दिलीप ख़ान-
बीते दिनों मीडिया में ख़बरें चलीं कि स्वीडन में पहला यूरोपियन सेक्स चैंपियनशिप होगा. इस ‘ख़बर’ को दुनिया में सबसे ज़्यादा हवा भारतीय मीडिया ने दी. टाइम्स ऑफ़ इंडिया से लेकर CNBC आवाज़ और हिंदुस्तान टाइम्स से लेकर इंडिया टुडे तक ने.
इस ‘ख़बर’ को पढ़कर पहली नज़र में किसी को नहीं लग सकता था कि यह फ़ेक हो सकती है. वजह? इसमें सूचनाओं का अंबार था. पढ़ने में यह कहीं से भी अटकलबाज़ी नहीं लग रही थी. इसमें बताया गया था कि कितने देशों के कितने भागीदार होंगे, किस तारीख़ से किस तारीख़ तक चैंपियनशिप चलेगी, रोज़ाना कितने मिनट का ‘खेल’ होगा, कौन-कौन सी कैटगरी में खिलाड़ी हिस्सा ले सकते हैं वगैरह.
साथ में फ़ेडरेशन की तैयारियों का भी ब्योरा था. इस चैंपियनशिप पर ख़र्च होने वाली रकम का भी ज़िक्र था. बाद में पता चला कि यह ख़बर फ़ेक है, हॉक्स है. दुनिया के कई मीडिया समूहों ने इसकी फ़ैक्ट चेकिंग की, लेकिन इस फ़ेक न्यूज़ को छापने वाले अख़बारों और वेबसाइटों ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया. अलबत्ता, फर्जी ख़बर छापने वाली वेबसाइटों ने भी बाद में रिजॉइंडर के तौर पर देखा-देखी ‘फ़ैक्ट चेक’ कर दिया.
अब, इनमें से कुछ वेबसाइटों पर दोनों ख़बरें मौजूद हैं. सूचना देने वाली भी और उस सूचना को फ़र्जी बताने वाली भी. सर्च करने पर पता चला कि स्वीडन में ड्रैगन ब्रैटिक नाम के एक व्यक्ति ने स्वीडिश स्पोर्ट्स कॉनफ़ेडरेशन में सदस्यता की अर्ज़ी दी. वह पहले से कई कई स्ट्रिपिंग क्लब चलाता है. उसकी इच्छा थी कि सेक्स को स्पोर्ट्स का दर्ज़ा मिले. कॉनफ़ेडरेशन ने उसकी अर्ज़ी को यह कहकर ख़ारिज कर दिया कि उसके पास करने को कई काम हैं.
उस आदमी की इच्छा पर भारतीय मीडिया ने डिटेलिंग जोड़ी और पूरी पकी-पकाई दिखने वाली ख़बर परोस दी. कामसूत्र की जानकारी रखने वाले प्रतिभागियों को अतिरिक्त अंक दिए जाने के हिंदुस्तानी एंगल के साथ यह ख़बर, हफ़्ते भर दर्जन भर अलग-अलग मीडिया समूहों में चलती रही. एक ने छापा, तो दूसरे ने छापा. देखा-देखी तीसरे-चौथे ने छापा. इस तरह, लाखों-करोड़ों लोग साल, दो साल बाद भी इसे ‘सच’ की तरह क़ोट कर सकते हैं.