रांची के प्रेस क्लब में आयोजित “इलेक्टोरल बॉन्ड और राजनीतिक दल” विषय पर की गई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए सर्वोच्च न्यायलय के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाला देश का और शायद दुनिया का अभी तक का सबसे बड़ा घोटाला है। चुनावी बॉन्ड से16,500 करोड़ चंदा जो कंपनियों ने राजनैतिक दलों को दी, वो केवल रिश्वत या kickbacks की राशि है, जिसके बदले कंपनियों को Quid pro quo ( “कुछ के लिए कुछ”) में लाखों करोड़ रुपये के ठेके / प्रोजेक्ट दिये गए।
RTI से मिली सूचना से पता चला कि आरबीआई और चुनाव आयोग सहित विभिन्न प्राधिकरणों ने चुनावी बॉन्ड योजना लागू होने से पहले इसके खतरों को उजागर किया था। उन्होंने कहा था कि इससे पारदर्शिता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, सिस्टम में मनी लॉन्ड्रिंग और काले धन में वृद्धि होगी और शेल (shell) कंपनियों के माध्यम से फंडिंग को भी बढ़ावा मिलेगा। मोदी सरकार ने इन चिंताओं को नजरअंदाज किया, और योजना को लागू कर दिया।
बताते चलें कि 12 मई को रांची के प्रेस क्लब में गैरसरकारी संस्था कॉमन कॉज, सतर्क नागरिक संगठन और लोकतंत्र बचाओ अभियान की ओर से प्रेस कांफ्रेंस आयोजित किया गया था।
जिसमें प्रख्यात अधिवक्ता प्रशांत भूषण, कॉमन कॉज से जुड़ीं समाजसेवी अंजलि भारद्वाज और लोकतंत्र बचाओ अभियान से जुड़ीं एलिना ने शिरकत की। इसके अलावा समाज के अलग-अलग वर्गों के लोगों की भी इसमें भागीदारी रही।
प्रशांत भूषण ने कहा कि जब यह साफ हो गया है कि पॉलिटिकल पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से मिलने वाला चंदा जबरन वसूली, चंदा के बदले में लाभ देने, मनी लॉन्ड्रिंग के साधन के रूप में इस्तेमाल बनकर रह गया। ऐसे में अब बहुत जरूरी है कि पूरे मामले की जांच की जाए और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। प्रशांत भूषण ने कहा कि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है कि सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में एसआईटी का गठन कर मामले की जांच कराई जाए। इसके साथ-साथ इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को मिली रकम वापस कराई जाए और जो भी दोषी हों उनपर कानूनी प्रावधान के तहत कार्रवाई हो। प्रशांत भूषण ने कहा कि कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की ओर दायर याचिका पर सुनवाई होनी है। राजनीति दलों को भी RTI के दायरे में लाया जाए।
सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि 2013 में ही सेंट्रल इनफार्मेशन कमीशन द्वारा राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार के दायरे में लाने का निर्देश दिए जाने के बावजूद आज तक यह संभव नहीं हो पाया है। ऐसे में इसके लिए भी वह सर्वोच्च न्यायालय की शरण में गए हैं ताकि राजनीतिक दल भी सूचना के अधिकार के दायरे में आ सकें। भ्रष्टाचार पर रोक के लिए बहुत जरूरी है कि राजनीतिक दलों की लेनदेन नकदी से करने पर पूरी तरह रोक लगा दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने अंग्रेजी समाचार पत्र का हवाला देते हुए कहा कि विपक्षी दलों के 25 नेताओं पर ईडी की कार्रवाई चल रही थी। जब ये भाजपा में शामिल हुए तो इन 23 नेताओं पर ईडी की कार्रवाई या तो बंद हो गयी या फिर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। पीएम मोदी के बयान पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि आज पीएम अडाणी-अंबानी का नाम लेकर कांग्रेस पर आरोप लगा रहे हैं। सब जानते हैं कि अडाणी को फायदा कौन पहुंचा रहा है। प्रज्ज्वल रेवन्ना के मामले में सब जानते हुए भी पीएम उनके लिए वोट मांगते हैं।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में कॉमन कॉज से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने कहा कि 16,500 करोड़ के बॉन्ड्स में से 50% (8,251 करोड़ रु) केवल भाजपा को चंदा दिया गया। इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाले ने भाजपा के भ्रष्टाचार मुक्त भारत जुमले का पर्दाफ़ाश किया है।
अंजलि भारद्वाज ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाला में जो तथ्य आए हैं, उससे साफ पता चलता है कि यह मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा मामला है। चंदा देने वाली 33 कंपनियां ऐसी हैं जिनका नेट एग्रीगेट लॉस 01 लाख करोड़ से अधिक का था। इसके बावजूद इन कंपनियों ने 575 करोड़ के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे और उसका 75 प्रतिशत चंदा भाजपा को गया। समाजसेवी अंजली भारद्वाज ने कहा कि यह कैसे संभव है, क्या कंपनियों की आड़ में किसी और का पैसा राजनीतिक दलों को देकर काला धन को सफेद किया जा रहा था? यह बड़ा सवाल है।
इसको लेकर लोकतंत्र बचाओ अभियान 2024 से जुड़ीं एलिना ने ‘मुख्य निर्वाचन आयुक्त के नाम खुला पत्र’ को पढ़ा और बताया कि आयोग से नियमानुसार कार्रवाई करने की मांग की गई, लेकिन चुनाव आयोग ने इसे अनसुना कर दिया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य नेताओं के द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान देश के अन्य हिस्सों के साथ-साथ झारखंड में भी नफरती भाषण देने, पीएम के गुमला और पलामू में दिए गए भाषणों पर कार्रवाई की मांग को अनसुना करने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया गया।
सर्वोच्च न्यायलय के आदेश के बाद SBI और चुनाव आयोग द्वारा बॉन्ड्स के आंकड़ों को सार्वजानिक किया गया जिसके आधार पर कई पत्रकारों व नागरिकों ने आकलन व जांच की। जिससे जो रुझान सामने आए हैं उससे यह साफ है कि कई कंपनियां जो ईडी (ED), सीबीआई(CBI) और आईटी विभाग (IT Department) के जांच के दायरे में थीं, उन्होंने चुनावी बॉन्ड्स खरीदे और उसके प्रमुख हिस्से को भाजपा को चंदा दिया।
राज्य एजेंसियों द्वारा कारवाई और उस राज्य में सत्तारूढ़ी दल को चंदा देने के भी कुछ उदाहरण पाए गए हैं। उदाहरण के लिए, हैदराबाद स्थित व्यवसायी सरथ रेड्डी जो अरबिंदो फार्मा लिमिटेड के निदेशक हैं, को ED ने 10 नवंबर, 2022 को शराब घोटाला मामले में गिरफ्तार किया था। उनकी कंपनी अरबिंदो फार्मा ने 15 नवंबर को 5 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे और बीजेपी को दिए। मई 2023 में जब रेड्डी की जमानत याचिका की सुनवाई हुई तब ED ने इसका विरोध नहीं किया। जेल से रिहा होने के बाद, रेड्डी जून, 2023 में इस मामले में सरकारी गवाह बन गए। 8 नवंबर, 2023 को अरबिंदो फार्मा ने बॉन्ड के माध्यम से भाजपा को 25 करोड़ रुपये का चंदा दिया। उसी दिन और 25 करोड़ रुपये दो कंपनियों- यूजिया फार्मा स्पेशलिटीज लिमिटेड (15 करोड़ रुपये) और एपीएल हेल्थकेयर (10 करोड़ रुपये)- के माध्यम से भी भाजपा को दिया गया, जो कि अरबिंदो फार्मा की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है। रेड्डी का बयान उन सबूतों का हिस्सा है जिनका इस्तेमाल कथित शराब घोटाला मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को सही ठहराने के लिए किया जा रहा है।
घाटे में चल रही कंपनियां चुनावी बॉन्ड्स के माध्यम से भारी मात्रा में चुनावी चंदा दिए हैं। अनेक कंपनियां अपने लाभ से कई गुना ज्यादा दान किये हैं। जांच एजेंसियों की निगरानी सूची में शामिल अनेक कंपनियां बॉन्ड के माध्यम से चंदा दिए हैं। यह सब संकेत देता है की चुनावी बॉन्ड्स योजना में शेल (shell) कंपनियों के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग और काले धन के लेन-देन को प्रोत्साहन मिल रहा था। उदाहरण के लिए- द हिंदू की एक जांच में पाया गया कि 33 कंपनियों ने बॉन्ड्स से कुल ₹576.2 करोड़ का चंदा दिया, जिसमें से ₹434.2 करोड़ (लगभग 75%) भाजपा को मिला। इन 33 कंपनियों का कुल घाटा ₹1 लाख करोड़ से ज़्यादा था।
स्क्रॉल, द हिंदू और न्यूज़मिनट की जांच में पता चला कि कैसे चुनावी बॉन्ड से भाजपा को चंदा देने के कारण अनेक फार्मा कंपनियों के उल्लंघनों को रोकने के प्रति सरकारी संस्थाएं निष्क्रिय रही। घटिया व खतरनाक दवाओं को बाजार में बिकने दिया गया, जिससे देश में लाखों लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया है।
बॉन्ड्स घोटाले में हुए व्यापक घोटाले का पर्दाफाश होना ज़रूरी है। इसके लिए अदालत की निगरानी में SIT के गठन के लिए कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL) द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है।