November 24, 2024

अमरीक

सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था शिरोमणि अकाली दल (एसजीपीसी) के अध्यक्ष एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने, इन दिनों खासी चर्चा हासिल कर रही समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का जबरदस्त तीखा विरोध करते हुए कहा है कि यह सिखों की अलग पहचान व मर्यादा को मौजूदा हुकूमत की खुली चुनौती है; कौम इसे हरगिज मंजूर नहीं करेगी। यूसीसी का एकजुट होकर पूरे देश के सिख विरोध करेंगे और अन्य अल्पसंख्यकों को भी हुकूमत की मुखालफत में शुमार किया जाएगा।

धामी की अगुवाई में शनिवार देर शाम शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की एक विशेष बैठक समान नागरिक संहिता के मुद्दे को लेकर हुई। अध्यक्ष सहित तमाम सदस्यों और महासचिव ने इसे लागू करने के प्रस्ताव को सिरे से रद्द कर दिया। कमेटी की ओर से कहा गया कि केंद्र सरकार को एक विरोध पत्र भेजा जा रहा है कि वह जबरन इसे देश पर न थोपें। नहीं तो समूचे राष्ट्र में अमन और सद्भाव के लिए भारी खतरा पैदा हो जाएगा। गहरी नकारात्मक संशय का माहौल तो अभी से बनना शुरू हो गया है।

पंजाब सहित कई राज्यों में इसे लेकर विरोध हो रहा है और तनाव की स्थिति है लेकिन मीडिया का एक बड़ा हिस्सा इस सच को सामने नहीं ला रहा। बैठक में एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने जोर देकर कहा कि सिख सरकार की मनमर्जी के आगे नहीं झुकेंगे-बेशक सीने पर गोलियां क्यों न खानीं पड़ें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह सिख हितेषी होने का दावा करते वक्त भूल जाते हैं कि यह एक मार्शल कौम है। केंद्रीय सरकार समान नागरिक संहिता, 2024 के आम लोकसभा चुनाव से पहले ध्रुवीकरण की रणनीति के चलते इसे लागू करना चाहती है। अगर नरेंद्र मोदी और संघ परिवार सिखों को पराया नहीं मानता तो सर्वोच्च सिख धार्मिक संस्थाओं और फौरी तौर पर लीड कर रहे राजनीतिक नेतृत्व से इस बाबत विचार-विमर्श करती। यह एकतरफा फैसला है जो तानाशाही और घमंड की उपज है।

खचाखच भरे हॉल में एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने कहा कि समान नागरिक संहिता को लेकर देश के अल्पसंख्यकों में डर है कि यह उनकी पहचान, मौलिकता और सिद्धांतों को चोट पहुंचाएगी। चिंता में केवल सिख ही नहीं, मुसलमान, ईसाई, आदिवासी और पारसी भी हैं। इन सब समुदायों में यूसीसी को लेकर बेशुमार भ्रांतियां हैं और केंद्र सरकार इस बाबत इनसे कोई संवाद नहीं करना चाहती।

21वें लॉ कमीशन में समान नागरिक संहिता को सिरे से रद्द किया जा चुका है, इस प्रसंग में देखा जाए तो इसे लागू करने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार खुद संविधान को नहीं मानती और मनमर्जी से चलती है। यूसीसी लागू करने की जिद इसका उदाहरण है। संविधान विविधता में एकता के सिद्धांत को मान्यता देता है लेकिन केंद्र की सरकार इस ओर से पीठ किए बैठी है।

एसजीपीसी के महासचिव भाई गुरचरण सिंह ग्रेवाल कहते हैं, “यूसीसी को लेकर एसजीपीसी ने सिख बुद्धिजीवियों, इतिहासकारों, विद्वानों और न्यायविदो की एक कमेटी का गठन किया था। अभी है कमेटी काम कर रही है ताकि वक्त आने पर सुप्रीम कोर्ट तक जाया जा सके। शुरुआती दौर में कमेटी ने पाया है कि समान नागरिक संहिता को अल्पसंख्यकों के अस्तित्व और उनके धार्मिक अनुष्ठानों, परंपराओं और संस्कृति का खुला अपमान माना है।”

अमृतसर में यूसीसी की एसजीपीसी की ओर से बुलाई गई बैठक में खास तौर पर प्रधान एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी, महासचिव गुरचरण सिंह ग्रेवाल, वरिष्ठ (सिखों के मामलों के वकील) पूरन सिंह हुंदल, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के वरिष्ठ सदस्य भगवान सिंह, परमजीत कौर लांडरां, दीदी करमजीत कौर, प्रोफेसर कश्मीर सिंह, डॉ. और डॉ. चमकौर सिंह ने शिरकत की। बैठक में प्रत्येक वक्ता का सारा जोर कम से कम पंजाब में यूसीसी लागू नहीं करने को लेकर था। प्रसंगवश, भूलना नहीं चाहिए कि जब-जब एसजीपीसी का केंद्र के साथ सीधा टकराव होता है तो हालात बेकाबू हो जाते हैं। अतीत की बेशुमार घटनाएं इसकी जिंदा गवाह हैं। केंद्र के पास मौजूद फाइलों में सब कुछ कायदे से दर्ज है।

कोई कुछ कहे, शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के नजदीकी सूत्र रविवार को भी तस्दीक करते रहे कि यूसीसी की वजह से दोनों पार्टियों में होने वाला गठजोड़ एन वक्त पर स्थगित हो गया। अलबत्ता संभावनाएं शेष हैं। दोहराना पड़ रहा है कि न तो शिअद न भाजपा फिलहाल इस हाल में है कि चुनाव के दौरान बड़ी जीत के करीब पहुंच सके। शनिवार को अकाली सुप्रीमो पूर्व मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने कहा था कि बसपा से उनका गठजोड़ है और कायम रहेगा। मायावती ने सुखबीर के वक्तव्य से एक दिन पहले समान नागरिक संहिता का प्रबल समर्थन किया था। तब लखनऊ से दिया गया उनका समर्थन पंजाब में गहरी हलचल मचा गया था। अब मायावती ने यू-टर्न ले लिया है।

मायावती ने शनिवार को पंजाब, चंडीगढ़ और हरियाणा के बसपा पदाधिकारियों के साथ मीटिंग की। इसमें उन्होंने कहा कि यूसीसी देश के एक बड़े तबके के लिए घातक है। इसे जबरन थोपा जा रहा है। नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार को यूसीसी जैसे निहायत गैरजरूरी मुद्दों पर ऊर्जा लगाने की बजाय महंगाई कम करने और गरीबी दूर करने पर काम करना चाहिए। अपने कथन से मायावती ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। पंजाब, चंडीगढ़ और हरियाणा के बसपा पदाधिकारियों की विशेष मीटिंग में उन्होंने सलाह दी कि पंजाब बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम की जन्मभूमि है और वहां पार्टी के लिए बहुत संभावनाएं हैं। चंडीगढ़ में भी। पंजाब तक पहुंच रही सूचनाएं बताती हैं कि अपने तीखे तेवरों के साथ बसपा सुप्रीमो यह संदेश देना चाहती हैं कि प्रस्तावित विपक्षी एकता में बेशक फिलहाल शामिल न हों, लेकिन भाजपा के साथ भी नहीं हैं। उनके ताजा तीखे तेवरों से संकेत गए हैं कि वह एकबारगी फिर प्रबल भाजपा विरोधी हो गईं हैं।

मीटिंग में मौजूद पंजाब के एक पदाधिकारी ने इस पत्रकार को बताया कि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए गंभीरता से विचार कर रही हैं। वह विपक्षी एकता के लिए अपनी खिड़कियां-दरवाजे खुला रखना चाहती हैं। अपने कार्यकर्ताओं को 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटने का निर्देश देने के साथ ही उन्होंने भाजपा के खिलाफ तीखे तेवर अख्तियार किए और कहा कि तमाम प्रदेशों में भाजपा की सरकारें हताशा की शिकार हैं। अपनी कमियों पर पर्दा डालने के लिए जातिवादी, फिरकापरस्त तथा विभाजनकारी विषैली नीतियों को कानून को ताक पर रखकर गति दे रही हैं। यूसीसी इस सब का ताजा आधार है। उसी सूत्र के मुताबिक मायावती ने साफ कहा कि कार्यकर्ता हर राजनीतिक व सामाजिक गतिविधि पर पैनी नजर रखें, लेकिन कोई प्रतिक्रिया व्यक्त ना करें, क्योंकि पार्टी को हर वर्ग का वोट चाहिए। बहुजन समाज पार्टी इस मुद्दे को लेकर हालात को अच्छी तरह परखेगी। अंतिम निर्णय तभी होगा।

बसपा सर्वेसर्वा ने बंद कमरे में जो कहा वह किसी न किसी तरह पूरी भनक के साथ शिरोमणि अकाली दल तक आना ही था। आया। इन पंक्तियों को लिखने के कुछ घंटे पहले तक सुखबीर सिंह बादल ने कहा था कि बसपा उनका भरोसेमंद साथी है और उसके साथ गठबंधन कायम रहेगा। मंथन अब इस बात पर हो रहा है कि अगर मौकापरस्ती के लिए बदनाम मायावती कांग्रेस से जा मिलती हैं तो अकाली-बसपा गठबंधन  खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगा। मायावती को तो आम आदमी पार्टी तथा अरविंद केजरीवाल से भी कतई कोई एतराज नहीं। जबकि शिरोमणि अकाली दल के रहनुमा सुखबीर सिंह बादल वहां पांव भी नहीं रखना चाहते; जहां कांग्रेस और ‘आप’ की मौजूदगी हो।                              खैर, मायावती का पैंतरा अपनी जगह लेकिन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का यूसीसी का आधिकारिक विरोध केंद्र सरकार को यकीनन संकट में डालेगा। ऐसे में तो और भी जब अकाली दल से हाथ मिलाने के रास्ते निकाले जा रहे हैं। कहा भले कुछ भी जा रहा हो। पंजाब में दोनों के सियासी वजूद के लिए अपरिहार्य है कि अकाली-भाजपा गठबंधन किसी तरह कायम हो और आम आदमी पार्टी तथा कांग्रेस के लिए मुसीबत का सबब बने। देखिए, यह तमाशा कब होता है!

( अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)

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