युवती से लेकर मुख्य गवाह तक सब अपने बयानों से अदालत के सामने मुकरे
-इन्द्रेश मैखुरी
बीते बरस मई के महीने से खबर आई कि उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के पुरोला में कोई “लव जेहाद” की घटना हो गयी है ! उस समय जो खबर आई उसमें बताया कि एक मुस्लिम युवक, एक नाबालिग हिंदू लड़की को भगा ले जाने की कोशिश कर रहा था. उसके साथ एक हिंदू युवक भी था.
देखते ही देखते मामला सुर्खी से सनसनी में तब्दील हो गया. स्वयंभू धर्मरक्षक पुरोला पहुँच गए और पुरोला को “विधर्मियों” से मुक्त कराने पर उतारू हो गए !
पुरोला में अल्पसंख्यकों की दुकानों पर निशान लगा दिये गए और मकान मालिकों पर दबाव बनाया गया कि वे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को किराये पर दी गयी दुकानें और मकान खाली करवा लें.
यहां तक कि पुरोला के व्यापार मंडल के व्हाट्स ऐप ग्रुप से भी अल्पसंख्यकों को हटा लिया गया. उस समय तकरीबन 35 अल्पसंख्यक परिवारों ने पुरोला छोड़ भी दिया था, जिसमें से छह परिवार पुरोला नहीं लौटे.
लेकिन अब जो खबरें सामने आ रही हैं, उनसे साफ हो रहा है कि पुरोला में लव जेहाद जैसा कोई मामला ही नहीं था. अंग्रेजी न्यूज़ पोर्टल- स्क्रॉल और अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबरें बता रही हैं कि अदालत ने लव जेहाद के मामले को फर्जी पाया है. उत्तरकाशी के जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत ने इस मामले के दोनों आरोपियों उवैद खान और जगदीश सैनी को बरी कर दिया है.
किसी हिंदी अखबार या न्यूज़ चैनल में इस मामले में कोई खबर कम से कम इस लेखक के देखने में तो नहीं आई.
अलबत्ता पत्रकार,एक्टिविस्ट त्रिलोचन भट्ट ने अपने यूट्यूब चैनल- बात बोलेगी- पर अदालती आदेश के संदर्भ में वीडियो जारी किया था. उनके वीडियो का लिंक :
https://www.youtube.com/watch?v=BiybUKv4GWs
स्क्रॉल की खबर इस लिंक पर जा कर पढ़ी जा सकती है-
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर का लिंक :
खबर बताती है कि तथाकथित लव जेहाद के मामले में अगस्त 2023 से लेकर मई 2024 तक उत्तरकाशी के जिला एवं सत्र न्यायाधीश गुरबख्श सिंह की अदालत में मुकदमा चला. सुनवाई के दौरान इस प्रकरण में जिस लड़की को लव जेहाद की शिकार के तौर पर पेश किया गया, उसने अदालत में कहा कि उसने आरोपियों से टेलर की दुकान के बारे में पूछा और आरोपी उसे टेलर की दुकान तक लेकर गए. उसने अदालत में यह भी कहा कि आरोपियों ने उसका पीछा नहीं किया. सिविल जज के सामने 164 सीआरपीसी के तहत दिये गए बयान, जो लड़की ने आरोपियों के खिलाफ दिये थे, उसके संदर्भ में जिला एवं सत्र न्यायाधीश के सामने लड़की ने कहा कि उसे पुलिस ने जैसा कहा था, उसने वैसा ही बोला. उसने यह भी कहा कि उसने बयान पढ़ा नहीं बल्कि उस पर केवल हस्ताक्षर किए.
हालांकि खबर में पुरोला के तत्कालीन कोतवाल का पक्ष भी है, जिसमें वो लड़के के बयान को गलत ठहराते हैं और लड़की की मानसिक दशा को भी खराब करार देते हैं.
उक्त प्रकरण में जो नाबालिग लड़की है, उसके माता-पिता नहीं हैं और वह अपने मामा-मामी के पास रहती है. लड़की के मामा की तरफ से ही इस मामले में एफ़आईआर दर्ज कारवाई गयी थी. एफ़आईआर में लड़की को धोखे से पेट्रोल पंप पर बुलाने, उवैद खान द्वारा अपना हिंदू नाम बताने, उसे शादी का लालच देने और उसे जबरन उठा ले जाने की कोशिश का आरोप लगाया गया है.
खबर के अनुसार लड़की के मामा ने अदालत में अपने बयान में कहा कि उनकी भांजी ने उनको कुछ भी नहीं बताया और उन्होंने एफ़आईआर में जो कुछ भी लिखवाया वो आशीष चुनार के कहने पर लिखवाया.
आशीष चुनार के बारे में खबर कहती है कि वे आरएसएस के उत्तरकाशी जिले के मीडिया प्रभारी हैं और 2017 से आरएसएस से जुड़े हैं. इस मामले में एफ़आईआर में लड़की को आरोपियों को छुड़ाने वाले के तौर पर आशीष चुनार का जिक्र है और आशीष चुनार ही इस मामले में प्रत्यक्षदर्शी गवाह थे.
लेकिन स्क्रॉल की खबर के अनुसार अदालत में आशीष चुनार ने कहा कि उसने दो लोगों को नाबालिग लड़की से बात करते देखा था पर उवैद खान और जगदीश सैनी वो दो लोग नहीं थे ! स्क्रॉल ने लिखा है कि उनसे बात करते हुए आशीष चुनार ने कहा कि “उस दिन मैंने उसे(लड़की को) दूर से दो लोगों से बात करते हुए देखा. पर मुझे नहीं मालूम कि वो सैनी या वो दूसरा मुस्लिम लड़का थे या नहीं.”
जो व्यक्ति पुलिस को दी हुई एफ़आईआर में लड़की को तथाकथित लव जेहाद से बचाने के योद्धा के तौर पर प्रस्तुत किया गया और मामले का चश्मदीद गवाह भी था, उसने अदालत में दोनों आरोपियों को पहचानने से भी इंकार कर दिया, इससे ज्यादा फर्जीपना और क्या हो सकता ?
साफ है कि सारा मामले के पीछे उद्देश्य सिर्फ सांप्रदायिक उन्माद खड़ा करना था और उसका राजनीतिक लाभ उठाना था. इस तरह के मामलों के राजनीतिक लाभार्थी कौन हैं, यह तो किसी से छुपा नहीं है. वह इस मामले में पहले बचाव के योद्धा बताए जाने वाले और फिर अदालत में आरोपियों को पहचानने से इंकार करने वाले व्यक्ति के संगठन के नाम से भी समझा जा सकता है !
पुरोला में तथाकथित लव जेहाद की घटना के अदालत में फर्जी सिद्ध होने के फिर से यह सवाल उठता है कि उक्त घटना के बाद जिन्होंने पूरे प्रदेश को सांप्रदायिक उन्माद की आग में झोंकना चाहा, क्या उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं होनी चाहिए ? पुरोला से तो अल्पसंख्यकों के एक हिस्से को अपना कारोबार छोड़ के जाना पड़ा और पूरे प्रदेश में इसके बहाने अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की कोशिश की गयी. उत्तराखंड में सांप्रदायिक उन्माद को बढ़ाने के काम में लगे एक व्यक्ति ने तो बकायदा तत्कालीन पुलिस महानिदेशक को धमकी भरे अंदाज में कहा था कि पुलिस पुरोला में अल्पसंख्यकों की बंद दुकाने खुलवाने की कोशिश न करे. पुरोला की घटना से पहले और बाद में जो लगातार अल्पसंख्यकों के विरुद्ध नफरती भाषण देते रहते हैं, घृणा फैलाते रहते हैं, क्या उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही हुई ? ऐसी कोई कार्यवाही होने की जानकारी तो नहीं है.
दिसंबर 2021 में हरिद्वार में धर्म संसद के नाम पर हुए आयोजन में बेहद घृणा भरे भाषण दिये गए. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में तक अपमानजनक बातें कही गयी. उस मामले में उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड पुलिस को निर्देश दिये थे कि पुलिस नफरत भरे भाषणों के मामले में किसी औपचारिक शिकायत का इंतजार न करे बल्कि स्वतः संज्ञान लेकर एफ़आईआर दर्ज करे. पुरोला मामले में ऐसी किसी कार्यवाही की जानकारी नहीं है.
पुरोला की घटना के सामने आने के बाद कानून व्यवस्था कायम रखने पर ज़ोर देने के बजाय उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लव जेहाद, लैंड जेहाद जैसी असंवैधानिक शब्दावली का धड़ल्ले से प्रयोग करते रहे. जबकि केंद्र सरकार तो इस घटना से पहले ही कह चुकी थी कि लव जेहाद जैसी कोई बात नहीं है. 04 फरवरी 2020 में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी.किशन रेड्डी ने लोकसभा में लिखित जवाब दिया कि लव जेहाद कानूनी रूप से परिभाषित नहीं है. केंद्रीय एजेंसियों ने लव जेहाद का कोई मामला रिपोर्ट नहीं किया है. उत्तर प्रदेश के कानपुर में भी लव जेहाद के नाम पर इसी तरह वितंडा खड़ा किया गया. जब हल्ला ज्यादा बढ़ गया तो उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले में पुलिस का एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित कर दिया. अगस्त 2020 में कानपुर में एस आई टी ने लव जेहाद के कथित 14 मामलों की जांच की और इस नतीजे पर पहुंची की कोई मामला लव जेहाद, संगठित अपराध और विदेशी फंडिंग का नहीं था. लेकिन इन सब तथ्यों के बावजूद भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लव जेहाद-लैंड जेहाद जैसे शब्दों का प्रयोग करते रहते हैं. जाहिर सी बात है कि इसके पीछे मंशा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के अलावा तो और कुछ है नहीं ! लेकिन पुरोला के मामले के अदालत में फर्जी सिद्ध होने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को क्या उत्तराखंड की जनता से माफी नहीं मांगनी चाहिए कि उन्होंने भी बिना जाने-समझे पुरोला के मामले को लव जेहाद करार दिया था ?
पुनः स्क्रॉल में प्रकाशित अदालती आदेश की खबर पर लौटते हैं. पुरोला के उक्त मामले में जिला एवं सत्र न्यायाधीश, उत्तरकाशी ने अपने आदेश में लिखा अदालत में प्रस्तुत मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों से दोनों आरोपियों के खिलाफ आरोप सिद्ध नहीं होते हैं. अदालत ने यह भी लिखा कि लड़की को गलत मंशा से छूने का आरोप भी सिद्ध नहीं होता. अदालत ने अपहरण और यौन शोषण के आरोपों को भी गलत पाया.
यह तो ठीक है कि अदालत ने दोनों को तमाम आरोपों से बरी कर दिया. लेकिन इस एक साल के दौरान सिर्फ चंद लोगों के राजनीतिक स्वार्थों की खातिर जो यंत्रणा और अपमान इन्होंने और इनके परिजनों ने सहा, क्या उसकी भरपाई संभव है ? इनके अलावा पूरे अल्पसंख्यक समाज को ही जिस तरह से इस घटना में निशाना बनाया गया. ऐसे झूठे मामले गढ़ने वाले इस बेहिसाब और बेवजह की यंत्रणा पैदा करने के लिए, क्या कभी शर्मिंदा महसूस करेंगे ? वे तो नहीं करेंगे, लेकिन तमाम प्रगतिशील और न्याय पसंद लोगों को सचेत हो कर इस तरह की घृणित साजिशें रचने वालों को बेनकाब करते रहना होगा और नफरत फैलाने की हर कोशिश के खिलाफ डट कर खड़ा होना होगा.