November 24, 2024

TheWire

सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में जातीय हिंसा से निपटने के लिए कानून प्रवर्तन और सरकार के तौर-तरीकों पर कड़ा रुख अपनाया है, पुलिस जांच को ‘धीमी’ और ‘सुस्त’ बताया. मणिपुर के पुलिस महानिदेशक को 4 अगस्त को अदालत में उपस्थित होने के लिए कहा है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ – जो यौन हिंसा के पीड़ितों सहित मणिपुर हिंसा पर कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे हैं, यह जानकर ‘आश्चर्यचकित’ हुए कि कुछ घटनाओं के बाद लगभग तीन महीने तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई है.

लाइव लॉ के अनुसार, शीर्ष अदालत ने कहा, ‘प्रारंभिक आंकड़ों के आधार पर प्रथमदृष्टया ऐसालगता है कि जांच धीमी रही है. घटना के होने और एफआईआर दर्ज करने, गवाहों के बयान दर्ज करने में चूक रही है और यहां तक कि गिरफ्तारियां भी बहुत कम हुई हैं.’

पीठ ने कहा, ‘अदालत को आवश्यक जांच की प्रकृति के सभी आयामों को समझने में सक्षम बनाने के लिए हम मणिपुर के डीजीपी को निर्देश देते हैं कि वह शुक्रवार दोपहर 2 बजे अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हों और अदालत के सवालों का जवाब देने की स्थिति में हों.’

मणिपुर की ओर से पेश हुए भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि दायर की गई 6,532 एफआईआर में से कितनी जीरो एफआईआर हैं.

एसजी मेहता यौन हिंसा वीडियो से जुड़े मामले में गिरफ्तारी कब हुई, इसका भी जवाब नहीं दे सके. जैसा कि द वायर ने रिपोर्ट किया है, वीडियो के वायरल होने और देश भर में आक्रोश फैलने के बाद 20 जुलाई को मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने पहली गिरफ्तारी की घोषणा की थी.

एसजी मेहता ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि वीडियो सामने आने के बाद इसमें सुधार किया जा सकता है.’

सीजेआई ने कहा कि एक बात बहुत स्पष्ट है- ‘एफआईआर दर्ज करने में इतनी लंबी देरी हुई है.’ सीजेआई ने यह भी देखा कि दो मामलों में से एक को छोड़कर कुछ गिरफ्तारियां हुई हैं.

सीजेआई ने कहा, ‘जांच बहुत सुस्त है. दो माह बाद एफआईआर दर्ज हुई, कोई गिरफ्तारी नहीं हुई. लंबे अंतराल के बाद बयान दर्ज किए गए.’

सीजेआई ने यह भी कहा कि इससे न्यायाधीशों को यह लगता है कि राज्य में कानून-व्यवस्था और संवैधानिक तंत्र पूरी तरह से ध्वस्त हो गया था. आप एफआईआर भी दर्ज नहीं कर सके. यदि कानून एवं व्यवस्था तंत्र नागरिकों की रक्षा नहीं कर सकता, तो नागरिक कहां जाएं.’

सीजेआई ने यह भी कहा, ‘राज्य पुलिस जांच करने में असमर्थ है. उन्होंने कानून-व्यवस्था पर नियंत्रण खो दिया है. कोई कानून-व्यवस्था नहीं है.’

जब उन्होंने कहा कि 6,000 एफआईआर में से केवल सात गिरफ्तारियां हुई हैं, तो एसजी मेहता ने स्पष्ट करना चाहा कि ये वायरल वीडियो मामले के संबंध में की गई थीं और कुल मिलाकर 250 गिरफ्तारियां की गईं. एसजी मेहता ने कहा कि 12000 निवारक गिरफ्तारियां की गई हैं.

पीठ ने महत्वपूर्ण रूप से यह भी पूछा कि क्या महिलाओं द्वारा यह कहने के बाद कि पुलिस ने उन्हें भीड़ को सौंप दिया था, पुलिसकर्मियों से पूछताछ की गई थी.

सीजेआई ने यह भी कहा ‘डीजीपी क्या कर रहे हैं? यह उनका कर्तव्य है.’ सीजेआई ने कहा, ‘या तो वे ऐसा करने में असमर्थ थे या इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी.’

एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मणिपुर में जो हुआ उसे हम यह कहकर उचित नहीं ठहरा सकते कि ऐसा कहीं और भी हुआ है.

मालूम हो कि शीर्ष अदालत ने इस घटना से संबंधित वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आने के बाद इस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया था. यह घटना बीते 3 मई को मणिपुर में भड़की जातीय हिंसा के अगले दिन हुई थी, लेकिन घटना का वीडियो 19 जुलाई को सामने आने के बाद इस बारे में पता चल सका था.

वीडियो वायरल होने के बाद युवतियां मामले की शिकायत करने के लिए आगे आई हैं. 4 मई को हुई इस घटना के वीडियो में थौबल क्षेत्र में भीड़ द्वारा आदिवासी कुकी समुदाय की दो महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाते हुए देखा जा सकता है. इनमें से एक के साथ सामूहिक बलात्कार भी किया गया था और इसका विरोध करने करने उनके पिता और भाई की हत्या कर दी गई थी.

मामले का संज्ञान लेने के बाद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की थी कि कोर्ट इससे बहुत परेशान है और अगर सरकार नहीं करती है तो वह कार्रवाई करेगी.

केंद्र सरकार ने बीते 27 जुलाई को शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) इस मामले की जांच करेगी और अनुरोध किया कि मुकदमा मणिपुर के बाहर स्थानांतरित किया जाए.

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