नई दिल्ली: लद्दाखी इनोवेटर और प्रसिद्ध जलवायु एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक ने मंगलवार (26 मार्च) को अपना 21 दिवसीय ‘जलवायु अनशन’ समाप्त कर दिया. उन्होंने आगे के उपवास के लिए अन्य समूहों को इसकी कमान सौंप दी है.
उनके अनुसार यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक नागरिक समूहों को यह महसूस नहीं हो जाता कि उनकी मांगें पूरी हो गई हैं.
उन्होंने आगे कहा, ‘हम लद्दाख के हिमालयी पहाड़ों के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और यहां पनपने वाली विशिष्ट मूलनिवासी जनजातीय संस्कृतियों की रक्षा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की अंतरात्मा को जगाने और याद दिलाने की कोशिश कर रहे हैं. हम नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सिर्फ राजनेता के रूप में नहीं देखना चाहते. हम उन्हें एक राजनीतिज्ञ के रूप में पसंद करेंगे लेकिन इसके लिए उन्हें कुछ चरित्र और दूरदर्शिता दिखानी होगी.’
उल्लेखनीय है कि साल भर चली वार्ता के इस महीने की शुरुआत में तीसरे दौर में टूटने के बाद चीन और पाकिस्तान की सीमा से लगे रणनीतिक क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है. केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक समिति ने 2019 में केंद्र शासित प्रदेश में अपग्रेड होने के बाद लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांगों को मानने से इनकार कर दिया था.
लद्दाख में नागरिक समाज समूह राज्य का दर्जा देने लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने, लद्दाख के स्थानीय लोगों के लिए प्रशासन में नौकरी आरक्षण नीति और लेह और कारगिल जिलों के लिए एक संसदीय सीट की मांग कर रहे हैं.
अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची आदिवासी आबादी को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करती है और उन्हें भूमि, सार्वजनिक स्वास्थ्य और कृषि पर कानून बनाने के लिए स्वायत्त विकास परिषद स्थापित करने की भी अनुमति देती है.
अपने अनशन के आठवें दिन द वायर से बात करते हुए वांगचुक ने छठी अनुसूची की मांग को समझाते हुए कहा था, ‘क्योंकि यह (अनुसूची) विशिष्ट मूलनिवासी आदिवासी समुदायों वाले पहाड़ी क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है और आम तौर पर 50 प्रतिशत जनजातीय आबादी इसके लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए पर्याप्त है, लेकिन लद्दाख में 97 प्रतिशत है. इसलिए हम इसके लिए बिल्कुल योग्य थे.’
वांगचुक ने आगे कहा था कि उन लोगों को उम्मीद थी कि सरकार लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाने के लिए काफी उदार थी, इसलिए वह उन्हें यह अधिकार भी देगी. लेकिन बार-बार वादों और आश्वासनों के बावजूद ऐसा नहीं हुआ और अब सरकार ने कथित तौर पर कहा है कि ऐसा नहीं होगा. इसलिए लद्दाखी लोग ‘बहुत आहत हैं’ और हमारा ‘एकमात्र सहारा’ य़ह आंदोलन ही है.