November 24, 2024

मनीष आज़ाद

लेखक ‘ज्ञान प्रकाश’ ने अपनी किताब ‘इमरजेंसी क्रॉनिकल’ में  ‘न्यूजक्लिक’ के संस्थापक पत्रकार-लेखक ‘प्रबीर पुरकायस्थ’ की 1975 की ‘इमरजेंसी’ में कुख्यात ‘मीसा’ के तहत गिरफ्तारी को विस्तार से बताया है। तब वे जेएनयू के छात्र थे और इमरजेंसी के विरोध में कक्षा का बहिष्कार कर रहे थे।

25 सितंबर, 1975 को जेएनयू कैंपस से उन्हें जबरदस्ती ‘उठा’ लिया गया और जेल में डाल दिया गया।

यह एक मानीखेज इत्तफाक है कि 48 सालों बाद उन्हें कल फिर कुख्यात UAPA के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। इस बार भी उनका ‘अपराध’ वही है- ‘अघोषित आपातकाल’ का विरोध।

हालांकि सरकार का ‘न्यूज़क्लिक’ पर औपचारिक आरोप यह है कि उसने एक अमेरिकी नागरिक ‘नेविल राय सिंघम’ (Neville Roy Singham) से करीब 77 करोड़ रुपए लिए हैं, जिनका संबंध चीनी सरकार से है। और इस पैसे से न्यूज़क्लिक भारत में चीन की नीतियों का प्रचार कर रहा है।

मजेदार बात यह है कि नेविल राय सिंघम घोषित तौर पर चीन समर्थक हैं। उनका आधिकारिक बयान ही है कि “चीन पश्चिम को यह सिखा रहा है कि मुक्त बाजार समायोजन और दीर्घ-कालीन योजना की संयुक्त व्यवस्था से ही दुनिया की तरक्की हो सकती है।”

इसके अलावा उनका ज्यादातर समय चीन में ही गुजरता है। चीन के साथ चल रहे अमेरिका के वर्तमान ‘शीत युद्ध’ के बावजूद अमेरिका में नेविल राय सिंघम पर कोई केस दर्ज नहीं है।

वहीं दूसरी ओर अडानी की कंपनियों में करीब 2 लाख करोड़ रुपए देश के बाहर से आए हैं, वह धन किसका है, इस बारे में सरकार और सेबी मौन हैं। जहां तक चीनी-कनेक्शन का सवाल है तो हिंडेनबर्ग रिपोर्ट में उजागर ‘चांग चुंग-लिंग’ कौन हैं? अडानी के साथ उनका क्या संबंध है? बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2005 में चांग चुंग-लिंग ने एक डिक्लेरेशन में अपना सिंगापुर का पता वही दिया था जो गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी का पता है। इसकी जांच कौन करेगा?

आइए, एक बार फिर ‘न्यूजक्लिक’ की ओर लौटते हैं। चीन के समर्थन में न्यूजक्लिक के प्रचार का जो ठोस उदाहरण दिया जा रहा है, वह यह है कि कोविड-19 के समय और चीन-भारत सीमा विवाद के समय न्यूज़क्लिक ने चीनी नजरिए को प्रमुखता दी है। हालांकि यह बात भी झूठ है, लेकिन कुछ देर के लिए इसे सच मानते हुए कुछ मिलते-जुलते उदाहरणों पर गौर करते हैं। 1982 में अर्जेंटीना और ब्रिटेन के बीच हुए ‘फाकलैंड’ युद्ध में बीबीसी ने अर्जेंटीना के पक्ष को भी अपने न्यूज-कार्यक्रम में बराबर की जगह दी थी।

बीबीसी ने अपनी न्यूज़ रिपोर्टिंग में ‘हमारी सेना’ और ‘दुश्मन सेना’ कहने की बजाय हमेशा ‘ब्रिटिश फोर्सेज’ और ‘अर्जेंटीना फोर्सेज’ ही कहा। कट्टरपंथी मार्गरेट थैचर ने ज़रूर इसके लिए बीबीसी की आलोचना की, लेकिन इसके लिए बीबीसी पर न तो रेड हुई और न ही उन पर कोई मुकदमा दर्ज हुआ। बल्कि दुनिया में वस्तुनिष्ठ रिपोर्टिंग के लिए बीबीसी की साख बढ़ गई। (यह अलग बात है कि कई मामलों में विशेषकर ‘इराक युद्ध’ में उनकी साख बुरी तरह गिरी भी)

दूसरा उदाहरण अमेरिका से है। अमेरिकी पत्रकारों का एक अच्छा खासा हिस्सा हमेशा से अमेरिकी विदेश नीति की मुखर आलोचना करता रहा है और अमेरिका के ‘दुश्मन’ देश ‘क्यूबा’ की मुक्तकंठ से तारीफ करता रहा है। लेकिन इस कारण कभी भी किसी पत्रकार को गिरफ्तार नहीं किया गया। वियतनाम युद्ध के समय भी ‘पेंटागन पेपर’ छापने के लिए ‘ वाशिंगटन पोस्ट’ और ‘न्यूयार्क टाइम्स’ पर अमेरिकी सरकार की इच्छा के बावजूद कोई मुकदमा दर्ज नहीं हो पाया। वहां का कोर्ट इनके पक्ष में मजबूती से खड़ा हो गया। ऐसे ही अनेकों उदाहरण हैं।

आज जब एक तरफ चीन से हमारा व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है, चीनी इलेक्ट्रॉनिक सामानों से भारत के बाजार भरे पड़े हैं और हां, आयातित चीनी सामानों का बड़ा हिस्सा हमारे ‘देशभक्त’ पूंजीपति अडानी के पोर्ट पर उतर रहा है, चीनी कंपनी का ‘पीएम केयर फंड’ में निवेश की खबर आ चुकी है, तब न्यूज़क्लिक पर चीन समर्थक होने का आरोप हास्यास्पद नहीं तो और क्या है।

अगर किसी पत्रकार को यह लगता है कि कोविड-19 को चीन या क्यूबा ने भारत या अमेरिका के मुकाबले बेहतर तरीके से संभाला है तो यह अपराध या देशद्रोह कैसे हो गया। यह जेनेरिक ‘चीन का प्रचार’ कैसे हो गया।

अब तो यह स्थापित बात हो चुकी है कि चीन ने भारत के साथ पिछली झड़पों के बाद भारत के एक हिस्से पर कब्जा जमा लिया है। अगर ‘फोर्स’ पत्रिका के संपादक ‘परवीन सामी’ यह मुद्दा उठाते हैं तो यह देशद्रोह कैसे हो गया। यह देश की सुरक्षा से खिलवाड़ कैसे हो गया?

पत्रकार हमेशा एक ‘स्थाई विपक्ष’ होता है। यही उसकी देशभक्ति है और यही उसका धर्म है। और ठीक इसी कारण कोई भी तानाशाह ‘प्रबीर पुरकायस्थ’ जैसे स्वतंत्र पत्रकारों को बर्दाश्त नहीं कर सकता।

(मनीष आज़ाद लेखक और टिप्पणीकार हैं।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *