नई दिल्ली। महिला आरक्षण से जुड़े “नारी शक्ति वंदन अधिनियम विधेयक 2023” पर संसद में बहस हो रही है। पक्ष-विपक्ष के सांसद इस पर अपनी राय रख रहे हैं। विपक्षी सांसद इसकी कमियों को भी रेखांकित कर रहे हैं। संसद के दोनों सदनों में महिला आरक्षण विधेयक के पारित होने पर कोई संदेह नहीं है। सत्तारूढ़ भाजपा और एनडीए में शामिल दल, कांग्रेस और अन्य कई क्षेत्रीय पार्टियां इसके समर्थन में हैं। कांग्रेस समेत कुछ दल महिला आरक्षण के अंदर पिछड़े समुदाय की महिलाओं का कोटा निर्धारित करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन महिला आरक्षण विधेयक के पारित होने पर नहीं, इसके लागू होने पर सवाल उठ रहे हैं।
महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है इस विधेयक को लेकर सरकार की नीयत में खोट उतना ही स्पष्ट होता जा रह है। पीएम मोदी ने इसे राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक समझ कर विशेष सत्र में पेश करने की चाल चली। लेकिन विधेयक के पारित होने की दशा में इसे तत्काल लागू नहीं किया जा सकता है।
विधेयक में ही सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि पारित होने के बाद यह पहले दशकीय जनगणना और लोकसभा-विधानसभा की सीटों के परिसीमन के बाद लागू किया जायेगा। यानि मोदी सरकार ने सीधे-सीधे इसे भविष्य पर छोड़ दिया है। महिलाओं को इस कानून का लाभ तुरंत नहीं मिलने जा रहा है। बल्कि उन्हें अभी भी दशकों इंतजार करना पड़ सकता है।
महिला आरक्षण कब लागू होगा?
महिला आरक्षण विधेयक पर सदन में चर्चा के दौरान निशिकांत दूबे ने वो कह ही दिया, जिसकी आशंका कल से दिख रही थी। उन्होंने महिला आरक्षण को संविधान की धारा 81 (3) और धारा 82 से जोड़ दिया है। इसके अनुसार परिसीमन 2031 के जनगणना के बाद ही होगा। 2031 की जनगणना दो साल में पूरी होगी, उसके बाद परिसीमन होगा, तब तक 2034 के चुनाव भी पूरे हो जाएंगे। यानि महिला आरक्षण 2039 के चुनाव तक खिसकेगा।
महिला आरक्षण कभी लागू नहीं होगा
कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम का कहना है, “सैद्धांतिक रूप से, हम इस विधेयक का स्वागत करते हैं। लेकिन अधिक से अधिक, यह केवल एक प्रतीकात्मक विधेयक है…इस विधेयक को लागू करने के लिए दो चीजें करने की जरूरत है। एक है जनगणना, जो एक लंबी प्रक्रिया है… जनगणना के बाद, परिसीमन होगा। यह बहुत समस्याग्रस्त होगा क्योंकि यदि जनसंख्या के आधार पर सीटें आवंटित की जाएंगी, तो दक्षिणी प्रतिनिधित्व और कम हो जाएगा। दक्षिणी राज्यों को दंडित किए बिना परिसीमन और…जनगणना और सभी को स्वीकार्य उचित परिसीमन के बिना, यह विधेयक कभी लागू नहीं किया जाएगा…”
भाजपा देश की महिलाओं को दे रही है झांसा
कांग्रेस नेता गुरदीप सिंह सप्पल कहते हैं कि भाजपा का कहना बिल्कुल ग़लत और भ्रामक है कि अगर परिसीमन पहले किया गया तो सुप्रीम कोर्ट उसे ख़ारिज कर देगा। संविधान में जो 2026 के बाद की जनगणना तक परिसीमन पर रोक है, वो केवल जनसंख्या आधारित परिसीमन पर है, अन्य पर नहीं।
ये रोक 84वें संविधान संशोधन के माध्यम से 2001 में लगी थी। लेकिन उसके बाद 2002 में परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) बना था, जिसने दिसंबर 2007 में अपनी रिपोर्ट दी थी। ये रिपोर्ट 2008 में लागू हो गई थी।
महिला आरक्षण से जुड़ा परिसीमन जनसंख्या आधारित नहीं है। इस पर कोई रोक नहीं है। इसलिए भाजपा देश की महिलाओं को झांसा देना बंद करे, 2024 के लोकसभा चुनाव में महिला आरक्षण लागू करे।
मंगलवार को महिला आरक्षण विधेयक को लोकसभा में पेश करने के बाद इसके लागू होने पर बहस छिड़ गई। कहा जा रहा है कि यह 2027 के पहले लागू नहीं किया जा सकता है। क्योंकि 2024 में लोकसभा के चुनाव होंगे। फिर नई सरकार यदि तुरंत जनगणना कराने का आदेश देती है तो उसे संपन्न होने में एक वर्ष लग जायेंगे। लोकसभा-विधानसभा का परिसीमन होने में कम से कम साल भर लगेंगे। इस तरह महिला आरक्षण तत्काल लागू होने नहीं जा रहा है।
कांग्रेस ने मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि जब इस विधेयक के पारित होने के बाद भी महिलाओं को लंबे समय तक इंतजार करना पड़ेगा तो इसे लाने का औचित्य क्या है। दरअसल मोदी सरकार इस विधेयक को लाकर विपक्षी एकता में विखंडन करके अपने को महिलाओं का शुभचिंतक साबित करना चाह रही है।
मंगलवार को संसद में इस विधेयक को पेश करने के बाद ही पारित होने की दशा में इसके क्रियान्वयन पर सवाल उठने लगे। महिला आरक्षण कानून बन जाने की दशा में इसकी राह में जनगणना और परिसीमन रोड़ा बना हुआ है। क्योंकि पहले जनगणना होगी फिर जनसंख्या के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार सीटों का परिसीमन होगा।
भारत समेत दुनिया के हर देश में प्रति दस वर्ष पर जनगणना कराई जाती है। हाल में 2011 में देश में जनगणना हुआ था। इसके मुताबिक 2021 में जनगणना होना चाहिए था। लेकिन मोदी सरकार ने कोविड-19 का बहाना लेकर जनगणना नहीं कराया। जबकि दुनिया के अधिकांश देशों ने कोरोना के बावजूद जनगणना को कराया। लेकिन मोदी सरकार ने दो साल बाद भी जनगणना कराने के लिए कोई पहल नहीं की है। आगे भी जनगणना कब होगा, यह कहा नहीं जा सकता।
(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)