नई दिल्ली: तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने भारत के विधि आयोग को पत्र लिखकर प्रस्तावित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर अपनी ‘कड़ी आपत्ति’ दर्ज कराई और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से इसे लागू नहीं करने की सिफारिश की.
डीएमके ने कहा कि यूसीसी सहकारी संघवाद के खिलाफ है और देश में हिंदू संस्कृति और धार्मिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाएगा. पार्टी ने विधि आयोग को जवाब दिया है, जिसने यूसीसी के कार्यान्वयन के बारे में जनता से राय मांगी है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, डीएमके महासचिव दुरई मुरुगन ने एक बयान में कहा, ‘सभी धर्मों के लिए समान नागरिक संहिता लाने से पहले हमें जातिगत भेदभाव और अत्याचारों को खत्म करने के लिए एक समान जाति कोड की आवश्यकता है.’
उन्होंने कहा, ‘सत्तारूढ़ भाजपा का एक राष्ट्र, एक भाषा, एक संस्कृति का जुनून अब एक नागरिक संहिता में बदल रहा है.’ तमिलनाडु में भाजपा की सहयोगी पार्टी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) ने भी अपना रुख बरकरार रखा है कि वे यूसीसी का समर्थन नहीं करते हैं.
भाजपा की राज्य इकाई ने पहले प्रतिक्रिया व्यक्त की थी कि उन्हें उम्मीद है कि अन्नाद्रमुक अपनी स्थिति बदल देगी और यूसीसी को अधिनियमित करने के लिए सभी दल एक साथ आ सकते हैं.
सत्तारूढ़ डीएमके ने कहा, ‘सभी संप्रदायों के नागरिकों के अधिकारों पर यूसीसी के व्यापक प्रभाव देखने को मिलेगा और इसका राज्य में धार्मिक लोकाचार, कानून व्यवस्था, शांति व स्थिरता पर संभवत: विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा.’
तमिलनाडु की आबादी में 87 प्रतिशत हिंदू, 7 प्रतिशत ईसाई और 6 प्रतिशत मुस्लिम हैं. दुरई मुरुगन ने राज्य को सभी धर्मों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए स्वर्ग के रूप में वर्णित किया, जहां सांप्रदायिक हिंसा लगभग न के बराबर है.
उन्होंने कहा, ‘राजनीतिक लाभ के लिए यूसीसी जैसे विभाजनकारी कानून की शुरूआत तमिलनाडु में धार्मिक समूहों के बीच शांति, स्थिरता और सद्भाव को बिगाड़ देगी, इसलिए यह जनता के हित में वांछनीय नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘जातीय या धार्मिक समूहों के बीच संघर्ष से भयानक हिंसा हो सकती है, जैसे मणिपुर राज्य में हुआ है, जिसे केंद्र और राज्य सरकार आज तक नियंत्रित करने में असमर्थ रही है.’
बीते जून महीने में जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूसीसी पर जोर देते हुए भाषण दिया था, तब से डीएमके आग्रह कर रही है कि पहले हिंदुओं के बीच एकरूपता लानी होगी.
द्रमुक ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद केंद्र सरकार द्वारा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों को अनुसूचित जनजातियों तक नहीं बढ़ाया गया है. द्रमुक ने कहा कि यूसीसी हिंदू अविभाजित परिवार की अनूठी अवधारणा को भी मिटा देगा.
दुरई मुरुगन ने कहा, ‘केंद्र को यह भी विचार करना चाहिए कि हिंदुओं के भीतर भी, हिंदू धर्म के सभी संप्रदायों, उप-संप्रदायों पर लागू कानूनों का एक समान सेट होना असंभव है.’
उन्होंने कहा, ‘ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब यूसीसी हिंदुओं के बीच भी एक समान नहीं हो सकती तो इसे अन्य धर्मों के लिए कैसे लागू किया जा सकता है?’
डीएमके ने विवाह और तलाक पर राज्य की विधायी क्षमता के बारे में भी चिंता जताई, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के पास वर्तमान में भारतीय संविधान में सूची III (समवर्ती सूची) की प्रविष्टि 5 के तहत शक्तियां हैं.
पार्टी ने कहा कि यदि कानून बन जाता है, तो समान नागरिक संहिता भारत के सभी नागरिकों पर लागू होगी और भारत के राष्ट्रपति की सहमति मिलने के बाद भी राज्यों द्वारा इसमें बदलाव नहीं किया जा सकता है.
डीएमके ने कहा कि केंद्र की तुलना में राज्य सरकार लोगों के करीब होने के कारण लोगों की जरूरतों का आकलन करने में बेहतर स्थिति में है.
डीएमके ने कहा, ‘ऐसी परिस्थितियों में अपने लोगों की जरूरतों के अनुरूप कानून बनाने की राज्यों की शक्ति को छीनना असंवैधानिक और सहकारी संघवाद के सिद्धांतों के खिलाफ है.’
इससे पहले बीते जून महीने में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा समान नागरिक संहिता की पैरवी किए जाने के बाद कहा था कि उन्होंने सांप्रदायिक हिंसा भड़काने और अगले साल लोकसभा चुनाव जीतने के लिए ही ऐसा किया है.
स्टालिन ने कहा था, ‘उनका (प्रधानमंत्री मोदी) कहना है कि देश अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग कानून की दोहरी व्यवस्था से नहीं चल सकता. उनका विचार सांप्रदायिक तनाव और कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा करना है. उन्हें लगता है कि वह अपनी योजनाओं से अगला चुनाव जीत सकते हैं. लेकिन मैं दृढ़ता से कह सकता हूं कि जनता भाजपा को सबक सिखाने के लिए तैयार है.’