नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश में पेड़ों के अवैध कटान को संज्ञेय अपराध घोषित करने को कहा है। साथ ही सरकार को वन कानून में संशोधन करने और सजा का सख्त प्रावधान करने की बात भी कही है।
मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की युगलपीठ ने यह सख्त टिप्पणी देहरादून के विकास नगर के कालसी क्षेत्र में खसरा नंबर 64 से साल के पेड़ों के बड़ी मात्रा में की गयी अवैध कटाई के मामले में की है।
दरअसल इस मामले को याचिकाकर्ता राकेश तोमर की ओर से एक जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी गयी है। इस मामले में विगत चार जुलाई को सुनवाई हुई लेकिन आदेश की प्रति शनिवार को मिली।
अदालत ने जारी आदेश में बेहद सख्त लहजे में कहा है कि कानून को हंसी का पात्र नहीं बनने देना चाहिए और दोषियों के खिलाफ कानून में कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए।
अदालत ने विदेश में रह रही एक आरोपी अर्चना भार्गव के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी करने के निर्देश भी प्रदेश सरकार को दिये हैं। यही नहीं अदालत ने श्रीमती भार्गव की पेशी के लिये दस लाख रुपये का जमानती वारंट भी जारी किया है।
अदालत ने निर्देश दिया कि इस संबंध में आब्रजन अधिकारियों के साथ ही विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण अधिकारियों (एफआरआरओ) को सूचित किया जाए।
दरअसल याचिकाकर्ता की ओर से वर्ष 2021 में दायर जनहित याचिका में कालसी क्षेत्र में आरक्षित वन क्षेत्र से (साल वन) हजारों पेड़ों के अवैध कटान का आरोप लगाया गया है।
इसके बाद अदालत ने वन महकमा के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) अनूप मलिक को जवाबी हलफनामा के साथ अदालत में पेश होने के निर्देश दे दिये थे। श्री मलिक ने अपने जवाब में कहा कि यह आरक्षित वन भूमि नहीं है बल्कि निजी भूमि है।
अदालत ने अपने आदेश में बेहद कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि पेड़ों के अवैध कटान को संज्ञेय अपराध घोषित किया जाये। अदालत ने पांच मई 2015 से सात जुलाई, 2021 की अवधि में साल के पेड़ों के अवैध कटान के लिये जिम्मेदार तत्कालीन अधिकारियों के खिलाफ भी कार्यवाही अमल में लाने के निर्देश दिये। अदालत ने सेवानिवृत्त अधिकारियों के खिलाफ भी कार्यवाही की बात कही है।
पीसीसीएफ की ओर से अदालत में पेश जवाबी हलफनामा में कहा गया है कि जिम्मेदार अधिकारियों एवं कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू कर दी गयी है। तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी (डीएफओ) मान सिंह के खिलाफ वर्ष 2018 में आरोप पत्र जारी कर दिया गया था।
विभागीय जांच पूरी कर ली गयी है और उनके खिलाफ अनुशानात्मक कार्यवाही के लिये सक्षम प्राधिकारी के अंतिम आदेश की प्रतीक्षा है। यही नहीं उन्होंने बताया कि वन दरोगा महावीर सिंह चौहान और वन रक्षक रीतारमोला के खिलाफ भी जांच शुरू कर दी गयी है। अदालत ने श्री मलिक को इन मामलों में अनुपालन रिपोर्ट अगली सुनवाई पर पेश करने को कहा है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि पेड़ों के अवैध कटान से प्रदेश को बड़ी क्षति हुई है। यह भी माना कि इस क्षति के लिये भूमि की मूल स्थिति में बदलाव के साथ ही राजस्व विभाग की भूमि समतलीकरण के लिये दी गयी मंजूरी जिम्मेदार है।
अदालत ने देहरादून के जिलाधिकारी को निर्देश दिये कि 2015 से 2021 के बीच तैनात राजस्व अधिकारियों और कर्मचारियों और राजस्व रिकार्ड को अदालत में पेश करें। साथ ही अदालत ने भूमि समतलीकरण के मामले में तथ्य पेश करने को कहा है।
इससे साफ है कि अब इस मामले में जिम्मेदार राजस्व अधिकारियों पर भी गाज गिरनी तय है। अदालत ने पीसीसीएफ की ओर से दिये गये सुझाव पर सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि खसरा नंबर 64 को भारतीय वन अधिनियम,1927 के तहत आरक्षित वन क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया जाये।
अदालत ने माना है कि गूगल मैप और याचिकाकार्ता की ओर से उपलब्ध कराये गये चित्रों से स्पष्ट है कि खसरा नंबर 64 के उपविभाजित खसरा 64/1, 64/2 और 64/3 से बड़ी मात्रा में साल के पेड़ों की अवैध कटाई हुई है। विकासनगर के डीएफओ की ओर से पेश रिपोर्ट में भी खसरा नंबर 64/2 में 147 पेड़ काटे जाने की बात कही गयी हैं। जिसमें आरोपियों के खिलाफ कई मामले लंबित हैं।
अदालत ने माना कि स्थिति चिंताजनक है। अदालत ने इस क्षेत्र में भूमि के हस्तांतरण के साथ ही विकासात्मक कार्यों पर भी अगले आदेश तक रोक लगा दी है। साथ ही सरकारी भूमि, सार्वजनिक भूमि, निजी भूमि, वन क्षेत्र और सरकारी संपत्ति से भी पेड़ों के कटान पर प्रतिबंध जारी कर दिया है।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रसन्ना कर्नाटक और जेसी कर्नाटक ने बताया कि अदालत ने पीसीसीएफ, डीएफओ देहरादून, तहसीलदार विकासनगर एवं थाना प्रभारी को निर्देश दिये कि वह यह सुनिश्चित करें कि इस क्षेत्र में आगे से पेड़ों का अवैध कटान न होने पाये।