नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने गुरुवार (14 मार्च) को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के दो पूर्व अधिकारियों – ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू – को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया है. एस एस संधू उत्तराखण्ड के मुख्य सचिव पद से रिटायर्ड अधिकारी हैं। नियुक्ति से पहले चुनाव आयोग में केवल एक सदस्य- मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार बचे थे.
बता दें कि चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने इस महीने की शुरुआत में अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. उनके इस्तीफे का कारण अज्ञात बना हुआ है. उनसे पहले एक अन्य चुनाव आयुक्त अनूप पांडे 15 फरवरी को सेवानिवृत्त हो गए थे.
रिपोर्ट के अनुसार, चयन समिति में विपक्ष के एकमात्र सदस्य कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कथित तौर पर गुरुवार की नियुक्तियों पर अपनी असहमति व्यक्त की है. उन्होंने पालन की गई प्रक्रिया पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा है कि शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों के नाम उन्हें पहले से उपलब्ध नहीं कराए गए थे और उन्हें बुधवार को केवल 212 अधिकारियों की सूची दी गई थी.
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम-2023 की शर्तों के तहत सरकार के प्रभुत्व वाली चयन समिति को केंद्रीय कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली एक खोज समिति द्वारा चुने गए उम्मीदवारों से आयोग में रिक्त स्थान भरने होते हैं.
इस अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है क्योंकि इसने शीर्ष अदालत के पिछले साल के उस फैसले का उल्लंघन किया है जिसमें कहा गया था कि आयोग के सदस्यों का चयन एक ऐसी समिति द्वारा किया जाए जिसमें सरकार का प्रभुत्व न हो, जिससे ईसीआई की स्वतंत्रता सुनिश्चित की जा सके.
ये नई नियुक्तियां ऐसे समय में हुई हैं जब 2024 के महत्वपूर्ण लोकसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग की स्वतंत्र कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं.
सभी 543 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान की देखरेख और स्वतंत्र तथा निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करने के अलावा तीनों चुनाव आयुक्तों को यह सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है कि सभी राजनीतिक दल और नेता चुनावी कानून की भावना का अक्षरश: पालन करें, विशेष रूप से आदर्श आचार संहिता का जो सत्तारूढ़ दलों द्वारा सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के साथ-साथ वोट जुटाने के साधन के रूप में धर्म के इस्तेमाल और घृणास्पद भाषण के उपयोग पर रोक लगाती है.