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उत्तराखंड हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा 1989 में राज्य के पर्यटन विभाग को सौंपी गई जिम्मेदारी के साथ राज्य को दून घाटी के लिए पर्यटन विकास योजना (टीडीपी) तैयार करने में अपनी निष्क्रियता की व्याख्या करने का निर्देश दिया। टीडीपी की तैयारी का मकसद दून घाटी में पर्यटन की गतिविधियों के संबंध में प्रतिबंध लगाना था। चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने कहा, “यह स्थिति पूरी तरह से अस्वीकार्य है, क्योंकि टीडीपी तैयार करने में राज्य पर्यटन विभाग की ओर से विफलता केंद्र सरकार द्वारा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम की धारा 3 (2) (v) और पर्यावरण (संरक्षण) नियम, 1986 के नियम 5 (3) (डी) के तहत जारी वैधानिक अधिसूचना को पराजित करती है।“
1989 में अधिसूचना जारी हुए 34 साल से अधिक हो गए हैं, लेकिन राज्य पर्यटन विभाग द्वारा टीडीपी तैयार नहीं किया गया और सचिव, पर्यटन, उत्तराखंड सरकार को इस मामले की सुनवाई के दौरान उपस्थित रहने का निर्देश दिया।
25 जुलाई के लिए मामले को सूचीबद्ध करते हुए अदालत ने कहा, “राज्य द्वारा हलफनामा भी दायर किया जाएगा, जिसमें अधिसूचना दिनांक 01.02.1989 की अधिसूचना के अनुसार टीडीपी तैयार करने में अपनी निष्क्रियता को स्पष्ट किया जाएगा, जिसका उद्देश्य, जैसा कि पूर्वोक्त, दून घाटी में पर्यटन गतिविधि पर प्रतिबंध लगाना था।
मामले की पृष्ठभूमि अदालत देहरादून, ऋषिकेश, मसूरी, हरिद्वार सहित दून घाटी के लिए टीडीपी और मास्टर प्लान तैयार करने में राज्य की निष्क्रियता के खिलाफ एडवोकेट रक्षित जोशी के माध्यम से एडवोकेट आकाश वशिष्ठ द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
याचिका में उत्तरदाताओं को दून घाटी अधिसूचना, 1989 के तहत अनिवार्य रूप से पूरी दून घाटी के लिए टीडीपी, मास्टर प्लान और भूमि उपयोग योजना तैयार करने के लिए तत्काल कदम उठाने के निर्देश जारी करने की मांग की गई।
आरोप लगाया गया कि टीडीपी और मास्टर प्लान के अभाव में पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील दून घाटी को नुकसान उठाना पड़ा है। याचिका में आरोप लगाया गया कि उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से स्थापना और संचालन के लिए सहमति प्राप्त किए बिना होटल और रिसॉर्ट का संचालन किया जा रहा है। यह आगे प्रस्तुत किया गया कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, अपशिष्ट ट्रीटमेंट प्लांट और उचित अपशिष्ट निपटान प्रणाली की भी कमी है। याचिकाकर्ता के अनुसार, इसके अतिरिक्त अनियमित पर्यटन और अन्य मुद्दों ने घाटी के सामने आने वाली समस्याओं में योगदान दिया है।