November 24, 2024

महिलाओं के ऊपरी शरीर का नग्र होना अपने आप में यौनिक प्रदर्शन नहीं है। न ही इसको अश्लील और अशोभनीय कहा जा सकता है। न ही इसे आपराधिक कृत्य ठहराया जा सकता है। केरल हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए यह बात कही। कोर्ट ने यह भी कहा कि पुरूषों के ऊपरी हिस्से को खुले होने को यदि अश्लील और आपराधिक कृत्य नहीं माना जाता है, तो महिलाओं के मामले में यह कैसे अश्लील कृत्य हो जाता है। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि “पुरूष अपने शरीर को सिक्स-पैक एब्स, बाइसेप्स आदि के रूप में प्रदर्शित करते हैं। पुरूष बिना शर्ट घूमते पाते हैं। लेकिन उनके इस कृत्य को कभी भी अश्लील या अशोभनीय नहीं माना जाता है। जब किसी पुरूष के आधे नग्न शरीर को सामान्य बात मानी जाती है और इस यौनिक प्रदर्शन नहीं कहा जाता है, जबकि एक महिला के शरीर के बारे में ऐसा नहीं माना जाता है।”

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति डॉ. कौसर एडप्पागथ की पीठ ने एक 33 वर्षीय महिला अधिकार कार्यकर्ता के खिलाफ मामले को खारिज करते हुए कही। जिसने अपने दो नाबालिग बच्चियों को अपने अर्ध-नग्न ऊपरी हिस्से पर पेंट करने की अनुमति थी। जिसके बाद उनके खिलाफ POCSO अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था। न्यायाधीश ने कहा, “समाज की नैतिकता और कुछ लोगों की भावनाएं किसी अपराध को स्थापित करने और किसी व्यक्ति पर मुकदमा चलाने का कारण नहीं हो सकती हैं। उन्हें ऐसा करने का अधिकार है। अगर यह देश के किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं करता है। सामाजिक नैतिकता की धारणाएं स्वाभाविक रूप से व्यक्तिपरक हैं। नैतिकता और आपराधिकता सह-विस्तृत नहीं हैं। जिसे नैतिक रूप से गलत माना जाता है, जरूरी नहीं कि वह कानूनी रूप से भी गलत हो।”

यह मामला 2020 के वीडियो से सामने आया। जिसे एक कार्यकर्ता ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट किया था। जिसमें नाबालिग बच्चे अर्ध-नग्र ऊपरी हिस्से पर पेंटिग करते दिख रहे हैं। इसके बाद कोच्चि में पुलिस ने उस महिला के खिलाफ मामला दर्ज किया। पुलिस ने उनके खिलाफ POCSO अधिनियम, IT अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप पत्र दायर किया। एर्नाकुलम में POCSO कोर्ट द्वारा डिस्चार्ज याचिका को खारिज करने को चुनौती देते हुए महिला ने उच्च न्यायालय का रुख किया किया था।

महिला को सभी आरोपों से मुक्त करते हुए, न्यायाधीश ने कहा, “अंतिम रिपोर्ट कथित रूप से किसी भी वैधानिक अपराध के लिए एक प्रथम दृष्टया मामला बनाने का समर्थन नहीं करती है। ट्रायल कोर्ट ने उस संदर्भ की अनदेखी की जिसमें वीडियो प्रकाशित किया गया था और इसने बड़े पैमाने पर जनता को संदेश दिया था। याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही के लिए पर्याप्त आधार नहीं है।”

सबरीमाला पहाड़ी मंदिर में जाने का प्रयास करने के बाद 2018 में सुर्खियों में आई उस महिला ने अपने कृत्य को उचित ठहराया। उसने कहा कि उसकी हरकतें आत्म-अभिव्यक्ति का एक रूप थीं। महिलाओं के शरीर को विवश करने वाली सामाजिक और सांस्कृतिक वर्जनाओं से मुक्त होने का प्रयास था।

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