जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड के वित्त मंत्री प्रेम चन्द अग्रवाल ने आज मंगलवार को प्रदेश के वित्तीय वर्ष 2024-25 का वार्षिक 89,230.07 करोड़ का बजट पेश किया जिसमें 88597.11 करोड़ की राजस्व प्राप्तियों का अनुमान है। बजट में 9416.43 करोड़ का राजकोषीय घाटा तथा 2779.99 करोड़ का प्रारम्भिक घाटा दिखाया गया है। चुनावी वर्ष होने के कारण कोई नया प्रत्यक्ष कर प्रस्तावित नहीं है। लेकिन खर्चे पूरे करने के लिये भारी भरकम उधारी सरकार की माली हालत और आय से कहीं अधिक खर्चों की कहानी बयां करती है।
राज्य विधानसभा के बजट सत्र के दूसरे दिन आज मंगलवार को पूर्व निर्धारित समयानुसार वित्त मंत्री अग्रवाल ने राज्य का सालाना बजट पढ़ना शुरू किया। अपेक्षानुसार पूर्व वर्ष की तुलना में बजट राशि अधिक रखी गयी है। जबकि विभिन्न श्रोतों से अनुमानित आय खर्च से कहीं कम होने के कारण उधारी और देयताओं के मद में 27920 करोड़ की अनुमानित राशि रखी गयी है। बजकि पिछले साल के बजट में 19460 करोड़ की उधारी का प्रावधान रखा गया था।
इस बजट में कुल 89,230.07 करोड़ के खर्चे और विभिन्न श्रोतों से 88,597.11 करोड़ की आय का अनुमान दशार्या गया है। आय के श्रोतों में कर राजस्व से 36,146.47 करोड़ और करेत्तर राजस्व से 24,406.43 करोड़ का राजस्व अनुमानित है। इस प्रकार दोनों मुख्य श्रोतों से सरकार को कुल 60,552.90 करोड़ का राजस्व प्राप्त होने का अनुमान है। जो कि प्रस्तावित खचों से बहुत कम है। इस आय के अलावा सरकार ने पूंजी प्राप्तियों से 28,044.21 करोड़, ऋणों की वसूली से 24.21 करोड़ और अन्य प्राप्तियों से 100 करोड़ की आय की उम्मीद लगायी है।
इस प्रकार प्रेम चन्द अग्रवाल के बजट में सरकार को कुल 60,677.11 करोड़ मिलने का अनुमान लगाया गया है। जो कि प्रस्तावित खर्चों की मद से बहुत कम याने कि 28,552.96 करोड़ कम है। इस कमी को पूरा करने के लिये 27,920 करोड़ की उधारी का सहारा राज्य सरकार को है। गौरतलब है कि सरकार को जितनी आय की उम्मीद होती है, उतनी सामान्यतः प्राप्त नहीं हो पाती है। खास कर केन्द्रीय करों और अपेक्षित अनुदान के मद में केन्द्र से अपेक्षित हिस्सा नहीं मिल पाता है। जबकि सरकार का अनुमानित खर्च हमेशा ही अनुमान से कही ज्यादा हो जाता है। जिसके लिये सरकार को कभी-कभी दो बार अनुपूरक बजट पेश करना होता है। देखा जाय तो इस बजट में आय और व्यय में काफी असन्तुलन है जो कि वित्तीय प्रबंधन की दुर्दशा का ही परिचायक है।
राज्य पर बढ़ते जा रहे कर्ज के बोझ के कारण सरकार को ब्याज के रूप में भारी भरकम रकम खर्च करनी पड़ती है। इस बजट अनुमान के अनुसार राज्य सरकार को कर्ज को चुकाने में 19136.53 करोड़ की रकम खर्च करनी पड़ेगी। इसके अलावा 6657.75 करोड़ की रकम ब्याज के रूप में चुकानी होगी। इन दोनों देयताओं को मिला कर ऋण देयता 25,794.28 करोड़ बनती है।
जबकि राज्य का अपना कर राजस्व (इसमें केन्द्रीय कर का हिस्सा शामिल नहीं) केवल 22509,32,06,000 रुपये अनुमानित है। पिछले साल सरकार को कर्ज अदायगी पर 15,727 करोड़ और उससे पहले साल 11,227 करोड़ अदा करने पड़े थे। वर्ष 2022-23 में तो कर्ज अदायगी केवल 8474.77 करोड़ थी। इस प्रकार कर्ज का ग्राफ दिन दुगुनी और रात चौगुनी की रफ्तार से बढ़ रहा है। इससे प्रदेश के वित्तीय प्रबंधन और आय से अधिक फिजूलखर्ची तथा सस्ती लोकप्रियता के लिये कर्ज लेकर दरियादिली दिखाने की असलियत सामने आ जाती है। जीएसटी के कारण भी राज्य सरकार को प्रति वर्ष लगभग 5 हजार करोड़ की हानि उठानी पड़ती है।
कर्ज कोई बुरी बात नहीं है। प्रगति के लिये कर्ज जरूरी भी है। लेकिन वह कर्ज जनता को मूर्ख बनाने के लिये नहीं होना चाहिये। दरअसल सरकारें बजट में नया कर न लगाने की वाहवाही लूटती हैं। कर लगाने से जनता नाराज हो जाती है जिसका असर चुनावों पर पड़ता है। लेकिन खर्चे तो पूरे करने ही होते हैं। खर्चे भी कुछ जरूरी तो कुछ सस्ती लोक प्रियता जुटाने के लिये होते हैं।
राजनीतिक शासक अपनी फिजूलखर्चियां कम नहीं करते। इसके लिये सरल से उपाय है कि कर्ज ले लो और खर्चे पूरे कर लो। इसका जनता को पता भी नहीं चलता है और सीधा असर भी नहीं पड़ता है। लेकिन ब्याज सहित कर्ज लौटाने पर जो भारी भरकम रकम चली जाती है उससे बजट असन्तुलित हो जाता है और जितनी रकम विकास कार्यों पर खर्च होनी थी वह कर्ज अदायगी पर खर्च हो जाती है। कर्ज का यह चतुर राजनीतिक गणित केन्द्र सरकार भी चला रही है तो उत्तराखण्ड की डबल इंजन सरकार को उसका अनुसरण करने में गर्व महसूस होता है।