शिरोमणि अकाली दल ने किया समान नागरिक संहिता का विरोध
इन सरगोशियों के बीच कि पंजाब में अकाली भाजपा गठबंधन एक बार फिर कायम हो सकता है; शिरोमणि अकाली दल ने यूसीसी का कड़ा तार्किक विरोध करते हुए अपना एतराज जताया है। भरोसेमंद सूत्रों से संकेत मिले हैं कि शिरोमणि अकाली दल अपने प्रधान सुखबीर सिंह बादल की अगुवाई में इसे लेकर आने वाले दिनों में बाकायदा सड़कों पर आकर आंदोलन भी कर सकता है। उधर, आम आदमी पार्टी ने समान नागरिक संहिता पर अपना समर्थन दिया है। आप पंजाब में भगवंत मान और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में सत्तारूढ़ है। विधानसभा चुनाव से पहले ‘आप’ की ओर से सार्वजनिक मंचों से कहा जाता था कि समान नागरिक संहिता का कतई समर्थन नहीं किया जाएगा बल्कि प्रबल विरोध किया जाएगा लेकिन अब पूरा परिदृश्य ही बदल गया है। आप की राजनीति के इस नए गणित को लोगबाग समझ नहीं पा रहे। जबकि हिंदुस्तान में औपचारिक तौर पर अल्पसंख्यक माने जाने वाले सिखों की सबसे बड़ी सियासी जमात शिरोमणि अकाली दल ने खुलकर अपना स्टैंड रखा है। जबरदस्त विरोध में!
सुखबीर बादल की सरपरस्ती वाले शिरोमणि अकाली दल ने दो-टूक कहा है कि देशभर में सांझा सिविल कोड लागू करना निहायत खतरनाक है। शिअद के मुख्य प्रवक्ता और पूर्व मंत्री डॉ दलजीत सिंह चीमा दरअसल सुखबीर बादल की ओर से अभिव्यक्ति देते हैं। चीमा ने कहा है कि समान नागरिक संहिता लागू करने से अल्पसंख्यकों व आदिवासियों पर निहायत प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
इस मुद्दे पर लॉ कमीशन के साथ-साथ संसद में भी आपत्तियां दर्ज कराई जाएंगीं। उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल और भगवंत सिंह मान ने पंजाब में बदलाव का वादा किया था, लेकिन अब वे ऐसे विवादास्पद मुद्दे का समर्थन कर रहे हैं जो समाज में कलह-नफरत का कारण बनेगा। शिरोमणि अकाली दल के एक अन्य वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा भी कहते हैं कि संविधान निर्माताओं ने यूसीसी को मौलिक अधिकारों का दर्जा नहीं दिया है। अल्पसंख्यक व आदिवासी समाज के अपने अलहदा कानून हैं, इसीलिए वे इससे सबसे ज्यादा कुप्रभावित होंगे। डॉ. दलजीत सिंह चीमा कहते हैं,”देश में सिविल कानून अलग-अलग धर्मों के विश्वास, धारणा, जाति और परंपराओं के अनुसार प्रभावित होते हैं और ये अलग-अलग धार्मिक समूहों में अलहदा होते हैं। इन अवधारणाओं की सामाजिक ढांचे के साथ अनेकता में एकता के विचार के मुताबिक संरिक्षत किया जाना चाहिए। आखिर इस बात का ध्यान क्यों नहीं रखा जा रहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने संयुक्त सिविल कोड को मौलिक अधिकार का दर्जा नहीं दिया था। इस पर बहस होनी चाहिए। इसे सांझी सूची में रखा गया है और यह सरकार के लिए निर्देशित सिद्धांतों का हिस्सा है। इसमें तमाम वर्गों और धर्मों की राय के बगैर तब्दीली सरासर गलत है। पर्सनल कानून में विसंगतियां पाईं जाती हैं तो उनमें सर्वसम्मति के साथ सुधार किया जा सकता है। लेकिन समूचे देश के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना गैरवाजिब है। यह एक पार्टी विशेष की तानाशाही है।”
शिरोमणि अकाली दल की पहली कतार के वरिष्ठ बुजुर्ग नेता और पूर्व सांसद बलविंदर सिंह भूंदड़ के मुताबिक, “21वें कानून कमीशन ने निष्कर्ष निकाला था कि समान नागरिकता कानून व्यवहारिक तौर पर सही नहीं है। कमीशन ने व्यापक लोक समूह से फीडबैक लेकर निष्कर्ष निकाला था। इस मामले में 22वां कमीशन गठित करके इस पर एकबारगी फिर नजरसानी करने की कतई कोई दरकार नहीं। जरूरत संवाद और विचार की है।”
एक अन्य अकाली नेता और सिख विद्वान कहते हैं कि इस बाबत देश के हर राज्य की विधानसभा में बहस अथवा विचार-विमर्श होना चाहिए था। ऐसा इसलिए नहीं हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तानाशाही नीति इसके लिए तैयार नहीं थी। मोदी सही-गलत नतीजों का आकलन बाद में करते हैं; पहले वह सब करते हैं जो उन्होंने ठान लिया होता है। बेशक वह देश और समाज के खिलाफ ही क्यों न जाए। समान नागरिकता कानून के नकारात्मक नतीजे भी यथाशीघ्र सामने आएंगे ही आएंगे। सामाजिक ताना-बाना और ज्यादा बिखर जाएगा। प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव और पंजाबी के प्रख्यात बुद्धिजीवी-चिंतक सुखदेव सिंह सिरसा भी ठीक ऐसा ही मानते हैं।
महासचिव सुखदेव सिंह सिरसा का कहना है कि यूसीसी के खिलाफ पंजाब के लेखक और बुद्धिजीवी आंदोलन करेंगे। सिरसा के अनुसार, “2024 तक केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पूरे देश को आग के हवाले करने की कवायद करेगी। लोगों को सजग रहना चाहिए। परिवारों तक को बांटने की साजिश की जा रही है। यानी जो भाजपा के साथ है उसे हर किस्म का फायदा दिया जा रहा है और जो विपक्ष अथवा कांग्रेस के साथ है, उसके खिलाफ हर संभव हथकंडा इस्तेमाल किया जा रहा है।” चीमा कहते हैं, “अरविंद केजरीवाल से झूठा व्यक्ति कोई नहीं। अब वह ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर सरकार के साथ जा खड़े हुए हैं जो सामाजिक ताने-बाने को तहस-नहस कर देगा। इस मसले पर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने फिलहाल तक अपनी प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी? गौरतलब है कि सूबे में सक्रिय वामपंथी दल भी समान नागरिक संहिता के खिलाफ आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं और कतिपय किसान तथा मजदूर जत्थेबंदियां भी। वरिष्ठ वामपंथी नेता मंगतराम पासला कहते हैं कि दरकार होगी तो दिल्ली जैसा मोर्चा लगाया जाएगा। प्रमुख पंजाबी अखबार भी समान नागरिक संहिता के खिलाफ संपादकीय टिप्पणियों कर रहे हैं। सो पंजाब में यूसीसी के विरोध में आवाज बल्कि आवाजें प्रबल होने लगी हैं। जिला मानसा में एक जुलाई से यूसीसी के विरोध में नुक्कड़ नाटक किए जाएंगे और उसके बाद नाटकों का यह काफिला पूरा पंजाब घूमेगा।
लोकधर्मी थिएटर को पंजाब में बकायदा हथियार माना जाता है। गौरतलब है कि पंजाब से निकली आवाज दूर तक जाती है। हाल का किसान आंदोलन नजीर है जिसने जिद्दी हुकूमत को झुकने पर मजबूर कर दिया था। ‘आप’ सत्ता में है; उसने सशर्त समान नागरिक संहिता का समर्थन किया है। पंजाब में अपनी जड़ें जमाने में तथा शिरोमणि अकाली दल के साथ फिर हाथ मिलाने की कोशिश में भाजपा रात-दिन एक किए हुए हैं। कांग्रेस पहले से ही यूसीसी की खिलाफत में है। शिरोमणि अकाली दल को आज भी हाशिए पर होने के बावजूद सिखों की सबसे बड़ी राजनीतिक जमात माना जाता है। यूसीसी के विरोध में उठना शिरोमणि अकाली दल को यकीनन बल देगा। अभी प्रधान सुखबीर बादल की प्रतिक्रिया आना शेष है। बताया जा रहा है कि इसे लेकर शिअद बड़ी रणनीति तैयार कर रहा है। दल की प्रतिबद्धता बखूबी बताती है कि फिलहाल वह भाजपा के साथ गठबंधन नहीं करेगा। राजनीति में सब कुछ संभव है। 2024 लोकसभा चुनाव से ऐन पहले क्या होता है, कोई नहीं जानता!
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)