैसले के विपरीत था, जिसमें शीर्ष अदालत ने एक परमादेश जारी किया था, जिसमें मिश्रा को नवंबर 2021 से आगे विस्तार देने से रोक दिया गया था।

प्रासंगिक रूप से, न्यायालय ने केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम (सीवीसी अधिनियम) में विधायिका द्वारा किए गए संशोधनों को बरकरार रखा, जिससे केंद्र सरकार को ईडी निदेशक का कार्यकाल 5 साल तक बढ़ाने की शक्ति मिल गई।

कोर्ट ने आदेश दिया कि सीवीसी अधिनियम और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम को चुनौती इस हद तक खारिज की जाती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संजय कुमार मिश्रा को दिया गया विस्तार अवैध है। हालांकि, उन्हें 31 जुलाई, 2023 तक पद पर बने रहने की अनुमति है।

न्यायालय ने कहा कि हालांकि विधायिका को ईडी निदेशक के कार्यकाल के विस्तार की अनुमति देने वाला कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन यह मिश्रा के बचाव में नहीं आएगा क्योंकि शीर्ष अदालत ने अपने 2021 के फैसले में मिश्रा को और विस्तार दिए जाने के खिलाफ एक विशिष्ट आदेश दिया था।

न्यायालय ने कहा कि हमने माना है कि हालांकि विधायिका फैसले का आधार छीनने में सक्षम है, लेकिन वह परमादेश को रद्द नहीं कर सकती। कॉमन कॉज फैसले में, एक विशिष्ट परमादेश था और यह निर्देश दिया गया था कि आगे कोई विस्तार नहीं होना चाहिए। इस प्रकार, फैसले के बाद दिया गया विस्तार कानून में अमान्य है।

विशेष रूप से सीवीसी अधिनियम में संशोधन पर, न्यायालय ने कहा कि न्यायपालिका केवल तभी हस्तक्षेप कर सकती है जब यह मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है या यदि यह स्पष्ट रूप से मनमाना है। कोर्ट ने कानून को बरकरार रखते हुए कहा कि हमने माना है कि कोई स्पष्ट मनमानी नहीं है। विधायिका कानून बना सकती है। जब यह सार्वजनिक हित में और लिखित कारणों के साथ उच्च स्तर के अधिकारियों के बारे में हो तो विस्तार दिया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि इस साल वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) द्वारा की जा रही सहकर्मी समीक्षा के मद्देनजर और सुचारु बदलाव को करने के लिए एसके मिश्रा का कार्यकाल 31 जुलाई तक रहेगा। जबकि सरकार से जारी अधिसूचना के मुताबिक 1984 बैच के आईआरएस अधिकारी एसके मिश्रा को 18 नवंबर, 2023 तक पद पर बने रहना था। संजय मिश्रा को 19 नवंबर, 2018 को दो साल के लिए ईडी निदेशक नियुक्त किया गया था। मगर उनका कार्यकाल इसके बाद बढ़ाया जाता रहा है।

ईडी के डायरेक्टर संजय मिश्रा के कार्यकाल को दिए गए तीसरे विस्तार को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मई में कहा था कि वह अपने 2021 के फैसले पर फिर से निगाह डाल सकता है कि एक रिटायर ऑफिसर का कार्यकाल केवल असाधारण परिस्थितियों में ही बढ़ाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 12 दिसंबर को मिश्रा को दिए गए तीसरे विस्तार को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और अन्य से जवाब मांगा था।

हालांकि, 13 नवंबर, 2020 को केंद्र सरकार ने एक कार्यालय आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि राष्ट्रपति ने 2018 के आदेश को इस आशय से संशोधित किया था कि ‘दो साल’ की अवधि को ‘तीन साल’ की अवधि में बदल दिया गया था। इसे एनजीओ कॉमन कॉज ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2021 के फैसले में संशोधन को मंजूरी दे दी, लेकिन मिश्रा को और विस्तार देने के खिलाफ फैसला सुनाया।2021 में कोर्ट के फैसले के बाद, केंद्र सरकार केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) अधिनियम में संशोधन करते हुए एक अध्यादेश लेकर आई, जिससे खुद को ईडी निदेशक के कार्यकाल को पांच साल तक बढ़ाने की शक्ति मिल गई।

संसद ने बाद में इस संबंध में एक कानून पारित किया जिसमें ईडी निदेशक के कार्यकाल को एक बार में एक वर्ष के लिए बढ़ाने की अनुमति दी गई, जो अधिकतम 5 वर्षों के अधीन होगा।

मार्च में पहले की सुनवाई में, पीठ ने स्पष्ट कर दिया था कि उसे याचिकाकर्ताओं की राजनीतिक संबद्धता से कोई सरोकार नहीं है।ऐसा तब हुआ जब केंद्र सरकार ने पहले दलील दी थी कि याचिकाकर्ताओं, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस पार्टियों के नेताओं ने उन राजनीतिक नेताओं को बचाने के लिए अदालत का रुख किया है जो मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों का सामना कर रहे हैं।

मामले में एमिकस क्यूरी (और अब शीर्ष अदालत में पदोन्नत) वरिष्ठ अधिवक्ता केवी विश्वनाथन ने फरवरी में कहा था कि मिश्रा के कार्यकाल का विस्तार अवैध था।

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने आठ मई को प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक के कार्यकाल के विस्तार को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस बीआर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था।

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