November 22, 2024

हल्द्वानी। फरवरी की हलद्वानी हिंसा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेन्ट जनरल गुरमीत सिंह को पत्र लिखकर प्रशासन की भूमिका की जांच की मांग की है।

माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य वृंदा करात, केंद्रीय समिति सदस्य डॉ. वीजू कृष्णन और पार्टी के उत्तराखण्ड सचिव राजेंद्र नेगी की तीन सदस्यीय समिति ने 13 मार्च को हलद्वानी का दौरा किया था और हिंसा प्रभावित बनभूलपुरा में हिंसा पीड़ितों, मारे गये लोगों के परिजनों, घायल पत्रकारों व पुलिसकर्मियों से बात की थी।

माकपा की तथ्य शोधक समिति ने पाया कि 8 फरवरी की हिंसा का कारण प्रशासन का उच्च न्यायालय में याचिका पर सुनवाई के बीच जल्दबाजी में मस्जिद व मदरसे की तोड़ू कार्रवाई थी।

समिति ने कार्रवाई के तरीके पर भी सवाल उठाया है। उसका कहना है कि कार्रवाई शुरू करने से पहले मस्जिद व मदरसे से पवित्र किताब को नहीं निकालने दिया गया। और यह कार्यवाही बाद में की गयी, जिससे इस तरह की अफवाहें फैल गयीं कि पवित्र किताब को नुकसान पहुंचा है। प्रशासन का कार्रवाई का निर्णय गलत था और उसे असंवेदनशील तरीके से अंजाम दिया गया।

प्रतिनिधिमंडल के अनुसार हिंसा पूर्वनियोजित नहीं थी इसलिए कथित दंगाइयों पर यूएपीए के तहत कार्रवाई करना गलत है।

समिति के सदस्य हिंसा में मारे गये छह लोगों के परिजनों से मिले। इनमें चार की मौत पुलिस की गोली से हुई है और दो की सांप्रदायिक हिंसा में। समिति ने मारे गये लोगों के परिजनों को समुचित मुआवजा देने की मांग की है।

प्रतिनिधिमंडल ने सिम्मी से मुलाकात की जिनके पति मोहम्मद जाहिद और उनके 17 साल के बेटे मोहम्मद अनस दोनों पुलिस के शिकार हो गए। जाहिद एक पिकअप गाड़ी के ड्राइवर थे। वह अपनी चार महीने की पोती के लिए दूध लेने गए थे। जब वह वापस नहीं लौटे तो सिम्मी ने अपने बेटे अनस को उन्हें देखने के लिए भेजा। अगली खबर उनको जो सुनने को मिली उसके मुताबिक दोनों की मौत हो गयी थी। उनके बेटे हैं जिनकी कोविड के बाद स्कूल की पढ़ाई छूट गयी है। और उनकी एक शादीशुदा बेटी है। वह मौजूदा दौर में अपनी मां मुमताज बेगम के साथ रह रही हैं। इसी तरह से प्रतिनिधिमंडल ने कई और पीड़ित परिवारों से मुलाकात की।

प्रतिनिधिमंडल ने हाजी फईम के परिवार से मुलाकात की जिनकी उनके पड़ोसी ने हत्या कर दी थी। यह एक ऐसा मामला था जो बिल्कुल सांप्रदायिक हत्या का था। इसी वजह से प्रतिनिधिमंडल ने इसको बिल्कुल अलग तरीके से लिया। और इसमें प्रशासन से तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की। फईम और उनका परिवार एक मिली जुली आबादी वाले इलाके में रहते हैं जिसमें एक तरफ हिंदू आबादी है और दूसरी तरफ मुस्लिम। उनका और उनके भाई के परिवार का घर बिल्कुल हिंदू परिवारों से सटा हुआ है। प्रतिनिधिमंडल को बताया गया कि 8 फरवरी को पड़ोसियों के एक बड़े समूह ने फईम के घर पर पत्थरबाजी की और फिर उसे जला दिया। कहा जा रहा है कि इस समूह का नेतृत्व संजय सोनकर कर रहा था जो कांग्रेस का पूर्व नेता है और मौजूदा दौर में बीजेपी में है। घर के बाहर खड़ी परिवार की सभी गाड़ियों को जला दिया गया।

समिति ने हिंसा के दो दिन बाद पुलिस की क्रूरता का शिकार महिलाओं और बच्चों से भी मुलाकात की। समिति ने हिंसा के बाद अंधाधुंध तरीके से महिलाओं को हिरासत में लेने, जिनमें एक 60 वर्षीय वृद्धा भी थीं और एक दुधमुंहे बच्चे की मां भी, पर सवाल उठाया है।

प्रतिनिधिमंडल ने पाया कि गलत फैसले और उसके आगे गैरसंवेदनशील तरीके से उसको लागू करने के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। हिंसा के दौरान कई मीडियाकर्मियों पर भी हमले हुए और कई फोटोग्राफरों के कैमरे तोड़ दिए गए। इलेक्ट्रानिक मीडिया के लोगों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया।

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