नई दिल्ली। किसानों ने केंद्र सरकार द्वारा दिए गए पांच फसलों पर एमएसपी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। उन्होंने कहा है कि इसमें ऐसा कुछ नहीं है जिसको माना जा सके। शंभू बॉर्डर पर इसकी घोषणा प्रेस कांफ्रेंस कर के किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल और सरवन सिंह पंधेर ने संयुक्त रूप से की। इसके साथ ही उन्होंने बुधवार 21 फरवरी को दिल्ली कूच करने का ऐलान कर दिया।
उन्होंने कहा कि सरकार ने जो प्रस्ताव दिया है उसमें ऐसा कुछ नहीं है जिसे स्वीकार किया जा सके। उन्होंने कहा कि सरकार के मंत्री बता रहे थे कि अगर यह प्रस्ताव स्वीकार होता है तो सरकार का डेढ़ लाख करोड़ रुपये अलग से खर्च होगा। जबकि सच्चाई यह है कि अगर सभी फसलों पर एमएसपी दी जाती है तो केवल एक लाख पचहत्तर हजार करोड़ रुपये लगेंगे। ऐसे में अगर सरकार इतना पैसा लगा भी रही है तो वह केवल दो-तीन फसलों की व्यवस्था बनाए और बाकी किसानों को ऐसे छोड़ दिया जाए यह किसी भी रूप में उचित नहीं लगा।
उन्होंने कहा कि देश की सरकार बाहर से एक लाख पचहत्तर हजार करोड़ रुपये का पाम आयल यानि खाने का तेल मंगवाती है और यह सभी के लिए बीमारी का कारण भी बन रहा है। फिर भी उसे मंगाया जा रहा है। अगर यही एक लाख पचहत्तर हजार करोड़ रुपये तेल की फसलों को उगाने के लिए एमएसपी के तौर पर दिया जाए तो यह पैसा बच सकता है। इसलिए यह कहना कि सरकार के ऊपर बोझ बढ़ रहा है बिल्कुल गलत बात है।
सरकार का कहना है कि वह उन किसानों को एमएसपी देंगे जो विविधीकरण के जरिये पुरानी फसलों को छोड़ेंगे। यानि इसका मतलब है कि वह उन्हीं को देंगे जिन्होंने धान को छोड़कर मूंग को लगाया होगा।
यानि जिन्होंने धान को छोड़कर मूंग नहीं लगाया और अपने आप मूंग की फसल बोया उसको एमएसपी नहीं मिलेगी। लिहाजा सभी किसान नेता इस नतीजे पर पहुंचे कि इससे कोई लाभ नहीं होने वाला है। किसानों की मांग है कि देश की 23 फसलों पर सरकार एमएसपी दे। उन्होंने कहा कि एमएसपी यानि न्यूनमत समर्थन मूल्य यानि आपको जिंदा रखने के लिए जो दाम जरूरी है। वह सहयोग दिया जा रहा है। न कि कोई अलग से लाभ। लेकिन सरकार उतना भी देने के लिए तैयार नहीं है। और उसकी कोई गारंटी भी नहीं देना चाहती है।
उन्होंने कहा कि दोनों फोरम की सोमवार को बैठक हुई और उन्होंने संयुक्त रूप से फैसला लिया कि यह किसानों के हित में नहीं है। लिहाजा उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
किसान 23 फसलों के लिए एमएसपी की मांग कर रहे हैं। जिसे सरकार सालाना तौर पर फिक्स करती है। और यह रेट वह एमएस स्वामीनाथन के द्वारा बताए गए फार्मूले के तहत चाहते हैं। वो सरकार से सभी फसलों को उसी रेट पर खरीदने की मांग नहीं कर रहे हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि यह व्यवहारिक नहीं है। वो मौजूदा भंडारण को जारी रखना चाहते हैं। लेकिन यह एमएसपी के कानून के तहत किया जाए तो एक बेंचमार्क स्थापित हो जाएगा। जिससे किसान बाजार के हिसाब से कम मूल्य पर बेचने के लिए बाध्य न हों।
मुख्य एसकेएम ग्रुप पहले ही पांच फसल-पांच साल की इस योजना को खारिज कर चुका है। उसका कहना है कि यह एमसपी की मांग को दरकिनार करने की साजिश का हिस्सा है।
आपको बता दें कि यह समूह मौजूदा आंदोलन में शरीक नहीं है। इस आंदोलन को दल्लेवाल और पंढेर लीड कर रहे हैं। जो संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनीतिक) और किसान-मजदूर मोर्चा के बैनर के तहत गोलबंद हैं। दूसरे किसान संगठनों ने कहा है कि अगर यही प्रस्ताव था तो इसे केवल पांच फसलों तक सीमित नहीं रहना चाहिए था। किसान नेता चढ़ूनी ने कहा कि प्रस्ताव तेल के बीजों और दूसरे अनाजों तक विस्तारित होना चाहिए था।