नई दिल्ली: बैंकों ने 2014-15 से शुरू होने वाले पिछले नौ वित्तीय वर्षों में 14.56 लाख करोड़ रुपये के डूबत ऋण (बैड लोन) बट्टे खाते में डाले हैं. इस संबंध में सरकार ने सोमवार (8 अगस्त) को संसद को सूचित किया.
पीटीआई के मुताबिक, कुल 14,56,226 करोड़ रुपये में से बड़े उद्योगों और सेवाओं के बट्टे खाते में डाले गए कर्ज 7,40,968 करोड़ रुपये थे. वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में कहा कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों ने अप्रैल 2014 से मार्च 2023 तक कॉरपोरेट ऋणों सहित बट्टे खाते में डाले गए ऋणों में कुल 2,04,668 करोड़ रुपये की वसूली की है.
मंत्री के एक अन्य जवाब के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) में वित्तीय वर्ष के दौरान बट्टे खाते में डाले गए ऋणों की वसूली का शुद्ध हिस्सा वित्त वर्ष 2018 में 1.18 लाख करोड़ रुपये था, जो वित्त वर्ष 2022 में घटकर 0.91 लाख करोड़ रुपये हो गया और वित्त वर्ष 2023 में 0.84 लाख करोड़ (आरबीआई के अनंतिम डेटा के अनुसार) हो गया.
उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2013 में निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा बट्टे खाते में डाले गए ऋण 73,803 करोड़ रुपये (आरबीआई अनंतिम डेटा) के हैं. भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, मार्च 2023 को समाप्त वित्त वर्ष के दौरान बैंकों ने 2.09 लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की गैर-निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) या डूबत ऋण को बट्टे खाते में डाल दिया.
इंडियन एक्सप्रेस ने केंद्रीय बैंक से प्राप्त एक आरटीआई के जवाब के हवाले से बताया है कि पिछले पांच वर्षों में, बैंकिंग क्षेत्र द्वारा कुल ऋण माफ़ी 10.57 लाख करोड़ रुपये रही. किसी ऋण को एनपीए के रूप में वर्गीकृत किया जाता है जब मूल राशि या ब्याज का पुनर्भुगतान 90 दिनों की अवधि तक बकाया रहता है.