November 22, 2024

नई दिल्ली। उत्तराखंड में बिगड़ते सांप्रदायिक हालात को देखते हुए सिविल सेवा के रिटायर्ड अधिकारियों ने सूबे की चीफ सेक्रेटरी राधा रतूड़ी को पत्र लिखा है। 83 अधिकारियों के हस्ताक्षर से लिखे गए इस पत्र में सूबे की मौजूदा हालत पर गहरी चिंता जाहिर की गयी है। इसके साथ ही हल्द्वानी और काशीपुर में प्रशासन के पक्षपातपूर्ण रवैये पर भी सवाल उठाया गया है। अफसरों ने कहा कि सभी के लिए कानून न केवल समान रूप से लागू किया जाना चाहिए बल्कि लोगों को ऐसा प्रतीत भी होना चाहिए कि यह समाज के सभी हिस्सों और व्यक्तियों पर समान रूप से लागू हो रहा है। इसके साथ ही उन्होंने कई मांगें की हैं।

अफसरों ने पत्र के शुरुआत में ही कहा है कि हम आपका ध्यान उत्तराखंड के बिगड़ते हालात की तरफ दिलाना चाहते हैं और मामले को और बिगड़ने से रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग करते हैं। और उसमें भी खास कर अफसरों ने हल्द्वानी का जिक्र किया है और उस शहर के नागरिकों को तत्काल सहायता मुहैया कराने की मांग की है। अफसरों ने कहा है कि सरकार तत्काल ऐसा कदम उठाए जिससे सूबे के नागरिक सुरक्षित महसूस कर सकें। और कानून को लागू करते समय प्रशासन से निरपेक्ष रहने की अपेक्षा की जाती है।

अधिकारियों ने 8 फरवरी, 2023 को हुई हिंसा की निंदा की है। उन्होंने कहा कि इसकी बगैर किसी पक्षपात के जांच की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने अपने परिजनों को खोया है उनके प्रति वो गहरी सहानुभूति प्रकट कर रहे हैं। प्रशासन की कार्यवाही पर गंभीर सवाल उठा है।

उन्होंने कहा कि हल्द्वानी का बनभूलपुरा आठ दिनों तक कड़े कर्फ्यू में था और वहां 16 फरवरी तक इंटरनेट सेवाएं बंद थीं। हालांकि बताया जा रहा है कि दिन के समय कर्फ्यू उठा लिया गया है। हजारों परिवार अपने घरों तक सीमित हैं। और उनकी स्वास्थ्य सुविधा, नियमित काम, बच्चों के स्कूल या फिर बाजार तक पहुंच नहीं है। इसका बच्चों, बूढ़ों और महिलाओं पर भयंकर प्रभाव पड़ेगा। और खासकर वह जिनकी तबियत अच्छी नहीं है। उन्होंने कहा कि कानून के तहत व्यवस्था को बनाए रखने और लोगों के जीवन को खतरे से बचाने के लिए कर्फ्यू लगाया जाता है। जब प्रशासन ने दावा किया था कि उसने 8 फरवरी को ही हालात पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है और उसके बाद किसी तरह की हिंसा और खतरे की आशंका नहीं थी तब इस कर्फ्यू के बने रहने का कोई औचित्य नहीं था।

अफसरों ने कहा कि इस बात की पुख्ता रिपोर्ट हैं कि महिलाओं और बच्चों के साथ ही पुलिस इलाके के निवासियों को पीट रही है और उनकी संपत्तियों को नष्ट कर रही है। इसके साथ ही परिजनों को बताए बगैर लोगों को हिरासत में लिया जा रहा है। उन्हें कहां ले जाया जा रहा है या फिर किस मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाएगा उसकी किसी को जानकारी नहीं दी जा रही है। इस तरह की भी रिपोर्ट हैं कि तकरीबन 300 परिवार इलाके को छोड़कर चले गए हैं। इन आरोपों की तत्काल जांच की जरूरत है। यह भी सूचना आयी है कि सहायता पहुंचाने की जगह प्रशासन इलाके में भोजन बेच रहा है। जबकि इलाके के ज्यादातर लोग गरीब या फिर दैनिक मजदूर हैं।

इसके साथ ही अफसरों ने अपने लिखित पत्र में 8 फरवरी की घटना के बाद राज्य के अलग-अलग हिस्सों में बढ़ती नफरती हिंसा पर गहरी चिंता जाहिर की है। स्थानीय लोगों ने बताया है कि हल्द्वानी के दूसरे हिस्सों मसलन फतेहपुर और कमलौगंज में मुस्लिम दुकानदारों को अपनी दुकानें खोलने से जबरन रोक दिया गया। 11 फरवरी को धारचूला और पिथौरागढ़ में एक रैली निकाली गयी जिसमें शहर से ‘बाहरी लोगों’ को बाहर निकालने की मांग की गयी। उन्होंने कहा कि इस बात को चिन्हित किया जाना चाहिए कि अब से पहले मई-जून 2023 में भी उत्तर काशी में इसी तरह से रैली निकाली गयी थी जिसके बाद दर्जनों मुस्लिम परिवारों को शहर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था।

इसके साथ ही इन अफसरों ने काशीपुर में चलाए गए बुल्डोजर पर भी अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है। उन्होंने कहा कि यौन उत्पीड़न केस के आरोपी के घर पर 15 फरवरी को बुलडोजर चलाया गया था। उन्होंने कहा कि अखबारों से यह बात स्पष्ट तौर पर पता चली है कि कानून का उल्लंघन करते हुए घर के मालिक को बगैर कोई नोटिस दिए इस घटना को अंजाम दिया गया है। इसके साथ ही यह भी संज्ञान में आया है कि सूबे में इस तरह की यौन उत्पीड़न की दूसरी भी घटनाएं हुई हैं। लेकिन किसी में भी इस तरह की कोई कार्रवाई नहीं की गयी है। यह बात इस चिंता को और बढ़ा देती है कि यह अवैध कार्रवाई केवल इसलिए की गयी क्योंकि आरोपी शख्स अल्पसंख्यक समुदाय से था।

इस लिहाज से अफसरों ने अपने 12 जून, 2023 और फिर 18 जुलाई, 2023 को लिखे गए पत्र की तरफ याद दिलाया जिसमें उन्होंने कहा था कि अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाते हुए राज्य में हिंसक और आपराधिक अभियान चलाया जा रहा है। नतीजतन पुरोला, बाडकोट और हल्द्वानी में हिंसक घटनाएं हुईं जिसमें दुकानों की तोड़फोड़ और ध्वस्तीकरण शामिल था। इसके साथ ही इस बात को भी चिन्हित किया गया था कि इस तरह का आतंक फैलाया गया जिससे इलाके को छोड़कर भागे परिवार नहीं लौट सकें और वही हुआ भी

सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि इन घटनाओं में कोई कार्रवाई नहीं की गयी। ऐसे शख्स जो दर्जनों नफरती भाषण देने की घटनाओं में शामिल हैं उन पर मुकदमा तक नहीं चलाया गया। और इन गंभीर अपराधों के लिए अभी तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया। अफसरों ने कहा कि सभी के लिए कानून न केवल समान रूप से लागू किया जाना चाहिए बल्कि लोगों को ऐसा प्रतीत भी होना चाहिए कि समाज के सभी हिस्सों और व्यक्तियों पर वह समान रूप से लागू हो रहा है।

इसके साथ ही अफसरों ने अंत में हल्द्वानी में प्रशासन द्वारा अपनायी गई पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि इस बात को लेकर कोई विवाद नहीं है कि खाली करने की नोटिस 30 जनवरी को दी गयी। और उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परिसर कानून, 1972 के मुताबिक 10 दिन की नोटिस के बाद स्थान को खाली करने के लिए 30 दिन का और समय दिया जाना चाहिए। फिर भी नोटिस को अभी एक हफ्ते भी नहीं हुए थे कि प्रशासन ने ढांचे को अपने कब्जे में ले लिया और 4 फरवरी को उसे सील कर दिया।

ऐसी रिपोर्ट है कि सिटी मजिस्ट्रेट ने ह्वाट्सएप ग्रुप में एक पोस्ट के माध्यम से मीडिया को सूचना दी कि हाईकोर्ट में फैसले के पेंडिंग होने की वजह से ध्वस्तीकरण को रोक दिया गया है। यह भी रिपोर्ट किया गया कि खासकर स्थानीय खुफिया इकाई ने भी बहुत सारे मौकों पर इस बात की चेतावनी दी थी कि किसी भी तरह से खाली कराने का आपरेशन कानून और व्यवस्था के लिए समस्या पैदा कर सकता है। और अगर ऐसा किया भी जाता है तो धार्मिक प्रतीकों का सम्मान किया जाना चाहिए और पूरी तैयारी के साथ आपरेशन को सुबह अंजाम दिया जाना चाहिए।

इन सारी चीजों के बाद भी 8 फरवरी को दोपहर बगैर किसी तैयारी के ढांचों को ध्वस्त कर दिया गया। और फिर उसके बाद हिंसक घटनाएं हुईं। यह सब कुछ प्रशासन की जल्दबाजी और उसके पक्षपाती रवैये को दिखाता है। जिसने स्थानीय आबादी और पुलिस तथा दूसरी प्रशासनिक इकाइयों को जोखिम में डाल दिया।

अंत में नौकरशाहों ने कहा कि जैसा कि आप जानती हैं हमारा समूह पूर्व सिविल अधिकारियों को लेकर बना है जिसने जीवन भर अपने पूरे कैरियर में संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के शपथ को निभाया है। उन्होंने कहा कि इन मूल्यों के राजनीति और प्रशासन में क्षरण से हम चेत गए और सार्वजनिक तौर पर अपनी चिंता को दर्ज करना और बोलना जरूरी महसूस किए। हालांकि हमारी चिंता प्राथमिक तौर पर राजनीतिक वर्ग को लक्षित है। लेकिन ज्यादातर देखा गया है कि अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को दरकिनार करने में प्रशासन बराबर का साझीदार रहता है।

और उससे भी ज्यादा बुरी बात यह है कि कानून के बेजा इस्तेमाल में सहयोग करने के साथ ही पक्षपाती राजनीतिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रशासनिक मशीनरी का बेजा इस्तेमाल करने से भी वह बाज नहीं आता है। जो पूरी तरह से अल्पसंख्यक समुदाय को नीचा दिखाने और उनका मनोबल तोड़ने की दिशा में लक्षित होता है। यह उस उत्तराखंड में होगा जिसमें कहीं थोड़ा सा भी सांप्रदायिक तनाव या फिर आपसी मतभेद नहीं रहा है। और जहां प्रशासन को साफ और गैरपक्षपाती तथा अल्पसंख्यकों की चिंताओं के प्रति संवेदनशील अपने उल्लेखनीय रिकार्ड के लिए जाना जाता है।

इसने भीषण चिंता पैदा कर दी है। पत्र में आगे कहा गया है कि हम आशा करते हैं कि यह रिपोर्ट सही नहीं हो कि यहां तक कि उच्च स्तरीय प्रशासन भी सांप्रदायिक स्थितियों को बिगड़ने देने में सहयोगी भूमिका में रहा। अंत में चीफ सेक्रेटरी को संबोधित करते हुए कहा गया है कि प्रशासनिक हेड होने के नाते साफ और न्याय के साथ ही कानून के शासन के प्रति लोगों के भरोसे को फिर से बहाल करने के लिए आप तत्काल कार्रवाई करेंगी।

इसके साथ ही जो मांगें की गयी हैं उनमें इलाके से तत्काल कर्फ्यू को हटाने, प्रभावित परिवारों को सहायता पहुंचाने और उसमें भी खासकर बच्चों, दैनिक मजदूरों और बीमार लोगों की जरूरतों को तत्काल पूरा करने की मांग शामिल है।

मारे गए लोगों के परिजनों और घायलों को तत्काल मुआवजा मुहैया कराने की मांग की गयी है। इसमें सरकारी स्टाफ और नागरिक दोनों के लिए यह मांग की गयी है।

पूरे मामले की जांच के लिए न्यायिक कमेटी गठित करने की मांग की गयी है जो पारदर्शी तरीके से पूरी जांच को अंजाम दे।

नफरती भाषण और समूह हिंसा को लेकर सु्प्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश को  उत्तराखंड में तत्काल लागू करने की मांग की गयी है। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि इस बात को सुनिश्चित करने के लिए सरकार को तत्काल ऐसा कदम उठाना चाहिए जिससे उसकी सभी कार्रवाइयां धार्मिक समुदाय से इतर राज्य के सभी नागरिकों को सुरक्षा का संदेश दे सकें।

संवैधानिक आचार समूह के नाम से गठित इस समूह में हस्ताक्षर करने वाले प्रमुख लोगों में रिटायर्ड आईएएस अनिता अग्निहोत्री, जी बालाचंद्रन, वापाला बालाचंद्रन, चंद्रशेखऱ बालकृष्णन, राणा बनर्जी, शरद बेहर, नूतन गुहा विश्वास समेत 83 नौकरशाह शामिल हैं।

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